नगालैंड फायरिंग: सैन्य अधिकारी के ‘जानबूझकर’ अहम सूचना छिपाने से हुई ग्रामीणों की मौत-एसआईटी

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले में हुई फायरिंग के मामले में नगालैंड सरकार की एसआईटी ने सेना के टीम कमांडर पर 'जानबूझकर चूक' का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके द्वारा लिए गए हिंसक क़दम और चूक को छिपाने के प्रयासों के चलते तेरह आम आदिवासियों की जान गई.

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नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल होते हुए सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग की थी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले में हुई फायरिंग के मामले में नगालैंड सरकार की एसआईटी ने सेना के टीम कमांडर पर ‘जानबूझकर चूक’ का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके द्वारा लिए गए हिंसक क़दम और चूक को छिपाने के प्रयासों के चलते तेरह आम आदिवासियों की जान गई.

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल होते हुए सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग की थी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मुंबई: कम से कम 50 मिनटों के लिए सेना के मेजर रैंक के एक टीम कमांडर- जिन्होंने 4 दिसंबर, 2021 को नगालैंड के तिरु-ओटिंग इलाके में चलाए गए ऑपरेशन का नेतृत्व किया था- को कथित तौर पर इस बात की जानकारी थी कि उनकी टीम द्वारा बिछाया गया एंबुश (घात लगाकर हमला करने की तैयारी) गलत रास्ते पर था.

आरोप है कि इस अधिकारी ने इस बेहद अहम जानकारी को न सिर्फ ‘जानबूझकर दबाया’ बल्कि जानते-बूझते हुए 21 पैरा स्पेशल फोर्स की अतिकुशल अल्फा टीम के 29 सैन्य जवानों को गलत दिशा में भेज दिया. उन्होंने इसके बाद अपनी टीम को नगालैंड के मोन जिले में ऑपरेशन को अंजाम देने का आदेश दिया, जिसमें छह आम नागरिक मारे गए और दो लोग बेहद गंभीर तरीके से जख्मी हो गए.

यह झकझोर कर रख देने वाली जानकारी नगालैंड सरकार द्वारा गोलीकांड और उसमें हुई मौतों की जांच करने के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की छह महीने लंबे चली जांच के केंद्रीय निष्कर्षों में प्रमुख है.

एसआईटी ने टीम कमांडर पर ‘जाबूझकर गलती करने’ का आरोप लगाया है और कहा है कि उसकी आगे की हिंसक कार्रवाइयों और सबूत मिटाने की कोशिशों ने उस शाम हुई दो अलग-अलग फायरिंग की घटनाओं में 13 आदिवासी लोगों की जान ले ली. इस घटना में एक पैराट्रूपर गौतम लाल की भी मौत हो गई थी.

एक टीम कमांडर, जिसका नाम भारतीय सेना के अधिकारियों के आग्रह के बाद द वायर  नहीं छाप रहा है, को गोलीकांड का मुख्य आरोपी बनाया गया है. चार्जशीट में उनके 29 अधीनस्थ अधिकारियों को भी हत्या (भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत), हत्या की कोशिश (भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत), गंभीर रूप से चोट पहुंचाने (भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के तहत) सबूतों को नष्ट करना (आईपीसी की धारा धारा 201 के तहत), साझा इरादा (आईपीसी की धारा 34 के तहत) और आपराधिक षड्यंत्र ( धारा 120(बी)) के तहत आरोपी बनाया गया है.

यह संभवतः पहली बार है जब सेना के जवान उत्तर-पूर्व में आम नागरिकों की हत्या में उनकी भूमिका के लिए कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं.

नगालैंड की राज्य पुलिस, डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स से मुकदमा चलाने के लिए अनुमति के लिए अप्रैल महीने से इंतजार कर रही है.

एसआईटी की जांच की जानकारी रखने वाले वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सेना को मई में इस संबंध में फिर से रिमाइंडर भेजा गया था, लेकिन हमें अभी तक सेना की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है.’

