यूपी पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज एक और एफआईआर के सिलसिले में वॉरंट जारी किया

यह नया वॉरंट लखीमपुर पुलिस ने सुदर्शन न्यूज़ के एक रिपोर्टर की शिकायत पर मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ साल 2021 में दर्ज एक एफआईआर के सिलसिले में जारी किया है. लखीमपुर पुलिस का यह वॉरंट शुक्रवार को सीतापुर पुलिस द्वारा दर्ज मामले में ज़ुबैर को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत मिलने के बाद सामने आया है.

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मोहम्मद ज़ुबैर. (फोटो साभार: ट्विटर/@zoo_bear)

यह नया वॉरंट लखीमपुर पुलिस ने सुदर्शन न्यूज़ के एक रिपोर्टर की शिकायत पर मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ साल 2021 में दर्ज एक एफआईआर के सिलसिले में जारी किया है. लखीमपुर पुलिस का यह वॉरंट शुक्रवार को सीतापुर पुलिस द्वारा दर्ज मामले में ज़ुबैर को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम ज़मानत मिलने के बाद सामने आया है.

मोहम्मद ज़ुबैर. (फोटो साभार: ट्विटर/@zoo_bear)

नई दिल्ली: ऑल्ट न्यूज़ के पत्रकार मोहम्मद जुबैर को शुक्रवार को एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत देने के कुछ घंटों बाद उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक और एफआईआर सामने आई है. इस मामले में लखीमपुर खीरी पुलिस ने उनके खिलाफ वॉरंट लिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, लखीमपुर पुलिस ने 18 सितंबर 2021 को एक अदालत के निर्देश पर जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. 16 मई, 2021 को किए गए एक ट्वीट के लिए उन पर धारा 153-ए (दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत आरोप लगाया गया था. इस ट्वीट में जुबैर ने बताया था कि कट्टर दक्षिणपंथी चैनल सुदर्शन टीवी ने 2021 में गाजा पट्टी पर इजरायल की बमबारी की रिपोर्ट करते हुए प्रसिद्ध मदीना मस्जिद की छेड़छाड़ की गई तस्वीर का इस्तेमाल किया था.

हैरानी की बात यह है कि जिस शिकायत के आधार पर अदालत ने यूपी पुलिस को जुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया, वह लखीमपुर के एक सुदर्शन टीवी रिपोर्टर ने दर्ज करवाई है, जिसने अपनी शिकायत में ट्विटर को भी सहआरोपी बताया है.

16 मई, 2021 के अपने ट्वीट में जुबैर ने सुदर्शन टीवी के ट्विटर हैंडल से ली गई मदीना मस्जिद की छेड़छाड़ की गई तस्वीरें पोस्ट करते हुए सवाल किया था, ‘क्या यह रिपोर्टिंग है या हिंसा भड़काने की कोशिश?’

हिंदू दक्षिणपंथियों के सोशल मीडिया पोस्ट में मदीना की अल-मस्जिद अन नबावी मस्जिद का लगातार दुरुपयोग एक नियमित और आम बात हो चुकी है. गाजा में इजरायली मिसाइल हमलों के दौरान मस्जिद पर बमबारी की फोटोशॉप की गई तस्वीरों को फैक्ट-चेक करते हुए जुबैर ने उत्तर प्रदेश पुलिस, नोएडा पुलिस और यूपी के डीजीपी से भी आग्रह किया कि वह हिंसा भड़काने के इस जानबूझकर किए गए प्रयास के खिलाफ कार्रवाई करें.

हालांकि पुलिस ने तक कोई कदम नहीं उठाया. अब घटना के लगभग एक साल बाद पुलिस ने उस ज़ुबैर के खिलाफ सितंबर 2021 में दर्ज की गई एफआईआर को जुबैर के खिलाफ वॉरंट पाने के लिए खोद निकाला है. वो भी ऐसे समय में जब उन्हें तीन हिंदुत्ववादी नेताओं-यति नरसिंहानंद, महंत बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप, जो हेट स्पीच के मामले में आरोपी हैं, को ‘घृणा फ़ैलाने वाला’ कहने के आरोप में सीतापुर पुलिस द्वारा दर्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट से पांच दिन की अंतरिम जमानत मिली है.

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के मोहम्मदी थाने में शिकायत दर्ज कराने वाले सुदर्शन टीवी के रिपोर्टर आशीष कुमार कटियार ने आरोप लगाया है कि जुबैर ने दुनिया भर के मुसलमानों को ‘चैनल के खिलाफ लामबंद करने और देश में दंगे शुरू करने के लिए’ भड़काने के लिए एक ‘फर्जी ग्राफिक’ का इस्तेमाल किया.

