सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह सचिव से भीड़ हिंसा और नफ़रत भरे भाषण जैसी अप्रिय स्थितियों को रोकने के लिए निवारक, सुधारात्मक और उपचारात्मक उपायों के संबंध में उसके पूर्व के दिशानिर्देशों के अनुपालन को लेकर राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों से सूचना एकत्रित कर कोर्ट को इसकी जानकारी देने को कहा है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय गृह सचिव को बृहस्पतिवार को कहा कि वह भीड़ हिंसा और नफरती भाषण (हेट स्पीच) जैसी अप्रिय स्थितियों को रोकने के लिए निवारक, सुधारात्मक और उपचारात्मक उपायों के संबंध में उसके (शीर्ष अदालत के) पूर्व के दिशानिर्देशों के अनुपालन को लेकर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सूचना एकत्रित करें.
नफरती भाषण और अफवाह फैलाने से संबंधित याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि सचिव तीन सप्ताह के भीतर संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों से सीधे आवश्यक जानकारी जुटा सकते हैं और इसे राज्यवार संकलित कर सकते हैं.
द हिंदू के अनुसार, अदालत ने याचिकाकर्ताओं- जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष- को हेट स्पीच के उदाहरणों का एक चार्ट तैयार करने और इसे एक सप्ताह में राज्यों को प्रदान करने के लिए कहा. इसके बाद राज्य सरकारें इन मामलों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देंगी.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस ए एस ओका और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अभद्र भाषा और अपमान की घटनाओं को उजागर किया गया था.
पीठ ने 2018 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्णयों का उल्लेख किया और कहा कि सूचनाएं एकत्रित करने के बाद उनके मिलान से पता चलेगा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इन दिशानिर्देशों का अनुपालन कैसे किया है.
पीठ ने कहा, ‘गृह विभाग के सचिव तीन सप्ताह के भीतर संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिव से सीधे आवश्यक जानकारी इकट्ठा कर उसे संकलित कर सकते हैं.’
पीठ ने आगे कहा कि उसके समक्ष छह सप्ताह के भीतर राज्यवार जानकारी रखी जाए.
पीठ ने संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों को केंद्रीय गृह सचिव से पत्र प्राप्त होने के दो सप्ताह के भीतर उन्हें आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह (केंद्रीय गृह सचिव) आवश्यक जानकारी संकलित करने और अदालत के समक्ष उसे पेश करने की स्थिति में हैं.
शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी.
रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि शीर्ष अदालत के 2018 तहसीन पूनावाला के फैसले के बावजूद ‘नफरत भरे भाषणों का दंड से मुक्ति जारी’ है.
उस फैसले में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए रोकथाम, उपचार और दंडात्मक उपायों का प्रावधान करने के लिए अनेक निर्देश दिए थे. साथ ही कहा था कि घृणा अपराध असहिष्णुता, वैचारिक प्रभुत्व और पूर्वाग्रह का नतीजा हैं.
अदालत ने यह भी कहा था कि यदि कोई पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का अधिकारी इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहता है तो इसे जान-बूझकर लापरवाही अथवा कदाचार माना जाएगा और इसके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए.
गुरुवार को शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव को नफरती भाषण और भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए निवारक, सुधारात्मक और उपचारात्मक उपायों के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा पहले दिए गए निर्देशों के अनुपालन के संबंध में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जानकारी एकत्र करने के लिए कहा.
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इस मुद्दे की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और इस अदालत द्वारा जारी सामान्य निर्देशों की पृष्ठभूमि में … हम सचिव, गृह विभाग, भारत सरकार से संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से आवश्यक जानकारी एकत्र करने का अनुरोध करते हैं.’
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) सहित प्रतिवादी तीन सप्ताह के भीतर संबंधित रिट याचिकाओं पर जवाब दाखिल करेंगे.
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील से पूछा कि क्या ये मामले अलग-अलग राज्यों से संबंधित हैं. इस मामले में पेश हुए एक वकील ने कहा कि ये मुद्दे विभिन्न राज्यों में हुई घटनाओं से संबंधित हैं.
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता केएम नटराज ने कहा कि वे विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जानकारी एकत्र कर सकते हैं कि वहां क्या हुआ और शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन करने के लिए क्या उठाए गए हैं.
पीठ ने कहा, ‘पहले कदम के रूप में कम से कम यह जानकारी हमारे सामने होनी चाहिए. कौन से राज्य सक्रिय हैं, कौन से हैं, जो बिल्कुल भी काम नहीं कर रहे हैं और वो कौन से हैं जिन्होंने आंशिक रूप से कार्य किया है.’
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने पीठ को बताया कि उन्हें एक याचिका में पक्षकार बनाया गया है, जिसमें केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय कानूनों की जांच करने और नफरत भरे भाषणों और अफवाहों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी और कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है.
पीठ ने चुनाव आयोग से इस मामले को प्रतिकूल न मानने को कहा और चुनाव आयोग से इसमें कदम उठाने लिए कहा.
13 मई को शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय को चुनाव आयोग को एक पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी, जो इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक हैं और जिन्होंने नफरती भाषण और अफवाह फैलाने का मुद्दा उठाया है.
उपाध्याय ने अपनी याचिका में वैकल्पिक रूप से केंद्र सरकार को नफरती भाषण पर विधि आयोग की रिपोर्ट-267 की सिफारिशों को लागू करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की है.
उपाध्याय को खुद दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2021 में जंतर मंतर पर लगाए गए मुस्लिम विरोधी नारों से संबंधित एक मामले में गिरफ्तार किया था. भाजपा नेता उपाध्याय ने दावा किया था कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें ‘फंसाया’ है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)