सेना की तरफ से लगातार यह कहा जा रहा हे कि जवानों को प्रतिबंधित नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (के-वायए) धड़े के संभावित गतिविधि के बारे में एक टिप-ऑफ के बाद उग्रवाद निरोधी अभियान (काउंटर इनसर्जेंसी ऑपरेशन) पर भेजा गया था और उन्होंने ग्रामीणों को चूकवश आतंकवादी समझ लिया.

सेना के काउंटर इनसर्जेंसी यूनिट ने बाद में दावा किया था कि स्काउट टीम ने गांव वालों के शिकारी रायफल और स्थानीय तलवार जैसे हथियार दाओस को खतनाक हथियार समझने की गलती की.

एसआईटी ने कहा है, ‘गश्ती दल ने अपने दिमाग का समुचित इस्तेमाल किए बगैर गलत तरीके से ‘पॉजिटिव आइडेंटिफिकेशन’ (हमला करने से पहले की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रक्रिया) किया.’

एसआईटी का यह भी कहना है कि 21 पैरा (एसएफ) के दल के पास उत्तर-पूर्व में ऑपरेशन की जिम्मेदारी है. ‘वे जमीनी स्थितियों से अवगत हैं. नगालैंड में लोगों के लिए काम के लिए डोरीयुक्त दाओस अपने साथ लेकर चलना काफी आम है और वे शिकार वाली बंदूकों/मजल लोडिंग बंदूकों को अपने साथ लेकर चलते हैं.’

सेना द्वारा चलाए गए एक अलग कोर्ट ऑफ इनक्वायरी ने कुछ निश्चित स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रक्रियाओं (एसओपी) का पालन न किए जाने का उल्लेख किया है. सेना ने जवानों के खिलाफ किसी ठोस कार्रवाई की शुरुआत नहीं की है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि करते हुए बताया कि टीम कमांडर समेत, सेना के सभी जवान अपनी ड्यूटी पर बने हुए हैं, लेकिन उन्हें उनके बेस तक सीमित रखा गया है. कोर्ट ऑफ इनक्वायरी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं है और सेना के लिए इसे सार्वजनिक करना अनिवार्य भी नहीं है.

गोलीकांड के दो दिनों के भीतर केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद में यह दावा किया था कि यह घटना, ‘पहचान में हुई गलती’ का नतीजा थी. सेना ने इसी दलील पर कायम है और उसे उम्मीद है कि विशेष सुरक्षा बलों को आम नागरिक अदालत का सामना नहीं करना पड़ेगा.

एसआईटी ने 300 पन्नों से ज्यादा की अपनी चार्जशीट में तिरू-ओटिंग क्षेत्र में हुए दो गोलीकांडों का तफसील से ब्योरा पेश किया है.

द वायर को हासिल इस चार्जशीट की प्रति में सेना के जवानों पर कई आधारों पर आरोप लगाए गए हैं. चार्जशीट का कहना है कि ये सारे आधार मजदूरों और ग्रामीणों की मौत का कारण बने. ये सभी मजदूर और ग्रामीण कोन्याक जनजाति के थे.

पिछले साल 4 दिसंबर को तिरू-ओटिंग क्षेत्र में दो गोलीकांड हुए. पहली घटना- जिसे अब घटना के दो सर्वाइवर, जो इस मामले में ‘सबसे अहम गवाह’ हैं, के बयानों और एक ग्रामीण की फोन रिकॉर्डिंग के फॉरेंसिक विश्लेषण द्वारा स्थापित कर दिया गया है- शाम 4: 26 बजे के आसपास घटित हुई.

इस घटना में छह लोग- शोमवांग, लैंगवांग, थैपवांग, खावांग, थैकवांग और येनजोंग- मारे गए थे. थैपवांग और लैंगवांग, दोनों 23 साल के, जुड़वां थे. दूसरी घटना में, जो कुछ घंटे के बाद लगभग 9 : 55 में हुई, सात ग्रामीणों- वेचु पोंगची, बिपुल, नगामफो, फाओकाम, मेनपीह, होकप और लांगटुन- की हत्या हुई थी.

