पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 347 लोगों की जान गई: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं. इस दौरान सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोगों की जान गई है.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं. इस दौरान सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोगों की जान गई है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि वर्ष 2017 से अब तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 347 लोगों की मौत हुई. ये संख्या सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में 92, वर्ष 2018 में 67, वर्ष 2019 में 116, वर्ष 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं.

केंद्र द्वारा पेश किए साल-वार मौतों के आंकड़े में 2019 में की सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, आवास और शहरी मामलों के कनिष्ठ मंत्री कौशल किशोर द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 47, तमिलनाडु में 43 और दिल्ली में 42 श्रमिकों की मौत हो गई.

उन्होंने कहा कि हरियाणा में 36 मौतें, महाराष्ट्र में 30, गुजरात में 28, कर्नाटक में 26, पश्चिम बंगाल में 19, पंजाब में 14 और राजस्थान में 13 मौतें हुई हैं.

राष्ट्रीय राजधानी में 2017 में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मारे गए लोगों की संख्या 13 थी, 2018 में 11, 2019 में 10 और 2020 और 2021 में चार-चार मौतें हुईं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 51 मौतें हुईं. इसके बाद तमिलनाडु में 48 और दिल्ली में 44 सफाईकर्मियों की मौत हुई.

साल 2019 में उत्तर प्रदेश में 26 सफाईकर्मियों की मौत हुई. 2022 में अब तक 17 श्रमिकों की जान जा चुकी है, जिनमें सबसे अधिक तमिलनाडु में पांच और उसके बाद उत्तर प्रदेश में चार लोगों की जान गई है.

मंत्री वीरेंद्र कुमार ने ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए केंद्र द्वारा किए गए उपायों का उल्लेख करते हुए कहा कि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की घटक प्रयोगशाला ने 5000 की जनसंख्या घनत्व वाले शहरी और स्थानीय निकायों के लिए मशीनीकृत नाली सफाई प्रणाली के लिए एक एकीकृत समाधान विकसित किया है, जो 300 मिमी तक की सीवर लाइन की रुकावट को साफ कर सकता है.

उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकार ने मैला ढोने वालों के लिए कई योजनाएं भी तैयार की हैं, जैसे कि मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना, स्वच्छता उद्यमी योजना, हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना और अन्य.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

गौरतलब है कि इससे पहले पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि देश में 58,098 हाथ से मैला ढोने वाले हैं और उनमें से 42,594 अनुसूचित जाति के हैं.

सरकार ने कहा था कि देश में इन पहचानशुदा 43,797 लोगों में से 42,594 अनुसूचित जातियों से हैं, जबकि 421 अनुसूचित जनजाति से हैं. कुल 431 लोग अन्य पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि 351 अन्य श्रेणी से हैं.

इससे पहले फरवरी 2021 केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)