ट्विटर पर तीन हिंदू संतों- यति नरसिंहानंद, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को कथित नफ़रत फैलाने वाला कहने पर ‘आल्ट न्यूज़’ वेबसाइट के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के ख़ैराबाद थाने में बीते एक जून को मामला दर्ज किया गया था. केस रद्द करने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में प्रतीत होता है कि ज़ुबैर ने अपराध किया है और मामले की जांच करने की ज़रूरत है.
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ट्विटर पर तीन हिंदू संतों यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को कथित नफरत फैलाने वाला कहने पर ‘आल्ट न्यूज’ के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया है.
हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर के अनुसार पहली नजर में प्रतीत होता है कि जुबैर ने अपराध किया है और मामले की जांच करने की जरूरत है.
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की अवकाशकालीन पीठ ने जुबैर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड के अवलोकन से प्रथमदृष्टया इस स्तर पर याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध का पता चलता है और ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में जांच के लिए पर्याप्त आधार है.
हिंदू नेताओं की धार्मिक भावनाओं को जान-बूझकर ठेस पहुंचाने के आरोप में जुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के खैराबाद थाने में बीते एक जून को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295ए (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए किया गया जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) के तहत मामला दर्ज किया था.
याचिकाकर्ता जुबैर ने एफआईआर को चुनौती देते हुए कहा है कि उनके ट्वीट ने किसी वर्ग के धार्मिक विश्वास का अपमान या अपमान करने का प्रयास नहीं किया था और याचिकाकर्ता के खिलाफ सिर्फ परोक्ष उद्देश्य से उत्पीड़न के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी.
याचिका का विरोध करते हुए सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि जुबैर एक आदतन अपराधी हैं और उनका चार आपराधिक मामलों का इतिहास है.
याचिकाकर्ता की दलीलों को ठुकराते हुए पीठ ने कहा कि साक्ष्य एक गहन जांच के बाद एकत्र किया जाना चाहिए और संबंधित अदालत के समक्ष रखा जाना चाहिए. उन तथ्यों की सत्यता विवेचना या विचारण में ही साबित हो सकती है, अतः एफआईआर को खारिज करने का कोई औचित्य नहीं है.
27 मई को जुबैर ने लगातार कई ट्वीट करते हुए भारतीय समाचार टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाली प्राइम टाइम की बहस पर निशाना साधा था, जिनमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जारी विवाद के संबंध में कहा, ‘यह (टीवी समाचार चैनल) नफरत फैलाने वालों के लिए अन्य धर्मों के बारे में दूषित भाषा बोलने का मंच बन गया है.’
टाइम्स नाउ चैनल पर उसकी एंकर नविका कुमार द्वारा संचालित बहस ‘द ज्ञानवापी फाइल्स’ की एक वीडियो क्लिप साझा करते हुए उन्होंने ट्वीट किया था, ‘अच्छा किया… @vineetjaintimes! हमें यति नरसिंहानंद सरस्वती या महंत बजरंग मुनि या आनंद स्वरूप जैसे नफरत फैलाने वालों की आवश्यकता क्यों है, जो एक समुदाय और एक धर्म के खिलाफ बोलने के लिए एक धर्म संसद की व्यवस्था करते हैं, जबकि हमारे पास पहले से ही एंकर हैं, जो न्यूज़ स्टूडियो से बहुत बेहतर काम कर सकते हैं.’
ज्ञात हो कि कट्टर हिंदुत्व नेता और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि का नफरती भाषण और हिंसा का आह्वान करने का लंबा इतिहास रहा है, जिसमें सबसे उल्लेखनीय 2020 के दिल्ली दंगों से पहले भीड़ को जुटाने/भड़काने में उनकी संलिप्तता थी, जिसकी द वायर द्वारा पड़ताल की गई थी.
वह घृणा अपराधों और मुस्लिम विरोधी नफरती भाषणों में शामिल दक्षिणपंथ से संबद्धता रखने वाले व्यक्तियों के नेटवर्क का हिस्सा रहे हैं, साथ ही भाजपा नेता कपिल मिश्रा और अश्विनी उपाध्याय (जो हरिद्वार की धर्म संसद में मौजूद थे) से जुड़े रहे हैं. नरसिंहानंद फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.
वहीं उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बड़ी संगत आश्रम के पुजारी महंत बजरंग मुनि ने दो अप्रैल को हिंदू नव वर्ष के मौके पर पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ बलात्कार की धमकी दी थी, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था. बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)