पहली घटना एक योजनाबद्ध एंबुश ऑपरेशन (घात लगाकर किया जाने वाला हमला) का एक हिस्सा थी, वहीं दूसरी घटना तब हुई, जब सेना के जवान कथित तौर पर छह मजदूरों के शवों को गुप्त तरीके से ठिकाने लगाकर अपनी कार्रवाई के सबूतों को मिटाने की कोशिश कर रहे थे. बेकसूर मजदूरों की हत्या से उत्तेजित हुए ग्रामीणों ने सेना के जवानों पर हमला कर दिया. बचाव में ऑपरेशन प्रमुख ने एक बार फिर फायरिंग का आदेश दिया, जिसमें सात और लोग मारे गए.

एसआईटी का दावा है कि सभी हताहत हुए लोगों को ‘हत्या करने के स्पष्ट इरादे के साथ’ गोली मारी गई थी. फॉरेंसिक रिपोर्ट के निष्कर्ष कहते हैं कि लगभग सभी मृतकों को कई बार नजदीक से गोली मारी गई थी और उन्हें शरीर के ऊपरी हिस्से में गोली लगी थी.

जांच से यह उजागर हुआ है कि गोली चलाने की दूसरी घटना ज्यादा ‘विस्तृत और अंधाधुंध’ थी. एसआईटी का दावा है कि मकसद सिर्फ ‘उनसे पीछा छुड़ाना और समाधान’ नहीं था. मृतकों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों के आधार पर की गई जांच में दावा किया गया है कि ‘इरादा हत्या करने का था.’ मृतकों लांगटुन और फाओकोम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बताया गया है कि ‘उनकी मृत्यु फायरआर्म्स (बंदूक) से मष्तिष्क में आई चोट के कारण हुई. उन्हें माथे पर निशाना बनाकर गोली मारी गई थी. इरादा हत्या करने का था.’

इसी तरह चार्जशीट के अनुसार, ‘मृतक वेचु पोंगची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि उसकी मृत्यु फायरआर्म्स से रीढ़ की हड्डी में आए जख्मों के कारण हुई. उन्हें गर्दन में निशाना लगाकर गोली मारी गई थी. इरादा हत्या करने का था.’ सारे मृतक निहत्थे थे और पुलिस ने उनसे कोई हथियार बरामद नहीं किया है.

एसआईटी ने एक बेहद अहम ‘मानव स्रोत’ (जिनकी पहचान उनके काम करने की खतरनाक स्थिति के कारण जाहिर नहीं की गई है), जिन्होंने जमीन पर गतिविधि को लेकर एक सिपाही को सूचना दी थी, का बयान भी दर्ज किया है.

एसआईटी को दिए गए बयान में इस स्रोत ने कहा है कि, ‘उसने एक सिपाही को आतंकवादियों के वापन्यू की तरफ बढ़ने की योजना की सूचना दी थी. यह स्थान उस जगह से, जहां घात लगाकर हमला किए जाने की योजना थी, कम से कम 10 किलोमीटर दूर थी. स्रोत ने उस गाइड की तस्वीर भी साझा की थी, जिसे आतंकवादियों को रास्ता दिखाते हुए नेतृत्व करना था. दोपहर करीब 3:30 बजे यह सूचना पहली बार सिपाही को दी गई थी. सिपाही ने इसके बाद तुरंत टीम कमांडर को उसे मिली सूचना से अवगत करा दिया था और घात लगाकर किए जाने वाले हमले की जगह को तुरंत बदलने का निवेदन किया था.

एक बेहद अहम जांच-नतीजे में एसआईटी ने आगे यह भी बताया है कि, ‘टीम कमांडर ने इसके बाद अपनी टेक्निकल सपोर्ट टीम को ग्रामीण गाइड का उसके फोन लोकेशन के जरिये पीछा करने के लिए कहा था. यह निर्धारित किया गया कि गाइड वास्तव में वापन्यू इलाके की तरफ ही बढ़ रहा था. जांच में यह भी पाया गया है कि टीम कमांडर ने बाद में ग्रामीण गाइड की तस्वीर और उसके बारे में जानकारी अपने दल के सहयोगियों को वॉट्सऐप के द्वारा फॉरवर्ड कर दी थी. उस समय 3:50 बजे थे.

