गुजरात दंगों के लिए क्या तत्कालीन मुख्यमंत्री कभी जवाबदेह ठहराए जाएंगे: कांग्रेस

कांग्रेस ने ज़किया जाफ़री की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को निराशाजनक क़रार देते हुए सवाल किया कि क्या व्यापक सांप्रदायिक दंगों के मामलों में सिर्फ कलेक्टर और पुलिस उपाधीक्षक की ज़िम्मेदारी होती है, राजनीतिक पदों पर आसीन लोगों की नहीं? अगर राज्य हिंसा और दंगों की चपेट में आता है तो क्या मुख्यमंत्री, कैबिनेट और राज्य सरकार कभी जवाबदेह नहीं होंगी?

/
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस ने ज़किया जाफ़री की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को निराशाजनक क़रार देते हुए सवाल किया कि क्या व्यापक सांप्रदायिक दंगों के मामलों में सिर्फ कलेक्टर और पुलिस उपाधीक्षक की ज़िम्मेदारी होती है, राजनीतिक पदों पर आसीन लोगों की नहीं? अगर राज्य हिंसा और दंगों की चपेट में आता है तो क्या मुख्यमंत्री, कैबिनेट और राज्य सरकार कभी जवाबदेह नहीं होंगी?

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने जकिया जाफरी की याचिका को लेकर आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को निराशाजनक करार देते हुए सोमवार को सवाल किया कि क्या 2002 के सांप्रदायिक दंगों के समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं थे और क्या हिंसा को लेकर राज्य सरकार एवं मुख्यमंत्री कभी जवाबदेह ठहराए जाएंगे.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘जकिया जाफरी के मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला बहुत निराशाजनक है.’

उन्होंने सवाल किया, ‘क्या व्यापक सांप्रदायिक दंगों के मामलों में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी होती है? ऐसे मामलों में क्या सिर्फ कलेक्टर और पुलिस उपाधीक्षक की जिम्मेदारी होती है, राजनीतिक पदों पर आसीन लोगों की नहीं? अगर राज्य हिंसा और दंगों की चपेट में जाता है तो क्या मुख्यमंत्री, कैबिनेट और राज्य सरकार कभी जवाबदेही नहीं होंगे?’

उन्होंने कहा, ‘हम इस घड़ी में हमारे साथी रहे दिवंगत एहसान जाफरी और उनके परिवार के साथ खड़े हैं. उनके साथ जो हुआ वो राज्य सरकार की बुनियादी खामी का नतीजा था.’

रमेश ने सवाल किया, ‘क्या 2002 में जब भयानक दंगे हुए तो नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं थे? ऐसा क्यों हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी उनकी (मोदी) कार्रवाई के अभाव से इस तरह का हुआ कि उन्होंने ‘राजधर्म’ का पालन करने की याद दिलाई?’

उन्होंने यह भी पूछा, ‘क्या उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार के व्यवहार को ‘आधुनिक समय का नीरो’ कह कर नहीं बताया था? स्मृति ईरानी समेत भाजपा के धड़े ने विरोध क्यों किया था और मुख्यमंत्री को बर्खास्त करने की मांग की क्यों की थी?’

रमेश ने कहा, ‘उन लोगों का क्या जिन्हें एसआईटी के सबूत के आधार पर दोषी करार दिया गया, क्या इस पर भी भाजपा कहेगी कि उसके रुख की पुष्टि हुई है? भाजपा का कोई भी दुष्प्रचार इन तथ्यों को मिटा नहीं सकता.’

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार (24 जून) को खारिज कर दी.

न्यायालय ने इसके साथ ही कहा कि इन आरोपों के समर्थन में ठोस तथ्य उपलब्ध नहीं हैं कि 2002 के गोधरा दंगों को गुजरात में सर्वोच्च स्तर पर रची गई आपराधिक साजिश के कारण पूर्व-नियोजित घटना कहा जाए.

यह याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी.

जकिया ने एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे 2017 में हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया था. इसके बाद उन्होंने एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश का आरोप लगाते हुए विरोध याचिका दायर की थी.

जकिया के पति एहसान जाफरी 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में मारे गए 68 लोगों में शामिल थे. इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे. इन घटनाओं के बाद ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, नौकरशाहों और पुलिसकर्मियों सहित 63 अन्य के खिलाफ जकिया द्वारा दायर शिकायत की शुरुआती जांच के बाद उन्हें क्लीनचिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी. इसने कहा गया था कि उनके खिलाफ कोई मुकदमा चलाने योग्य सबूत नहीं है.

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत, जहां शिकायत दर्ज की गई थी, ने इस क्लीनचिट का समर्थन किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)