मणिपुर की भाजपा सरकार ने बीते दो जुलाई को मणिपुर (पर्वतीय क्षेत्र) जिला परिषद छठे एवं सातवें संशोधन विधेयक पेश किए थे. पर्वतीय क्षेत्र का राज्य के घाटी वाले इलाकों के समतुल्य विकास सुनिश्चित करने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों का दावा है कि ये विधेयक उनकी मांगों के अनुरूप नहीं हैं.
इम्फाल: पर्वतीय जिलों को अधिक स्वायत्तता दिए जाने की मांग को लेकर अपना प्रदर्शन तेज करते हुए ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने शुक्रवार को राज्य से गुजरने वाले दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्गों पर आर्थिक नाकेबंदी शुरू की. इससे असम से आपूर्ति पर असर पड़ा.
अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा सड़क जाम करने से असम से आ रहे कई ट्रक इम्फाल-दीमापुर राजमार्ग (एनएच2) और इम्फाल-जिरिबाम राजमार्ग (एनएच 39) पर फंस गए.
एटीएसयूएम पहाड़ी क्षेत्र को और वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वायत्तता देने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में मणिपुर (पर्वतीय क्षेत्र) स्वायत्त जिला परिषद (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश करने की मांग कर रहा था, ताकि पर्वतीय क्षेत्र का राज्य के घाटी वाले इलाकों के समतुल्य विकास सुनिश्चित हो सके.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने मंगलवार (दो जुलाई) को मणिपुर (पर्वतीय क्षेत्र) जिला परिषद छठे एवं सातवें संशोधन विधेयक पेश किए थे. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि ये विधेयक उनकी मांगों के अनुरूप नहीं हैं.
बिना किसी घोषणा के नए संशोधन पेश किए जाने के बाद मंगलवार से एटीएसयूएम ने आदिवासी बहुल कांगपोकपी एवं सेनपति में पूर्ण बंद कर रखा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बंद के कारण स्कूल, कॉलेज, दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे, जबकि यात्री बसें सड़कों से नदारद रहीं. शुक्रवार की सुबह बंद समाप्त हो गया, जिसके बाद आर्थिक नाकेबंदी शुरू हो गई, जिससे मेइतेई बहुल इम्फाल घाटी क्षेत्र में आपूर्ति प्रभावित हुई.
पुलिस ने एटीएसयूएम के पांच छात्र नेताओं को विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की ‘साजिश’ के आरोप में गिरफ्तार किया है.
इस बीच विधानसभा का मानसून सत्र भी हंगामे के बीच शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.
इस दौरान खबर है कि नागरिक समाज निकाय मेइती लीपुन ने इम्फाल में छात्रों के निकाय के चिंगमीरोंग कार्यालय को बंद कर दिया और आरोप लगाया कि यह अपने विरोध के माध्यम से घाटी के लोगों को निशाना बना रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले साल अगस्त में मणिपुर विधानसभा के पहाड़ी क्षेत्रों की समिति (एचएसी) ने पहाड़ी जिलों में समान विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नए स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) विधेयक की सिफारिश की थी.
एचएसी ने कहा था कि मौजूदा स्वायत्त जिला परिषद कानून में कई कमियां हैं, जिसके परिणामस्वरूप वर्षों से अधिक विकसित इम्फाल घाटी की तुलना में पहाड़ी क्षेत्र का विकास कम हुआ.
एचएसी के अनुशंसित मसौदा स्वायत्त जिला परिषद विधेयक द्वारा वह जिला परिषद को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) जिला परिषद अधिनियम, 1971 में संशोधन कराना चाहता है.
इस विधेयक के कुछ प्रावधानों में स्वायत्त जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि, सभी जिला परिषद के कामकाज के प्रबंधन और समन्वय के लिए हिल एरिया सचिवालय का निर्माण, स्वायत्त जिला परिषद की कार्यकारी समिति की स्थापना, संपूर्ण पहाड़ी क्षेत्र के लिए बजट आवंटन सहित विकास और आर्थिक योजना में एचएसी की अधिक प्रभावी भागीदारी शामिल है.
घाटी स्थित नेताओं और सामाजिक समूहों के वर्गों द्वारा एचएसी-अनुशंसित एडीसी विधेयक का विरोध किया गया था. कुछ कानूनी मुद्दों का हवाला देते हुए एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार ने यह विधेयक नहीं लाया और अब सदन में दो नए विधेयक पेश किए हैं.
पूर्व सांसद बीडी बेहरिंग ने नए विधेयकों की आलोचना की है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक राम मुइवा ने बुधवार को विधानसभा में दावा किया कि नए विधेयकों ने एटीएसयूएम द्वारा की गई 50 प्रतिशत मांगों को पूरा किया. उन्होंने यह भी दावा किया कि 60 सदस्यीय सदन में पहाड़ी जिलों के 20 विधायक नए विधेयकों के पक्ष में हैं.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 371 सी एचएसी और जिला परिषदों के माध्यम से मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए एक अलग योजना प्रदान करता है, जो स्वायत्त पहाड़ी जिलों के लिए निर्दिष्ट विषयों पर विधायी शक्तियों के साथ निहित हैं. उन्हें अपने संसाधनों, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता सेवाओं और प्राथमिक शिक्षा का प्रबंधन करने और विकास और आर्थिक योजना सहित प्रशासनिक और कल्याणकारी सेवाओं को शुरू करने की शक्ति भी दी गई है.
इन प्रावधानों को लागू करने के लिए संसद ने 1971 में मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) जिला परिषद कानून पारित किया, क्योंकि तब मणिपुर एक केंद्र शासित प्रदेश था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)