ऐसा अनुमान है कि सेना के टीम कमांडर ने अपने दल के सदस्यों से उस संदेश में कहा था कि फोटो में दिख रहा शख्स आतंकवादियों के लिए खाना लेकर जा रहा है. बाद में टीम कमांडर ने अपनी टीम के सदस्यों से ‘चौकन्ना रहने’ के लिए कहा. लेकिन इस बिंदु पर उसने अपने संदेश में से एक बेहद अहम सूचना को हटा दिया. उसने अपने दल के सदस्यों को यह नहीं बताया कि यह गाइड वापन्यू की तरफ जा रहा है, जो सेना की टीम द्वारा की जा रही हमले की तैयारी वाली जगह से कई किलोमीटर दूर था. एसआईटी ने उसके द्वारा की गई ऐसी चूक के कारणों की पड़ताल नहीं की है.

द वायर  ने सेना के थ्री क्रॉप्स को एक विस्तृत प्रश्नावली मेल से भेजी है और अभी तक दो बार इस बारे में रिमाइंडर मेल भी उन्हें किया जा चुका है. साथ ही एक संदेश नगालैंड के डीजीपी टी. जॉन लोंगकुमर को भी भेजा गया है. दोनों ही पक्षों से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. सेना और नगालैंड पुलिस का जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.

नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव में चार दिसंबर 2021 को उग्रवाद विरोधी अभियान में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में नागरिकों के मारे जाने के बाद नाराज़ ग्रामीणों ने सैन्यकर्मियों के वाहनों को आग के हवाले कर दिया था. (फाइल फोटो: पीटीआई)

दोनों सर्वाइवर- शेइवांग कोन्याक और येइवांग कोन्याक- ने जख्मों के ठीक हो जाने के बाद पुलिस की जांच में हिस्सा लिया था. उन्होंने आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दिया है और उनके बयान कोर्ट में स्वीकार्य हैं.

अपने बयान में उन्होंने कहा है कि वे एक कोयला खदान में काम करने के लिए तिरू इलाके में गए थे. पिछले साल 4 दिसंबर को, वे मारे गए छह लोगों के साथ ही एक बोलेरो पिक-अप में लौट रहे थे. शेइवांग ने अपने बयान में कहा है, ‘हम पिक-अप से आ रहे थे, जब हमें आगे और पीछे से गोली मारी गई. मैंने तीन धमाके भी सुने. में कुछ लोगों को हिंदी में चिल्लाते हुए सुन सकता था. हमने छिपने की कोशिश की.’

शेइवांग और येइवांग दोनों को ही कई गोलियां लगी थीं और कई हफ्तों तक अस्पताल में उनका इलाज चलता रहा. यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि दोनों ही जख्मियों को सेना द्वारा अस्पताल पहुंचाया गया था. सेना ने इस पहलू का इस्तेमाल अपने बचाव के लिए दलील तैयार करने के लिए किया है.

सेना के एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर हमारे जवान वहां सिर्फ हत्या करने के इरादे से गए होते, तो क्या आपको लगता है कि इन दोनों को छोड़ दिया गया होता. हमारे जवानों ने अपनी जान को जोखिम में डालकर इन्हें अस्पताल पहुंचाया.’

घटना की टाइमलाइन के साथ-साथ शेइवांग ओर येइवांग के बयान इस गोलीकांड के घटित होने के समय का निर्धारण करने की दृष्टि से बेहद अहम हैं. और उनके दावों को पुख्ता करते हुए एक स्वतंत्र गवाह, थोनवांग, जो मास्टर्स के छात्र हैं, एक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के साथ सामने आए हैं. थोनवांग ने जब पहली बार गोलियां चलने की आवाज सुनी तो वह एक फोन कॉल पर थे. अपने बयान में उन्होंने कहा कि उन्होंने तुरंत अपना फोन काट दिया और फोन को गोलियों के चलने की आवाज की दिशा में करके वीडियो रिकॉर्डिंग करना शुरू कर दिया. वह 48 सेकेंड तक रिकॉर्डिंग करते रहे.

