मणिपुर: जनसंख्या आयोग बनाने और एनआरसी लागू करने के प्रस्ताव विधानसभा में पारित

बीते कुछ समय से मणिपुर में अवैध घुसपैठ का दावा करते हुए एनआरसी की मांग तेज़ी से सिर उठा रही है. विधानसभा में जदयू विधायक के. जॉयकिशन ने दावा किया कि पर्वतीय क्षेत्रों में 1971 से 2001 के बीच जनसंख्या में 153.3% की वृद्धि हुई और 2002-11 में यह दर 250.9 फीसदी हो गई. उन्होंने कहा कि इसकी वजह बाहर से लोगों की कथित घुसपैठ हो सकती है.

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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बीते कुछ समय से मणिपुर में अवैध घुसपैठ का दावा करते हुए एनआरसी की मांग तेज़ी से सिर उठा रही है. विधानसभा में जदयू विधायक के. जॉयकिशन ने दावा किया कि पर्वतीय क्षेत्रों में 1971 से 2001 के बीच जनसंख्या में 153.3% की वृद्धि हुई और 2002-11 में यह दर 250.9 फीसदी हो गई. उन्होंने कहा कि इसकी वजह बाहर से लोगों की कथित घुसपैठ हो सकती है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

इंफाल: मणिपुर विधानसभा ने राज्य जनसंख्या आयोग गठित करने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने के लिए दो निजी सदस्य प्रस्तावों को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया है.

ये प्रस्ताव जनता दल (यूनाइटेड) के विधायक के जॉयकिशन ने राज्य विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन पेश किए.

उन्होंने दावा किया कि राज्य के पर्वतीय इलाकों में 1971 से 2001 के बीच जनसंख्या में 153.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2002 से 2011 के दौरान यह दर बढ़कर 250.9 प्रतिशत पर पहुंच गई.

जॉयकिशन ने कहा कि घाटी के क्षेत्रों में भी 1971 से 2001 तक 94.8 प्रतिशत और 2001 से 2011 तक लगभग 125 प्रतिशत की जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई.

जद(यू) विधायक ने मणिपुर में बाहरी लोगों की कथित घुसपैठ पर भी चिंता जताई. उन्होंने दावा किया कि घाटी जिलों के लोगों के पर्वतीय क्षेत्रों में बसने पर पाबंदी है और पर्वतीय क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ने की वजह बाहर से लोगों की कथित घुसपैठ हो सकती है.

मणिपुर की अंतरराष्ट्रीय सीमा म्यांमार से लगती है.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी प्रस्तावों पर चर्चा में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि जनसंख्या आयोग गठित करने और राज्य में एनआरसी लागू करने जैसे प्रस्ताव सदन के सभी सदस्यों के सामूहिक हितों को साधेंगे.

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ समय से मणिपुर में एनआरसी लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है. जुलाई के मध्य में राज्य के सात छात्र समूहों और 19 आदिवासी निकायों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मणिपुर में एनआरसी लागू करने की अपनी मांग को दोहराया था.

द हिंदू के अनुसार, उनका दावा है कि म्यांमार, बांग्लादेश और नेपाल से प्रवासन (migration) की जांच के लिए नागरिकता रजिस्टर आवश्यक है. उन्होंने कहा कि म्यांमार उनकी विशेष चिंता का विषय है क्योंकि राज्य 398 किलोमीटर की बिना बाड़ वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है.

उन्होंने कहा कि म्यांमार की चिन-कुकी जनजातियों में से कई मणिपुर में कुकी समुदाय के साथ जातीय रिश्ते साझा करते हैं, जिसने पड़ोसी देश में राजनीतिक अशांति के कारण राज्य में कथित अवैध माइग्रेशन में मदद की है.

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आदिवासी और छात्र समूहों ने आरोप लगाया था कि मणिपुर के लिए पास या परमिट प्रणाली, जो नवंबर 1950 तक अस्तित्व में थी, के ख़त्म होने जाने के चलते ही बांग्लादेश (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान), म्यांमार और नेपाल से आप्रवासियों की घुसपैठ कर पाते हैं.

संगठनों ने कहा था, ‘इन तीन देशों के लोग पास प्रणाली के खत्म होने के बाद से राज्य में स्वायत्त रूप से बस गए थे और पिछले 75 वर्षों के दौरान विदेशी अधिनियम 1946 के तहत इन्हें लेकर कोई भी सूझबूझ भरा कदम नहीं उठाया गया.’

उन्होंने जनसंख्या वृद्धि की जांच और संतुलन के लिए एक राज्य जनसंख्या आयोग के गठन की मांग की थी. उनके अनुसार, बाहरी लोगों की बढ़ती आबादी के कारण स्वदेशी समुदायों को उनके ही राज्य में ‘दलदल और हाशिए पर’ रखा जा रहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, हालांकि दिसंबर 2019 में केंद्र सरकार ने राज्य को इनर-लाइन परमिट (आईएलपी) प्रणाली के तहत लाने के लिए 1873 के बंगाल ईस्टर फ्रंटियर रेगुलेशन को मणिपुर तक बढ़ा दिया, जिसके लिए अन्य जगहों से भारतीयों को अस्थायी यात्रा दस्तावेज रखने की आवश्यकता होती है. स्थानीय संगठनों का आरोप है कि यह अवैध माइग्रेशन को रोकने में सक्षम नहीं है.

अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के बाद मणिपुर आईएलपी प्रणाली लाने वाला पूर्वोत्तर का चौथा राज्य है.

गौर करने वाली बात है कि अगर मणिपुर एनआरसी की प्रक्रिया शुरू कर देता है तो संबंधित अधिकारियों को जमीनी स्तर पर उलझे मुद्दों से निपटना होगा. इनमें से एक इस बात की परस्पर विरोधी मांगें हैं कि अधिवास (domicile) को मान्यता देने के लिए किस वर्ष को आधार वर्ष के रूप में लिया जाए.

कुछ प्रभावशाली आदिवासी समूह और छात्र निकाय 1951 को आधार वर्ष के रूप में मानने के लिए दबाव डाल रहे थे, इसके मणिपुर सरकार ने 1961 को आधार वर्ष कहा है- वो साल जब मणिपुर एक अलग राज्य बना था.

1951 को आधार वर्ष मानने का विरोध करने वालों का कहना है कि आदिवासी (पहाड़ी) और मेइटी (घाटी) दोनों समुदाय के बहुत से लोग उस वर्ष के बाद ही राज्य में आए थे. ऐसे में यदि सरकार 1951 की आधार वर्ष मानने की मांग मान लेती है, तो ऐसे कई समुदाय एनआरसी गणना से बाहर हो जाएंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)