जघन्य अपराधों को समझौते के आधार पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में समझौते के बाद गुजरात हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने के आदेश को ख़ारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे गंभीर अपराधों को समझौते के आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकते, जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में समझौते के बाद गुजरात हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने के आदेश को ख़ारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे गंभीर अपराधों को समझौते के आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकते, जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उन जघन्य अपराधों को अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है, जो प्रकृति में निजी नहीं होते हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया, जिनके तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित अपराध के लिए मार्च 2020 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था. मामले में शिकायतकर्ता, जो मृतक का चचेरा भाई भी था, और आरोपी के बीच समझौता हो गया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के साथ समझौते के आधार पर जघन्य और गंभीर अपराधों से संबंधित प्राथमिकी या शिकायतों को रद्द करने का आदेश देना एक ‘खतरनाक मिसाल’ स्थापित करता है. ऐसा होने पर आरोपी से पैसे ऐंठने के लिए परोक्ष कारणों से शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं.

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम ने की पीठ ने कहा, ‘इसके अलावा, आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी हत्या, बलात्कार, दुल्हन को जलाने आदि जैसे गंभीर व जघन्य अपराधों के मामलों में भी मुखबिरों/शिकायतकर्ताओं को पैसा देकर और उनके साथ समझौता करके मुक्त हो सकते हैं.’

अदालत ने कहा, ‘उन जघन्य या गंभीर अपराधों को अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है, जो प्रकृति में निजी नहीं होते हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि हत्या, बलात्कार, सेंधमारी, डकैती और यहां तक ​​कि आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे अपराध न तो निजी हैं और न ही दीवानी. ऐसे अपराध समाज के खिलाफ हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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