एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटाने पर शिक्षकों का समूह नाराज़

टीचर्स अगेंस्ट द क्लाइमेट क्राइसिस ने दावा किया कि एनसीईआरटी ने कक्षा 11वीं के भूगोल विषय से ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव से संबंधित पूरे अध्याय को हटा दिया है, जबकि 7वीं के पाठ्यक्रम से मौसम, जलवायु और पानी के अध्याय को हटाया है तथा 9वीं से मानसून से संबंधित अध्याय को हटा दिया है. संगठन ने मांग की कि एनसीईआरटी इन अध्यायों को बहाल करे तथा जलवायु संकट के विषय को सभी भाषाओं में स्कूलों में पढ़ाया जाए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

टीचर्स अगेंस्ट द क्लाइमेट क्राइसिस ने दावा किया कि एनसीईआरटी ने कक्षा 11वीं के भूगोल विषय से ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव से संबंधित पूरे अध्याय को हटा दिया है, जबकि 7वीं के पाठ्यक्रम से मौसम, जलवायु और पानी के अध्याय को हटाया है तथा 9वीं से मानसून से संबंधित अध्याय को हटा दिया है. संगठन ने मांग की कि एनसीईआरटी इन अध्यायों को बहाल करे तथा जलवायु संकट के विषय को सभी भाषाओं में स्कूलों में पढ़ाया जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने पिछले दो साल में कोविड के मद्देनजर विद्यार्थियों पर पढ़ाई के भार को कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन और मानसून जैसे अहम विषयों को पाठ्यक्रम से हटा दिया है. जलवायु परिवर्तन से लड़ने वाले कॉलेज एवं विश्वविद्यालय शिक्षकों के एक समूह ने यह दावा किया है.

अधिकारियों के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के कारण स्कूलों के बंद रहने के मद्देनजर विद्यार्थियों पर से पढ़ाई का बोझ कम करने के मकसद से एनसीईआरटी ने कक्षा छठी से 12वीं तक के पाठ्यक्रम को कम किया है. उन्होंने बताया कि इस शैक्षणिक सत्र में पाठ्यक्रम को तकरीबन 30 फीसदी कम किया गया है.

टीचर्स अगेंस्ट द क्लाइमेट क्राइसिस (टीएसीसी) ने दावा किया कि एनसीईआरटी ने कक्षा 11वीं के भूगोल विषय से ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव से संबंधित पूरे अध्याय को हटा दिया है, जबकि 7वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से मौसम, जलवायु और पानी के अध्याय को हटाया है तथा 9वीं कक्षा से मानसून से संबंधित अध्याय को हटा दिया है.

उन्होंने मांग की कि एनसीईआरटी इन अध्यायों को बहाल करे तथा जलवायु संकट के विषय को सभी भाषाओं में स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए.

टीएसीसी ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी ने समूचे देश में पढ़ाई-लिखाई के नियमित कार्यक्रम को जबर्दस्त तरीके से बाधित किया. यह समझा जा सकता है कि एनसीईआरटी ने दोहराव वाली सामग्री या मौजूदा संदर्भ में अप्रासंगिक सामग्री को हटाकर विद्यार्थियों के बोझ को कम करने की कोशिश की है.’

टीएसीसी के संस्थापक सदस्य नागराज अडवे ने कहा कि यह अजीब है कि एनसीईआरटी ने स्कूल पाठ्यक्रम से पर्यावरण से संबंधित सामग्री को हटाने का फैसला किया, जहां युवा सबसे पहले इन मुद्दों से वाफिक होते हैं और इनके बारे में समझ विकसित करते हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, टीएसीसी ने मांग की कि एनसीईआरटी अध्यायों को बहाल करे और जलवायु संकट के विभिन्न पहलुओं को सभी वरिष्ठ स्कूली छात्रों को सभी भाषाओं और विभिन्न विषयों में पढ़ाया जाए.

टीएसीसी ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी ने पूरे देश में नियमित रूप से सीखने के कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा किया है. यह समझ में आता है कि एनसीईआरटी छात्रों के कार्यभार को कम करने के लिए सामग्री को कम करना चाहता है. हालांकि, इनमें से कोई भी चिंता जलवायु परिवर्तन विज्ञान, भारतीय मानसून और अन्य अध्यायों जैसे मौलिक मुद्दों पर लागू नहीं होती है.’

शिक्षकों ने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पूरे भारत में वरिष्ठ स्कूली छात्रों को इस तरह की अद्यतन जानकारी के सार को सुलभ और आसानी से समझने वाले तरीके से अवगत कराया जाए.

नागराज अडवे ने कहा, ‘इस बारे में शिक्षित होना कि जलवायु परिवर्तन हमारे पर्यावरण और समाज के साथ कई तरह से कैसे बातचीत करता है, बदलते मौसम प्रणाली, मानसून पैटर्न के लिहाज से महत्वपूर्ण है.’

समूह ने कहा कि छात्रों को जलवायु संकट की जटिलता को समझने की जरूरत है अगर उन्हें इसका जवाब देना है और इसके साथ समझदारी से जुड़ना है. हाल के वर्षों में यह जुड़ाव आमतौर पर कक्षाओं में शुरू हुआ है, इसलिए यह आवश्यक है कि स्कूल छात्रों को जलवायु परिवर्तन और संबंधित मुद्दों के बारे में जानकारी प्रदान करते रहें जो सटीक, तर्कसंगत और प्रासंगिक हों.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)