रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि ने अपनी दवा ‘कोरोनिल’ के कोविड-19 के इलाज में कारगर होने संबंधी दावे किए थे. साथ ही एलोपैथी और एलोपैथी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ अपमानजनत टिप्पणियां की थीं, जिसके ख़िलाफ़ बीते वर्ष डॉक्टरों के विभिन्न संघों ने अदालत का रुख किया था.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार (4 अगस्त) को रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि द्वारा सौंपा गया मसौदा स्पष्टीकरण स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
मसौदा स्पष्टीकरण रामदेव ने अपने और अपनी कंपनी के उन दावों के संबंध में पेश किया था, जिनमें उन्होंने अपनी दवा ‘कोरोनिल’ के संबंध में कहा था कि वह कोविड-19 के इलाज के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने रामदेव को कोरोनिल से कोविड-19 के इलाज के संबंध में कथित तौर पर गलत सूचना फैलाने और निराधार दावों को लेकर दूसरा उचित और स्वीकार्य स्पष्टीकरण देने के लिए कुछ समय दिया है.
साथ ही, अदालत ने कहा कि कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया वर्तमान मसौदा आपत्तिजनक दावों को वापस लेने के बजाय उन्हें उचित ठहराता नजर आता है.
गौरतलब है कि पिछले साल ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन और डॉक्टरों के कई अन्य संघों ने एक याचिका दायर करते हुए रामदेव और उनकी कंपनी के कोरोनिल के संबंध में किए गए दावों पर सवाल उठाए थे. साथ ही एलोपैथी दवाओं और डॉक्टरों के बारे में अपमानजनक टिप्पणियों को भी मुद्दा बनाया था. अदालत उसी यचिका पर सुनवाई कर रही थी.
इसी साल जुलाई में हुई सुनवाई में पतंजलि और रामदेव ने अदालत को बताया था कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे पर सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करने के इच्छुक हैं और अदालत ने दोनों पक्षों को उक्त स्पष्टीकरण के साथ एक मत होकर आने का निर्देश दिया था.
हालांकि, वर्तमान सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि रामदेव और उनकी कंपनी के मसौदा स्पष्टीकरण से वे सहमत नहीं हैं.
रामदेव की कानूनी टीम द्वारा तैयार किए गए मसौदा स्पष्टीकरण को पढ़ने के बाद जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि वह उनके द्वारा दिए गए वर्तमान मसौदा स्पष्टीकरण को लेकर संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यह (मसौदा स्पष्टीकरण) ‘(अपनी) पीठ थपथपाने जैसा’ है, जो (दावे को) उचित करार देता है.
जज ने कहा, ‘यह स्पष्टीकरण के बजाय अस्वीकरण की तरह है.’
अदालत ने रामदेव को सलाह दी कि वह ‘शब्दों को तोड़-मरोड़कर न बोलें’ और स्पष्ट तौर पर यह कहें कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है. जस्टिस भंभानी ने कहा कि ‘शब्दों के जरिये विचार व्यक्त करना है, न कि इसे छिपाना है.’
रामदेव के मसौदा स्पष्टीकरण में दावा किया गया है कि कोरोनिल के बारे में उनके बयान को लेकर बहुती सी ‘गलत सूचना, गलत व्याख्या और गलतफहमी है.’
अदालत में पेश किए गए अपने मसौदा स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा है कि कोरोनिल एक प्रतिरक्षा बूस्टर होने के अलावा कोविड-19 के इलाज में एक पूरक उपाय है.
अदालत ने कहा कि इस मामले ने कोविड-19 मामलों की बढ़ती संख्या के कारण ‘तात्कालिकता का तत्व’ हासिल कर लिया है और कोरोनिल के इस्तेमाल के संबंध में किसी भी भ्रम से निपटा जाना चाहिए.
अदालत ने इस मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख निर्धारित की है.
बता दें कि डॉक्टरों के कई संघों ने पिछले साल हाईकोर्ट का रुख किया था और रामदेव पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया था. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि रामदेव लोगों को यह कहकर गुमराह कर रहे थे कि एलोपैथी कोविड-19 से संक्रमित कई लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार थी, जबकि कोरोनिल ही एकमात्र इलाज था.
उनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी कपूर ने कहा कि रामदेव स्पष्टीकरण में ‘संशोधन करने को तैयार हैं’, लेकिन उन्हें ‘बार-बार अपमानित नहीं किया जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि रामदेव ने एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ अपने बयान पहले ही वापस ले लिए हैं.
उन्होंने जोर देकर कहा कि संबंधित मंत्रालय द्वारा दी गई मंजूरी के मद्देनजर रामदेव कोविड-19 के इलाज के रूप में कोरोनिल को प्रचारित करने के हकदार थे और उनके बयानों से किसी को कोई नुकसान हुआ हो, ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है.
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस भंभानी ने रामदेव से कहा कि आपने जनता को दो धारणाएं दीं, पहला कि एलोपैथिक डॉक्टरों के पास इलाज नहीं है और दूसरा कि कोरोनिल ही निवारण और इलाज है.
उन्होंने आगे कहा, ‘आप इसे पूरक उपाय नहीं कह सकते. आपके विचार स्पष्ट होना चाहिए. शब्दों से विचार व्यक्त हों. यदि कोई प्रमाणिक विचार है तो उसे स्पष्टीकरण में छुपाया गया है.’
मालूम हो कि मई 2021 में सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे एक वीडियो का हवाला देते हुए आईएमए ने कहा था कि रामदेव कह रहे हैं कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’.
उन्होंने यह भी कहा था कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई. इसके साथ ही आईएमए ने रामदेव पर यह कहने का भी आरोप लगाया था कि भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूर की गई रेमडेसिविर, फैबीफ्लू तथा ऐसी अन्य दवाएं कोविड-19 मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं.
एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताने पर रामदेव के खिलाफ महामारी रोग कानून के तहत कार्रवाई करने की डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व डॉक्टरों के अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें.
इसके बाद रामदेव ने एलोपैथिक दवाओं पर अपने बयान को वापस ले लिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)