अपने बयान में उन्होंने कहा है कि गोलीबारी अगले 30-35 सेकेंड तक और होती रही. उसके फोन को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया और रिपोर्ट ने समय का निर्धारण शाम के 4:26 बजे के तौर पर किया है. यह सेना के उस दावे की पोल खोल देता है कि गोलीबारी पांच सेकेंड से भी कम समय तक चली.

थोनवांग की रिकॉर्डिंग ने बर्स्ट फायरिंग की आवाज को भी कैद किया है. बर्स्ट मोड फायरिंग गोली चलाने वाले को एक बार ट्रिगर दबाने से पहले से तय राउंड -जो कि सामान्य तौर पर दो या तीन होता है- चलाने में सक्षम बनाता है.

अपने बयान में टीम कमांडर ने यह दावा किया था कि उनकी टीम ने बस एक नियंत्रित फायरिंग की थी और यह फायरिंग चार से पांच सेकेंड तक ही चली. एसआईटी का दावा है कि यह झूठ है. इसके अलावा फॉरेंसिक विश्लेषण में यह भी स्थापित हुआ है कि सेना के जवानों ने एक अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर का इस्तेमाल किया था, जिसके कारण एक भीषण धमाका हआ था. पहली घटना में 250 राउंड से ज्यादा गोलियां (कुल 911 राउंड में से) चलाई गई थीं. दूसरी घटना के दौरान 600 से ज्यादा चलाई गई थीं.

फायरिंग की घटना के बाद अधिकारी और उनके जवान घटनास्थल पर 5 घंटे के करीब तक रुके थे. एसआईटी का कहना है कि ऐसा सबूतों को मिटाने के लिए किया गया था. लेकिन सेना के स्रोत का दावा है कि ‘दल इस उम्मीद के साथ घटना स्थल पर रुका था कि स्थानीय पुलिस वहां पहुंच जाएगी और आगे की प्रक्रिया (शवों को सुपुर्द करने में) में उनकी मदद करेगी. सेना के उस स्रोत का कहना है कि अगर पुलिस सही समय पर पहुंच जाती, तो ग्रामीणों ने सेना के जवानों पर हमला नहीं किया होता.’

सेना स्थानीय पुलिस पर आरोप लगा रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसने ऑपरेशन को लेकर नगालैंड पुलिस को अंधेरे में रखा था. सेना लंबे समय से सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के दमनकारी प्रावधानों की आड़ में छिपती रही है जो कि उनके कार्यक्षेत्र में गोली चलाने की बिना शर्त इजाजत देती है. लेकिन वही विशेष कानून सेना पर अपने ऑपरेशनों के बारे में स्थानीय पुलिस को जानकारी देने की भी जिम्मेदारी डालता है.

दिसंबर 2021 में मोन जिले में सशस्त्र बलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के विरोध में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया था. (फाइल फोटो: पीटीआई)

एसआईटी ने लिखा है कि  ‘स्थानीय पुलिस को ऑपरेशन के नतीजों के बारे में स्पष्ट तौर पर सूचना नहीं देना 27 असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर और सेक्टर 7, असम राइफल्स के कमांडर- जिनके उत्तरदायित्व के क्षेत्र में ऑपरेशन चलाया गया था- की असफलता थी. स्थानीय पुलिस को ऑपरेशन के बारे में हर छोटी से छोटी जानकारी स्पष्ट तौर पर देनी चाहिए- ऑपरेशन में कौन-सा विंग शामिल है, ऑपरेशन ठीक-ठीक किस जगह होने जा रहा है, क्या ऑपरेशन पूरा हो गया है, ऑपरेशन में कितने लोग मारे गए, कितने बचे, क्या-क्या बरामद किया गया, सर्च को लेकर प्राथमिक पर्यवेक्षण और मारे गए लोगों की पहचान आदि की जानकारी स्पष्ट तौर पर स्थानीय पुलिस को दी जानी चाहिए.

