गुजरात: दस लोगों को आरटीआई दाख़िल करने से आजीवन प्रतिबंधित किया गया

पिछले 18 महीनों में गुजरात सूचना आयोग ने दस लोगों को जीवनभर आरटीआई आवेदन दायर करने से बैन करते हुए कहा कि वे 'सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई अधिनियम का इस्तेमाल' करते हैं. आयोग ने एक शख़्स पर आरटीआई के तहत सूचना मांगने पर पांच हज़ार रुपये जुर्माना भी लगाया है.

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(फोटो साभार: विकीपीडिया)

पिछले 18 महीनों में गुजरात सूचना आयोग ने दस लोगों को जीवनभर आरटीआई आवेदन दायर करने से बैन करते हुए कहा कि वे ‘सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई अधिनियम का इस्तेमाल’ करते हैं. आयोग ने एक शख़्स पर आरटीआई के तहत सूचना मांगने पर पांच हज़ार रुपये जुर्माना भी लगाया है.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: गुजरात में पिछले 18 महीनों में दस लोगों पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन दाखिल करने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, गुजरात सूचना आयोग (जीआईसी) ने यह प्रतिबंध लगाया है और इसकी वजह इन लोगों द्वारा ‘सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई अधिनियम के इस्तेमाल’ और ‘बहुत सारे सवाल दायर करने’ को बताया है.

पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने इस अख़बार से कहा कि ये आदेश न केवल विवादित हैं, बल्कि पूरी तरह से अवैध भी हैं और इसे गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है.’

आरटीआई हेल्पलाइन चलाने वाले और आरटीआई आवेदनों और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाले एक गैर सरकारी संगठन- माहिती अधिकार गुजरात पहल ने सभी दस मामलों का विश्लेषण किया.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसने पाया कि सूचना आयुक्तों ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि उठाए गए विषय पर कोई जानकारी प्रदान न की जाए. उदाहरण के लिए, एक आवेदक अमिता मिश्रा, जो गांधीनगर के पेथापुर की एक स्कूल शिक्षिका हैं, ने एक आरटीआई दायर कर अपनी सेवा पुस्तिका (सर्विस बुक) और वेतन विवरण की एक प्रति मांगी थी. लेकिन उन्हें जीवन भर के लिए आरटीआई दाखिल करने से प्रतिबंधित कर दिया गया.

अख़बार के मुताबिक, सूचना आयुक्त केएम अध्वर्यु ने जिला शिक्षा कार्यालय और सर्व विद्यालय काडी को कभी भी उनके आवेदनों पर विचार न करने का आदेश दिया. स्कूल के अधिकारियों ने यह शिकायत भी की थी कि वह प्रति पृष्ठ का आवश्यक 2 रुपये आरटीआई शुल्क नहीं देती हैं और बार-बार वही सवाल पूछती हैं.

एक अन्य मामले में पेटलाड शहर के एक आवेदक हितेश पटेल और उनकी पत्नी पर आवासीय सोसाइटी से संबंधित 13 आरटीआई दाखिल करने के लिए 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. यह देश के इतिहास में आरटीआई दाखिल करने के लिए जुर्माना लगाए जाने का पहला मामला है.

इसी तरह, जब मोडासा के कस्बा के एक स्कूल कर्मचारी सत्तार मजीद खलीफा ने उनके संस्थान द्वारा कार्रवाई के बाद इसके बारे में सवाल पूछना शुरू किया, तब उन्हें आरटीआई दाखिल करने से प्रतिबंधित कर दिया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचना आयुक्त अध्वर्यु ने आयोग से सत्तार द्वारा इस बारे में अपील करने अधिकार भी रद्द कर दिया. अध्वर्यु ने आरोप लगाया कि सत्तार ‘आरटीआई के जरिये स्कूल से बदला लेने की कोशिश कर कर रहे हैं.’

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आरटीआई के फैसले में यह भी कहा गया है कि वर्चुअल सुनवाई के दौरान सत्तार ने ‘लोक सूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकरण (शिक्षा विभाग के) और यहां तक ​​कि आयोग के खिलाफ भी आरोप लगाए थे.’

गौर करने वाली बात है कि इसी साल 18 जून को गुजरात के गृह विभाग ने एक आरटीआई जवाब में कहा था कि ‘आरटीआई आवेदकों को ब्लैकलिस्ट या प्रतिबंधित करने का कोई कानून नहीं है.’ इससे पहले जून 2007 में गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त दिवंगत आरएन दास ने आरटीआई आवेदकों को ब्लैकलिस्ट करने के आदेशों को ‘निरर्थक’ बताया था.

वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, ‘सूचना आयोग एक नागरिक के लिए अपील की आखिरी अदालत है. आयोग ऐसे आदेश कैसे पारित कर सकता है जो कानून से परे हैं?’

उल्लेखनीय है कि द वायर  में पहले अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आरटीआई आवेदनों की खराब निपटान दर लंबे समय से बनी हुई है. अक्टूबर 2017 तक केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष 37,000 से अधिक मामले लंबित थे. इस साल भी स्थिति ज्यादा नहीं बदली है. 18 जुलाई 2022 को आरटीआई अधिनियम के तहत दायर 26,518 अपीलें और शिकायतें सीआईसी के पास लंबित थीं.