नगा शांति वार्ता के अंतिम समाधान में देरी के लिए आरएसएस ज़िम्मेदार: एनएससीएन (आईएम)

केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे नगा संगठनों की अगुवाई कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने दावा किया है कि दशकों से चली आ रही इस समस्या के समाधान में हो रही देरी की वजह आरएसएस द्वारा उनके अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर आपत्ति जताया जाना है.

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एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुइवाह. (फाइल फोटो: द वायर)

केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे नगा संगठनों की अगुवाई कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने दावा किया है कि दशकों से चली आ रही इस समस्या के समाधान में हो रही देरी की वजह आरएसएस द्वारा उनके अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर आपत्ति जताया जाना है.

एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुइवाह. (फाइल फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहे नगा संगठनों की अगुवाई कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड [इसाक-मुइवा] (एनएससीएन-आईएम) ने सोमवार को दावा किया कि दशकों से चल रही इस समस्या के अंतिम समाधान में देर होने की वजह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा उनके अलग झंडे और अलग संविधान की मांग पर आपत्ति जताया जाना है.

डेक्कन हेराल्ड की खबर के अनुसार, वर्तमान में सीजफायर का पालन कर रहे संगठन ने अब एक बयान में कहा कि आरएसएस ने इस प्रक्रिया को रोक दिया है और इसकी (संगठन की) मांगों पर सवाल उठाए हैं.

संगठन ने अपने बयान में कहा, ‘विडंबना यह है कि यह मामला तो बहुत पहले ही सुलझ गया था लेकिन आरएसएस का सवाल के बीच आ गया कि दो झंडे और दो संविधान कैसे हो सकते हैं. आरएसएस/हिंदुत्व के घोषणापत्र ने फ्रेमवर्क समझौते के मुख्य समझौते का तीखा खंडन किया. देरी का असल बिंदु यहीं से शुरू हुआ.’

गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है. इन संगठनों का दावा है कि नगा कभी भारत का हिस्सा नहीं थे और अपनी संप्रभुता को लेकर उन्होंने कई दशकों तक हिंसक आंदोलन चलाए हैं.

सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.

18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए गए.

एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवाह और तत्कालीन वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

हालांकि, संगठन के अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम के अपने मांग पर अड़े होने की वजह से वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. संगठन का कहना है कि सरकार ने एनएससीएन-आईएम की अलग झंडे और संविधान की मांग को माना था लेकिन आरएन रवि ने इसे खारिज कर दिया था. वर्तमान में इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व प्रमुख एके मिश्रा वार्ताकार की भूमिका में हैं.

बयान में आगे कहा गया, ‘आधिकारिक  बातचीत में न तो रवि और न ही एके मिश्रा कभी कहते हैं कि फ्रेमवर्क समझौते में किसी अलग झंडे और संविधान की बात नहीं है. विडंबना यह है कि भारत सरकार का आदतन धोखेबाज चरित्र सामने आया और टालमटोल से फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को अस्वीकार करने के भ्रम की शुरुआत हुई. निश्चित रूप से इस देरी के लिए पूरी तरह भारत सरकार जिम्मेदार है.’

मालूम हो कि 2017 में इस बातचीत में छह अन्य नगा समूह यानी एनएनपीजी शामिल हुए थे. हालांकि एनएससीएन-आईएम का कहना है कि दो एग्रीमेंट ने नगा लोगों को बांट दिया है.

संगठन ने अपने बयान में आगे कहा, ‘यदि भारत सरकार जल्द समाधान के लिए वास्तव में ईमानदार है, तो वह एक तरह के लोगों और एक आम मुद्दे के लिए दो समझौते क्यों कर रही है? ये दो समझौते प्रकृति में समानांतर हैं- एक भारतीय संविधान के भीतर है और दूसरा इसके दायरे से बाहर है. इस अनुचित नीति के साथ भारत सरकार नगाओं को परख रही है और पूरी प्रक्रिया में देरी कर रही है.’

एनएससीएन-आईएम ने आगे कहा, ‘भारत सरकार के लिए समय आ गया है कि वह इन दो समझौतों पर अपना रुख स्पष्ट करे और बताए कि इनमें से किसे अंतिम समझौते की मान्यता दी जाएगी. केवल एनएससीएन को शांति वार्ता के लिए नई दिल्ली बुलाकर, बिना डीटॉक्सीफिकेशन प्रक्रिया से गुजरे नगा राजनीतिक समाधान लाने में मदद नहीं मिलेगी.’