कटियार का दावा है, ‘यह मामला 14 मई 2021 का है जब आरोपी नं. 1 (जुबैर) आरोपी नं. 2 (ट्विटर) की मदद से एक नकली ग्राफिक के आधार पर एक अफवाह शुरू की जिसमें आरोप लगाया गया कि सुदर्शन समाचार द्वारा इस्तेमाल किया गया ग्राफिक मस्जिद नबवी मदीना का है. उन्होंने दुनिया भर के मुसलमानों से अपील की कि वे बवाल पैदा करें और चैनल के खिलाफ लामबंद हों और देशों में दंगे शुरू करें. कुछ लोगों ने इस खबर पर प्रतिक्रिया दी और राष्ट्रविरोधी जहर फैलाया गया.’

इसके आगे शिकायत में यह झूठ जोड़ा गया कि ‘वास्तव में, तस्वीर मदीना की नहीं बल्कि गाजा की है और दोनों तस्वीरों में हरे रंग का इस्तेमाल मस्जिदों को दिखाने के लिए किया गया था.’ हालांकि जुबैर के ट्वीट से स्पष्ट दिखता है कि मदीना मस्जिद के फोटो को सुदर्शन द्वारा गाजा दिखाने के लिए इस्तेमाल किए गए फोटो पर सुपरइंपोज (किसी तस्वीर को एडिट करके किसी अन्य के ऊपर लगाना) किया गया था.

कटियार ने यह आरोप लगाते हुए कि जुबैर के ट्वीट ने ‘चैनल की प्रतिष्ठा’ और ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ बिगाड़ा तथा ‘उनको मानसिक क्षति’ पहुंचाई, जुबैर और ट्विटर के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई की मांग की थी.

मोहम्मद जुबैर को सबसे पहले दिल्ली पुलिस ने बीते 27 जून को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए किया गया जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) और 153 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच विद्वेष को बढ़ाना) के तहत मामला दर्ज कर गिरफ़्तार किया गया था.

बीते दो जुलाई को दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर में आपराधिक साजिश, सबूत नष्ट करने और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 35 के तहत नए आरोप जोड़े हैं. ये आरोप जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की दखल का द्वार खोलते हैं.

जुबैर की गिरफ्तारी चार साल पुराने 2018 के उस ट्वीट को लेकर हुई थी जिसमें 1983 में बनी फिल्म ‘किसी से न कहना’ का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया गया था.

ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर में उल्लेख था, ‘हनुमान भक्त (@balajikijaiin) नामक ट्विटर हैंडल से मोहम्मद जुबैर (@zoo_bear) के ट्विटर हैंडल द्वारा किए गए एक ट्वीट को साझा किया गया था, जिसमें जुबैर ने एक फोटो ट्वीट की थी, जिसमें एक जिस पर साइनबोर्ड पर होटल का नाम ‘हनीमून होटल’ से बदलकर ‘हनुमान होटल’ दिखाया गया था. तस्वीर के साथ जुबैर ने ‘2014 से पहले हनीमून होटल…  2014 के बाद हनुमान होटल…’ लिखा था.’

इस संबंध में दिल्ली पुलिस की एफआईआर के अनुसार, ट्विटर यूजर (@balajikijaiin) ने साल 2018 में जुबैर द्वारा शेयर किए गए एक फिल्म के स्क्रीनशॉट वाले ट्वीट को लेकर लिखा था कि ‘हमारे भगवान हनुमान जी को हनीमून से जोड़ा जा रहा है जो प्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं का अपमान है क्योंकि वह (भगवान हनुमान) ब्रह्मचारी हैं. कृपया इस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करें.’

बाद में, यह ट्विटर हैंडल डिलीट कर दिया गया. अब यह हैंडल दोबारा सक्रिय हुआ है, लेकिन जुबैर से संबंधित ट्वीट डिलीट कर दिया गया है.

दो जुलाई इसी मामले में मोहम्मद जुबैर को अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. इसके बाद सीतापुर पुलिस ने उनके यहां दर्ज एक मामले के संबंध में उनकी हिरासत मांगी थी, जिसके बाद उन्हें सीतापुर ले जाया गया. सुप्रीम कोर्ट से उन्हें इसी मामले में अंतरिम जमानत मिली है. हालांकि दिल्ली पुलिस और अब लखीमपुर पुलिस द्वारा दर्ज मामले के चलते वे अभी हिरासत में ही रहेंगे.

(नोट: (5 नवंबर 2022) इस ख़बर को टेक फॉग ऐप संबंधी संदर्भ हटाने के लिए संपादित किया गया है. टेक फॉग संबंधी रिपोर्ट्स को वायर द्वारा की जा रही आंतरिक समीक्षा के चलते सार्वजनिक पटल से हटाया गया है.)

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