ट्विटर ने मोदी सरकार के कंटेंट हटाने संबंधी आदेशों के ख़िलाफ़ अदालत का रुख़ किया

सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने नए आईटी क़ानूनों के तहत सामग्री हटाने के सरकारी आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कंटेंट ‘ब्लॉक’ करने के आदेशों की न्यायिक समीक्षा का आग्रह किया है. ट्विटर का कहना है कि यह अधिकारियों द्वारा अपने अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है.

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The Twitter logo is displayed on a screen on the floor of the New York Stock Exchange (NYSE) Photo: Reuters

सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने नए आईटी क़ानूनों के तहत सामग्री हटाने के सरकारी आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कंटेंट ‘ब्लॉक’ करने के आदेशों की न्यायिक समीक्षा का आग्रह किया है. ट्विटर का कहना है कि यह अधिकारियों द्वारा अपने अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के नए आईटी नियमों के तहत सामग्री (कंटेंट) हटाने के आदेश को चुनौती दी है. उसने कहा कि यह अधिकारियों द्वारा अपने अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है.

ट्विटर ने जून, 2022 में जारी एक सरकारी आदेश को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि सामग्री ‘ब्लॉक’ करने का आदेश ‘काफी व्यापक’ और ‘मनमाना’ है.

ट्विटर की रिट याचिका से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सरकार के कई अनुरोध कथित रूप से राजनीतिक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई के लिए हैं. ये सामग्री राजनीतिक दलों के आधिकारिक ‘हैंडल’ के जरिये पोस्ट की गई हैं. ऐसे में इस तरह की जानकारी को ‘ब्लॉक’ करना अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन होगा, जो कंपनी ने मंच का उपयोग करने वाले लोगों को दी है.

सूत्रों ने कहा, ‘जिस सामग्री को ‘ब्लॉक’ करने का अनुरोध किया गया है, उसका धारा 69 (ए) से कोई लेना-देना नहीं है.’

इस बारे में ट्विटर और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय को ई-मेल भेजकर सवाल पूछे गए, लेकिन फिलहाल उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने ट्विटर पर लिखा है, ‘सभी मंचों को अदालत जाने का अधिकार है लेकिन कानून का पालन करना उनकी जिम्मेदारी है.’

सूत्रों ने कहा कि ट्विटर की याचिका के अनुसार धारा 69 (ए) के तहत सामग्री ‘ब्लॉक’ करने को लेकर कई आदेश जारी किए गए, लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि संबंधित सामग्री धारा 69 (ए) का उल्लंघन कैसे करती है.

उसने कहा, ‘ट्विटर ने अदालत से सामग्री ‘ब्लॉक’ करने के आदेशों की न्यायिक समीक्षा का आग्रह किया है.’

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, ट्विटर को पिछले साल भर में स्वतंत्र सिख राज्य के समर्थन वाले एकाउंट, किसान आंदोलन के बारे में कथित तौर पर गलत सूचना फैलाने वाले पोस्ट और सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी से निपटने संबंधी आलोचना करने वाले ट्वीट्स समेत अन्य सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा गया था.

भारत सरकार पहले ही कह चुकी है कि ट्विटर समेत बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों ने सामग्री हटाने के अनुरोधों का अनुपालन नहीं किया है, बावजूद इसके कि वे कानूनी तौर पर इन्हें मानने के लिए बाध्यकारी हैं.

पिछले महीने के अंत में कुछ आदेशों का पालन न करने की स्थिति में ट्विटर को भारत के आईटी मंत्रालय द्वारा आपराधिक कार्यवाही की चेतावनी दी गई थी. सूत्रों ने बताया कि ट्विटर ने इस सप्ताह (आदेशों का) अनुपालन किया, ताकि उसे कंटेंट के होस्ट के रूप में मिली छूट को खोना न पड़े. ‘

सूत्र ने कहा, दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक की शीर्ष अदालत में दाखिल याचिका में ट्विटर ने तर्क दिया कि सामग्री हटाने के कुछ आदेश भारत के आईटी अधिनियम की प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं, जिसमें स्पष्ट नहीं है कि वे किसकी समीक्षा करना चाहते हैं.

आईटी अधिनियम सरकार को अनुमति देता है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में और अन्य कारणों से सामग्री तक जनता की पहुंच को रोक दे.

भारत में लगभग 2.4 करोड़ उपयोगकर्ताओं वाले ट्विटर ने कोर्ट में अपनी फाइलिंग में तर्क दिया कि कुछ आदेश कंटेंट के लेखकों को नोटिस देने में विफल रहे.

बता दें कि ट्विटर का भारत सरकार के साथ पिछले साल की शुरुआत में तब तनाव बढ़ गया था, जब उसने सरकार के उस आदेश का पूरी तरह से पालन करने से इनकार कर दिया था जिसमें सरकार ने कुछ एकाउंट और पोस्ट को सरकार विरोधी किसान आंदोलन के बारे में गलत सूचना फैलाने वाला बताकर हटाने का आदेश दिया था.

कंपनी के खिलाफ भारत में पुलिस की जांच भी हुई है और पिछले साल भारत सरकार के कई मंत्री, ट्विटर पर स्थानीय कानूनों का पालन न करने का आरोप लगाते हुए घरेलू रूप से विकसित मंच ‘कू’ पर चले गए थे.

अपनी नीतियों का हवाला देते हुए कई नेताओं समेत कई प्रभावशाली व्यक्तियों के एकाउंट ब्लॉक करने के लिए ट्विटर को भारत में हमलों का भी सामना करना पड़ा है.

कई रिपोर्ट बताती हैं कि भारत उन देशों में है जहां सामग्री को हटाने के सबसे ज्यादा अनुरोध किए जाते हैं. सरकार का इस संबंध में कहना रहा है कि ऐसे उपायों की इसलिए आवश्यकता है क्योंकि कंपनियों ने भारतीयों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)