एल्गार परिषद मामले के आरोपी गौतम नवलखा और सागर गोरखे जेल में मच्छरदानी का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी. सुनवाई के दौरान जेल अधिकारियों ने बताया कि क़ैदियों द्वारा मच्छरदानी का उपयोग देना जोख़िम भरा है, क्योंकि इनका उपयोग कोई व्यक्ति स्वयं या दूसरों का गला घोंटने के लिए कर सकता है. इधर, अदालत ने मामले में शोमा सेन, सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग और महेश राउत की ज़मानत याचिका भी ख़ारिज कर दी है.
मुंबई: मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने बीते 7 जुलाई को एल्गार परिषद मामले के आरोपी गौतम नवलखा और सागर गोरखे की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने जेल में मच्छरदानी का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी.
इस मामले में नवलखा, गोरखे और अन्य आरोपी फिलहाल नवी मुंबई के तलोजा जेल में बंद हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जेल अधिकारियों द्वारा मच्छरदानी छीन लिए जाने के बाद उन्होंने अदालत का रुख किया था.
जेल अधिकारियों ने अदालत को बताया कि कैदियों को मच्छरदानी का उपयोग करने की अनुमति देना जोखिम भरा है, क्योंकि उनका उपयोग कोई व्यक्ति स्वयं या दूसरों का गला घोंटने के लिए कर सकता है.
विशेष न्यायाधीश राजेश कटारिया ने आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन उन्हें मच्छर भगाने वाले मलहम और धूप का उपयोग करने की अनुमति दी.
न्यायाधीश ने जेल अधीक्षक को अवांछित पौधों की निराई सहित मच्छरों को दूर रखने के लिए आवश्यक उपाय करने का भी निर्देश दिया.
अदालत ने कहा कि समय-समय पर मच्छर रोधी कीटनाशकों का छिड़काव किया जाना चाहिए और यह हर पखवाड़े बारिश के मौसम में किया जाना चाहिए.
नवलखा और अन्य गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से संबंधित है. पुलिस ने आरोप लगाया था कि इस आयोजन को माओवादियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था.
एल्गार परिषद मामला: एनआईए अदालत ने पांच आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज की
मुंबई में एक विशेष एनआईए अदालत ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में शोमा सेन और चार अन्य आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी तथा कहा कि 2018 में दायर की गई अर्जी की सुनवाई के लिए उन्होंने कोई कोशिश नहीं की थी.
अदालत ने कहा कि उन्होंने इतने लंबे समय तक सुनवाई के लिए अर्जी आगे नहीं बढ़ाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया और अपनी इस गलती से लाभ हासिल करने के लिए वह दावा नहीं कर सकते.
विशेष एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) न्यायाधीश राजेश कटारिया ने मंगलवार (पांच जुलाई) को प्रोफेसर शोमा सेन, सुधीर धावले, कार्यकर्ता रोना विल्सन, अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग और महेश राउत की जमानत याचिका खारिज कर दी.
आरोपियों ने मूल रूप से पुणे की एक सत्र अदालत में 2018 में जमानत के लिए अर्जी दायर की थी, जब मामले की जांच स्थानीय पुलिस कर रही थी.
आरोपियों ने अपनी अर्जी में दावा किया था कि मामले में आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए सत्र अदालत द्वारा 90 दिन का समय विस्तार किया जाना अवैध है और इसलिए वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत जमानत के हकदार हैं.
इसके बाद 2019 में आरोपियों ने अर्जी दायर कर इस आधार पर राहत मांगी थी कि अदालत उनके खिलाफ संज्ञान लेने में सक्षम नहीं है. यह अर्जी पुणे की अदालत ने खारिज कर दी थी और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी जमानत देने से इनकार कर दिया था.
न्यायाधीश ने कहा कि अर्जियां 2018 में दायर की गई थीं और रिकार्ड से पता चलता है कि आवेदकों ने मौजूदा अर्जी पर सुनवाई के लिए पुणे की अदालत या एनआईए अदालत के समक्ष कोई कोशिश नहीं की.
मालूम हो कि बीते अप्रैल महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद मामले के आरोपियों- वरवरा राव, अरुण फरेरा और वर्नोन गॉन्जाल्विस की भी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था. याचिका में हाईकोर्ट के उस आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था, जिसमें उन्हें स्वत: जमानत (डिफॉल्ट जमानत) देने से इनकार किया गया था.
तीनों आरोपियों ने जस्टिस शिंदे की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित 1 दिसंबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मामले में सह-अभियुक्त वकील सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी गई थी, लेकिन इन तीन याचिकाकर्ताओं सहित आठ अन्य आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था.
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद में कथित भड़काऊ भाषण देने से संबद्ध है. मामले में केवल एक अन्य आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
फादर स्टेन स्वामी की पिछले साल पांच जुलाई को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे. अन्य आरोपी कार्यकर्ता विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल में बंद हैं.
अन्य गिरफ्तार कार्यकर्ताओं में लेखक और मुंबई के दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, विस्थापितों के लिए काम करने वाले गढ़-चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, नागपुर यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख रह चुकीं शोमा सेन, वकील अरुण फरेरा, लेखक वरवरा राव, कार्यकर्ता वर्नोन गॉन्जाल्विस, कैदियों के अधिकार के लिए काम करने वाले रोना विल्सन, यूएपीए विशेषज्ञ और नागपुर से वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू और कबीर कला मंच के कलाकार, सागर गोरखे, रमेश गायचोर और ज्योति जगताप शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)