पत्रकारों ने कहा- मीडियाकर्मियों पर एफ़आईआर और छापे प्रेस को बुरी तरह प्रभावित करेंगे

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी का उल्लेख करते हुए दिल्ली के सात मीडिया संगठनों ने कहा कि सरकार का पत्रकारों को निशाना बनाना पूरे पेशे के भविष्य के लिए ख़तरनाक है.

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बैठक के दौरान (बाएं से) सिद्धार्थ वरदराजन, उमाकांत लखेड़ा और शोभना जैन.

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी का उल्लेख करते हुए दिल्ली के सात मीडिया संगठनों ने कहा कि सरकार का पत्रकारों को निशाना बनाना पूरे पेशे के भविष्य के लिए ख़तरनाक है.

बैठक को संबोधित करते वरिष्ठ पत्रकार टीएन निनान. (सभी फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

नई दिल्ली: प्रेस को प्रभावित करने वाली हालिया ‘निराशाजनक घटनाओं’- पत्रकारों की गिरफ्तारी और जांच एजेंसियों द्वारा छापे- पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्रकारों और विभिन्न मीडिया निकायों के प्रतिनिधियों इन्हें प्रेस के लिए ‘ख़राब’ संकेत बताया.

रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में दिल्ली के सात मीडिया संघों- प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, भारतीय महिला प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी), दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन और वर्किंग न्यूज कैमरामेन एसोसिएशन द्वारा ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ़्तारी के आलोक में बैठक की गई, जहां सरकार को बीते महीने जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मलेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हस्ताक्षरित बोलने और सोचने की स्वतंत्रता पर दिए प्रस्ताव के बारे में याद दिलाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया.

इस प्रस्ताव में कहा गया कि मुकदमों के माध्यम से पत्रकारों और छापेमारी से संस्थानों को निशाना बनाने का मीडिया पर बेहद ख़राब असर होगा.

इन मीडिया निकायों के प्रतिनिधियों ने इस बारे में चिंता जाहिर करने के साथ ही एक ऐसा मंच तैयार करने की भी बात की, जो देशभर के पत्रकारों को एक साथ लाए और जहां वे मीडिया की आजादी की सुरक्षा की मांग उठा सकें. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार द्वारा निशाना बनाए जा रहे रिपोर्टर्स को कानूनी मदद देने की भी एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए.

बैठक में सबसे पहले बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और बिज़नेस स्टैंडर्ड के पूर्व संपादक टीएन निनान ने तीन सुझाव दिए, जो उनके मुताबिक सरकार के स्वतंत्र मीडिया को निशाना बनाए जाने के खिलाफ एक रोडमैप का काम करेंगे.

उन्होंने कहा कि सरकार पत्रकारों को आसानी से निशाना बना पा रही है क्योंकि मीडिया बहुत विभाजित है. उन्होंने कहा, ‘हमें अब देखना चाहिए कि क्या हम सभी कम से कम प्रेस की स्वतंत्रता के आधार पर सहमत हो सकते हैं और देश भर के मीडिया संगठनों को एक साथ ला सकते हैं.’

दो अन्य सुझाव जो उन्होंने दिए वे थे गिरफ्तार किए गए पत्रकारों के लिए संभवतः क्राउडफंडिग (जनता से चंदा लेकर) के माध्यम से कानूनी मदद मुहैया करवाना और वकीलों का एक ऐसा पैनल बनाना, जो देश के सभी हिस्सों में इन पत्रकारों की सहायता कर सके.

उन्होंने कहा, ‘केवल बयान जारी करना काफी नहीं है. हमें अब सोचना होगा कि हम इसके अलावा क्या कर सकते हैं.’

इस बैठक में द वायर  के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन भी मौजूद थे, जिन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को निशाना बनाए जाने को लेकर कहा कि फैक्ट-चेक करने वाला यह संगठन ‘सरकार और सत्ताधारी पार्टी के जनता की राय से छेड़छाड़ करने के प्रयासों में एक बड़ी बाधा बन रहा था.’

उन्होंने कहा, ‘हम मीडिया की आजादी पर स्पष्ट तौर पर हो रहे हमलों का सामना कर रहे हैं. ये हमले सिर्फ और बढ़ेंगे. मीडिया की आजादी को कम करने के लिए नए कानून और नए नियम लाने की कोशिश होगी.’

