बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार से कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर व अन्य समाज सुधारकों के लेखों के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के प्रयास करने होंगे. पीठ ने कहा कि सरकार ने कई सुधारकों के हस्तलिखित साहित्य के ‘अद्भुत’ खंड प्रकाशित किए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से तमाम लोगों को इसके बारे में पता नहीं है.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार को समय के साथ अपनी मानसिकता बदलनी होगी और बाबा साहेब आंबेडकर तथा अन्य समाज सुधारकों के लेखों के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के प्रयास करने होंगे.
जस्टिस प्रसन्न वारले और जस्टिस किशोर संत की खंडपीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने कई समाज सुधारकों के हस्तलिखित साहित्य के ‘अद्भुत’ खंड प्रकाशित किए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से तमाम लोगों को इसके बारे में पता नहीं है.
अदालत ने कहा कि सरकार को इस बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए.
अदालत ने कहा, ‘महाराष्ट्र सरकार द्वारा इतने सारे समाज सुधारकों के खंड (लेखन) प्रकाशित किए जाते हैं, लेकिन कितने लोग इसके बारे में जानते हैं? ये खंड दशकों पहले प्रकाशित हुए हैं और उनमें से कुछ बहुत अद्भुत हैं. इन पर ध्यान नहीं दिया जाता है. पाठकों को पुस्तकों की दुकानों तक लाना होगा.’
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को अपनी मानसिकता बदलनी होगी. अदालत ने कहा कि पहले लोग पुस्तकों की दुकानों पर जाया करते थे, लेकिन अब यह सब कुछ घर पर उपलब्ध है, प्रकाशकों को लोगों को दुकानों तक लाना होगा.
अदालत ने कहा, ‘आप जागरूकता के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे. आपको ठोस और सकारात्मक प्रयास करने होंगे.’
अदालत ने कहा कि बहुत से लोगों को यह तक पता नहीं है कि पुस्तकों की सरकारी दुकानें कहां हैं.
पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर उसने दिसंबर 2021 में स्वत: संज्ञान लिया था. इससे पहले खबर आई थी कि महाराष्ट्र सरकार ने आंबेडकर के साहित्य के प्रकाशन की अपनी योजना को रोक दिया है.
अदालत ने राज्य सरकारी की ओर से दाखिल हलफनामे पर भी असंतोष प्रकट किया और कहा कि अदालत ने जो आवश्यक जानकारी मांगी थी, वह इसमें नहीं दी गई है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हलफनामे में इस मुद्दे को हल करने के लिए समिति के गठन, समिति के सदस्यों के नाम, यदि कोई बैठक हुई है और उनके पारिश्रमिक का विवरण नहीं है.
पीठ ने सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया को दो सप्ताह के भीतर एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
जस्टिस वारले ने कहा, ‘हम इस दृष्टिकोण (सरकार के) से संतुष्ट नहीं हैं. इस तरह से हम राज्य सरकार से ऐसे मामलों को संभालने की उम्मीद नहीं करते हैं.’
कंथारिया ने अदालत को बताया कि आंबेडकर के लेखन के खंड कॉलेजों और अन्य संस्थानों में वितरित किए जा रहे हैं. लेकिन, हाईकोर्ट ने कहा कि वह चाहता है कि समिति यह कहे न कि सरकार.
अदालत ने कहा, ‘समिति को एक बयान देना चाहिए कि ये किताबें पाठकों तक पहुंच रही हैं. हम यह देखना चाहते हैं कि क्या सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठा रही है कि ये खंड उचित समय पर प्रकाशित हों.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)