चार्जशीट में कहा गया है घात लगाकर हमला करने से पहले घात-टुकड़ी (एंबुश पार्टी) को ‘जिन पर घात लगाकर हमला किया जाना है, उन लोगों की सकारात्मक पहचान (पॉजिटिव आइडेंटिटी) को सुनिश्चित कर लेना चाहिए था.’ लेकिन, यहां ऑपरेशन के बाद टीम पुलिस के आने का इंतजार कर रही थी कि वह आए और मारे गए लोगों की पहचान का निर्धारण करे.’

एसआईटी ने सेना पर मारे गए आम नागरिकों की जानकारी स्थानीय पुलिस से काफी समय तक छिपाए रखने का आरोप लगाया है. अपनी चार्जशीट में एसआईटी तिजित के एसडीपीओ को अपनी टीम के साथ वारदात स्थल की ओर जाने में देरी के लिए भी जिम्मेदार ठहराया है.’

नाम न उजागर करने की शर्त पर द वायर  से बात करने वाले एक सेना के अधिकारी ने दावा किया है कि ‘घात लगाकर हमला करने (एंबुश) से पहले स्थानीय पुलिस को सूचना देना सेना के खिलाफ जा सकता है, क्योंकि यह सूचना निश्चित ही लीक हो जाएगी जो सेना की सुरक्षा के साथ समझौता करना होगा. हालांकि यह एसओपी का हिस्सा है, लेकिन उत्तर-पूर्व और कश्मीर जैसी अशांत जगहों में ऐसी उम्मीद लगाना अव्यावहारिक है.’

स्रोत ने यह भी कहा कि स्थानीय पुलिस में विश्वास न होने के कारण ज्यादातर बार सूचनाओं को साझा नहीं किया जाता है.

फायरिंग की दूसरी घटना में, जिसमें सात लोग मारे गए और कई और ग्रामीण गंभीर तरीके से जख्मी हो गए, सेना के जवान भी घायल हुए थे. इनमें से दो कई हफ्तों तक इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में रहे. सेना के स्रोत का दावा है कि अगर ग्रामीणों ने सेना के जवानों पर हिंसक तरीके से हमला नहीं किया होता, तो फायरिंग की दूसरी घटना नहीं हुई होती. ग्रामीण काफी ज्यादा उत्तेजित थे; उन्होंने सेना के जवानों का रास्ता रोक दिया था और यह मांग कर रहे थे कि अपने राइफलों में लोड मैगजीन को निकाल दें. जवानों ने सिर्फ ग्रामीणों को शांत करने के लिए, उनसे जैसा कहा गया, वैसा किया.

स्रोत का दावा है कि गांव वालों ने बाद में उनके हथियार भी छीन लिए थे. इस घटना के ठीक बार सेना द्वारा दायर एफआईआर मे भी यह दावा किया गया है. एफआईआर मे कहा गया है कि तीन टैवर राइफलों और यूबीजीएल के साथ एक टैवर राइफल सेना से छीन लिया गया था.

जांच के दौरान, 21 पैरा (एसएफ) के कमांडिंग ऑफिसर ने दावा किया कि उनके एंबुश प्लान को जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) से स्वीकृति मिली हुई थी. लेकिन कमांडिंग ऑफिसर अपने इस दावे के समर्थन में कोई लिखित आदेश पेश नहीं कर पाए. एसआईटी ने इसे एक गंभीर चूक बताया है.

चार्जशीट में कहा गया है, ‘यह समझ पाना मुश्किल है कि देश के नागरिकों (भले ही वे उग्रवादी हों) से संबंधित संवेदनशील प्रकृति के ऑपरेशन भारतीय सेना द्वारा कोई लिखित रिकॉर्ड रखे बगैर (घटना से पहले या बाद के) अंजाम दिए जा रहे हैं. यह एएफएसपीए के तहत अशांत क्षेत्रों में दिए गए विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग के बराबर है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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