बैठक के दौरान (बाएं से) सिद्धार्थ वरदराजन, उमाकांत लखेड़ा और शोभना जैन.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने कहा, ‘पत्रकारों के एक धड़े को रेडिकलाइज करने की कोशिशें हो रही हैं, हमारे अपने साथियों को दूसरे के खिलाफ किया जा रहा है. रिपोर्टर्स में यह डर पैदा किया जा रहा है कि सरकार से सवाल नहीं करना है. पत्रकार जनता तक सूचना पहुंचाने का अहम काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समाज के लिए ‘खतरे’ के तौर पर पेश किया जा रहा है.’

भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य जय शंकर गुप्ता, जो प्रेस एसोसिएशन के प्रतिनिधि भी हैं, ने पत्रकारों के मान्यता कार्ड (एक्रेडिटेशन कार्ड) को रिन्यू करने में बरती जा रही ढिलाई का उल्लेख किया. गुप्ता ने कहा कि सरकार ने कई अनुभवी पत्रकारों को कड़ी जांच प्रक्रिया से गुजरने के लिए मजबूर किया और कोविड-19 दिशानिर्देशों में ढील दिए जाने के बावजूद पत्रकारों को संसद में प्रवेश करने से रोक दिया.

आईडब्ल्यूपीसी अध्यक्ष शोभना जैन ने उनके संगठन के दफ्तर की सालाना लीज़ के नवीकरण में सरकार की तरफ से हो रही देरी का जिक्र करते हुए कहा कि देश में महिला पत्रकारों द्वारा मीडिया की आजादी पर बात करने की जगह अब दांव पर है.

उन्होंने कहा, ‘क्योंकि कुछ पत्रकारों का नजरिया अलग (सरकार के पक्ष में) है, ऐसे में सबको साथ लेकर, पत्रकार होने के बतौर एक होकर आवाज़ उठाना चुनौतीपूर्ण है. हमारी भी दो सदस्यों (सबा नकवी और नविका कुमार) के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.’

वर्किंग न्यूज कैमरामेन एसोसिएशन के संदीप शंकर ने कहा कि ‘साल 2006 से कैमरापर्सन पर हो रहे हमले आज उस स्तर तक पहुंच गए हैं जहां कई आधिकारिक समारोहों में उन्हें कवरेज की अनुमति ही नहीं दी जाती.’

उन्होंने हाल ही में राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार दौपदी मुर्मू के नामांकन दाखिल करने की एक घटना का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि लोकसभा अध्यक्ष ने कह दिया था कि कैमरापर्संस समेत सभी को कवरेज करने की अनुमति होगी, फिर एक निजी संस्थान (एएनआई) के अलावा किसी को अनुमति नहीं मिली.’

बैठक में शामिल हुए पत्रकार.

इस बैठक में पढ़े गए प्रस्ताव में आयोजकों में सरकार से एक मजबूत लोकतंत्र के हित में मीडिया के लिए सरकारी कार्यक्रमों के कवरेज तक पहुंच बहाल करने का अनुरोध किया.

मीडियाकर्मियों की मनमानी गिरफ्तारी के अलावा बैठक में पीआईबी मान्यता के लिए नए दिशानिर्देशों, झूठे आधार पर 300 से अधिक पत्रकारों को मान्यता से वंचित करने और लोकसभा के सेंट्रल हॉल और प्रेस गैलरी में कोविड-19 प्रतिबंधों को जारी रखने पर भी चर्चा हुई.

मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़ी ‘चिंताजनक घटनाओं’ का जिक्र करते हुए प्रस्ताव में कहा गया, ‘हाल के दिनों में हमारे कई सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाना और मीडिया कार्यालयों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी इस पूरे पेशे के भविष्य के लिए एक खराब संकेत है. ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक की संज्ञेय अपराध में हुई गिरफ़्तारी ऐसा ही मामला है. यह गिरफ्तारी अतिरंजित और झूठे आरोपों पर आधारित है.’

आगे कहा गया, ‘दूसरी ओर, जो वास्तव में नफरत भरे भाषण देते हैं, वे आजाद घूम रहे हैं. क़ानून प्रवर्तक एजेंसियों द्वारा चुनिंदा कार्रवाई का पूरे मीडिया पर बुरा असर होगा.’

बैठक में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित फोटो पत्रकार सना इरशाद मट्टू को विदेश जाने से रोकने के मसले पर भी चिंता जाहिर की गई.

प्रस्ताव में कहा गया, ‘हम इस मौके पर यह याद दिलाना चाहते हैं कि हमारी सरकार ने हाल ही में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में ‘विचार, अंतरात्मा, धर्म या आस्था की स्वतंत्रता की रक्षा करने और अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देने के लिए’ प्रतिबद्धता दिखाई है. यही सिद्धांत हमारे संविधान में भी है, जिसे बनाए रखने और संरक्षित करने की जरूरत है.’