गुजरात: स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता जोड़ने संबंधी प्रस्ताव पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा

इस साल मार्च में गुजरात सरकार ने ऐलान किया था कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से कक्षा 6 से 12 तक के स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किया जाएगा. इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था, जिसे संविधान के विरुद्ध बताते हुए ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है.

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गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

इस साल मार्च में गुजरात सरकार ने ऐलान किया था कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से कक्षा 6 से 12 तक के स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किया जाएगा. इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था, जिसे संविधान के विरुद्ध बताते हुए ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने स्कूलों में भगवद गीता को प्रार्थना कार्यक्रम और अन्य गतिविधियों में श्लोक पाठ के रूप में प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया.

उच्च न्यायालय ने हालांकि इस प्रस्ताव पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और राज्य सरकार से 18 अगस्त तक जवाब मांगा है.

चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की खंडपीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया.

याचिका में स्कूलों में इस शैक्षणिक वर्ष से भगवद गीता को प्रार्थना और श्लोक पाठ आदि जैसी गतिविधियों के रूप में प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को चुनौती दी गई थी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने संवैधानिक वैधता के आधार पर प्रस्ताव को चुनौती दी और दावा किया कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लंघन है.

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को सहायक सॉलिसिटर जनरल को जनहित याचिका की एक प्रति देने का भी निर्देश दिया, क्योंकि केंद्र सरकार को भी प्रतिवादी बनाया गया है.

बता दें कि गुजरात सरकार ने इस साल मार्च में विधानसभा में ऐलान किया था कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से भगवद गीता राज्य भर में कक्षा 6 से 12 के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होगी.

गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने राज्य के स्कूलों में भगवद गीता को प्रार्थना और श्लोक पाठ आदि जैसी गतिविधियों के रूप में प्रस्तुत करने की घोषणा की थी.

उन्होंने कहा था कि स्कूल धर्मग्रंथों पर आधारित गतिविधियों, जैसे प्रार्थना, श्लोक पाठ, समझने की शक्ति, नाटक, प्रश्नोत्तरी और भाषण प्रतियोगिताओं का भी आयोजन करेंगे.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील मिहिर जोशी ने कहा कि भारतीय संस्कृति विविधतापूर्ण है. किसी एक धर्म की धार्मिक पुस्तक को प्रधानता देने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

उन्होंने तर्क दिया, ‘मुद्दा यह है कि क्या इस तरह एक पवित्र ग्रंथ को नियम बनाकर लागू किया जा सकता है.’

अपनी बात के समर्थन में जोशी ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 का भी हवाला देते हुए कहा कि राज्य संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक उपदेश नहीं दिए जा सकते हैं.

जोशी ने कहा था, ‘राज्य शिक्षा विभाग ने एक प्रस्ताव के माध्यम से 2022-23 से कक्षा 6 से कक्षा 12 तक के पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल करते हुए भारतीय संस्कृति और भारतीय ज्ञान प्रणाली को इस तरह से शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने के निर्देश दिए हैं ताकि बच्चे इसे समझ सकें और इसमें रुचि लें.’

कक्षा 6 से 8 में गीता को शैक्षिक विषय की पाठ्यपुस्तकों में कहानियों, पठन सामग्री के रूप में लागू किया जाएगा.

जबकि, कक्षा 9-12 में गीता को प्राथमिक भाषा की पाठ्यपुस्तकों में कहानियों, पठन सामग्री आदि के रूप में शामिल किया जाएगा. साथ ही, यह प्रार्थना, विभिन्न गतिविधियों जैसे कि गीता आधारित श्लोक पाठ, बहस, भाषण, नाटक, चित्रकला आदि प्रतियोगिताओं का हिस्सा होगी.

जीतू वघानी ने कहा था कि ग्रंथ के आधार पर स्कूल प्रार्थना, श्लोक पाठ, गद्यांश, नाटक, क्विज, पेंटिंग जैसी गतिविधियां भी आयोजित करेंगे.  पुस्तक एवं ऑडियो-वीडियो सीडी जैसी अध्ययन सामग्री सरकार द्वारा विद्यालयों को उपलब्ध कराई जाएगी.

जोशी ने प्रस्ताव के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग के समर्थन में तर्क दिया कि गुजरात शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद को इस प्रकार का पाठ्यक्रम तैयार करने के निर्देश देना क्षेत्राधिकार के बाहर है और वैधानिक प्रावधानों के विपरीत है.

हाईकोर्ट ने हालांकि प्रस्ताव पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि वह बिना हलफनामे के इस पर विचार नहीं करेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)