तमिल फिल्म ‘जय भीम’ पर कथित तौर पर वन्नियार समुदाय को ग़लत तरीके से दिखाकर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था. फिल्म साल 1995 में तमिलनाडु में हिरासत में यातना और एक ‘कोरवार’ आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की मौत की सच्ची घटना पर आधारित कहानी है.
चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने तमिल फिल्म ‘जय भीम’ में कथित तौर पर वन्नियार समुदाय को खराब संदर्भ में प्रस्तुत करके उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए चेन्नई पुलिस द्वारा अभिनेता सूर्या शिवकुमार और निर्देशक टीजे ज्ञानवेल के खिलाफ दर्ज एफआईआर बृहस्पतिवार (11 अगस्त) को रद्द कर दी.
जस्टिस एन. सतीश कुमार ने दोनों कलाकारों की ओर से दायर याचिका पर आदेश जारी करते हुए संबंधित एफआईआर रद्द कर दी.
यह आरोप लगाते हुए कि फिल्म में वन्नियार समुदाय को खराब संदर्भ में दिखाया गया है, रुद्र वन्नियार सेना के सदस्य एवं वकील के. संतोष ने सैदापेट में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटाया था और फिल्म निर्माता एवं अभिनेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए छह मई को एक आदेश प्राप्त किया था.
इसके बाद वेलाचेरी पुलिस ने 17 मई को सूर्या और ज्ञानवेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. दोनों कलाकारों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
अपनी याचिका में सूर्या और ज्ञानवेल ने दलील दी थी कि फिल्म तत्कालीन वकील के. चंद्रू द्वारा किए गए एक मुकदमे पर आधारित थी, जो बाद में हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने थे. जस्टिस चंद्रू और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक पेरुमलसामी को छोड़कर अन्य सभी पात्रों के नाम बदल दिए गए थे.
फिल्म को सेंसर बोर्ड ने ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया था.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मजिस्ट्रेट ने अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना ही एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी कर दिया था.
बता दें कि पिछले साल 15 नवंबर को वन्नियार समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था वन्नियार संगम ने फिल्म के निर्माताओं को कानूनी नोटिस भेजा था, जिसमें ज्ञानवेल, सूर्या और उनकी पत्नी और फिल्म की निर्माता ज्योतिका, प्रोडक्शन हाउस 2डी एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, जो सूर्या और ज्योतिका द्वारा संचालित है और अमेज़ॉन के एक प्रतिनिधि, जहां फिल्म दिखाई जा रही है, के नाम शामिल थे.
कानूनी नोटिस में पुलिस अधिकारी के नाम-परिवर्तन के साथ-साथ जाति चिह्न वाले कैलेंडर का उल्लेख किया गया था, विशेष रूप से फिल्म ने वास्तविक दुनिया की घटना से कुछ तत्वों को बनाए रखते हुए भी ये बदलाव किए थे, जिसे लेकर आरोप लगाया गया था कि ये फैसले जान-बूझकर वन्नियार समुदाय की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लिए गए थे.
उसके बाद फिल्म ‘जय भीम’ के निर्देशक टीजे ज्ञानवेल ने वन्नियार समुदाय को आहत करने के लिए खेद जताया था. उन्होंने कहा था फिल्म के निर्माण में किसी व्यक्ति या समुदाय का अपमान करने का थोड़ा-सा भी विचार नहीं था.
मालूम हो कि फिल्म ‘जय भीम’ साल 1995 में तमिलनाडु में हिरासत में यातना और एक ‘कोरवार’ आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की मौत की सच्ची घटना पर आधारित कहानी है. अभिनेता सूर्या ने सेवानिवृत्त जस्टिस चंद्रू की भूमिका निभाई है, जिन्होंने 1993 में एक वकील के रूप में मुकदमा लड़ा था.
फिल्म में आदिवासी व्यक्ति को इरुला जनजाति के रूप में चित्रित किया. वास्तविक जीवन की घटना से जुड़े लोगों के नाम, जैसे जस्टिस चंद्रू के नाम, जिन्होंने एक वकील के रूप में मद्रास हाईकोर्ट में मामले की पैरवी की थी, को बरकरार रखा गया है.
कुछ नाम जैसे राजकन्नू की पत्नी (मूल नाम पार्वती, सेंगेनी में बदल दिया गया) और पुलिस सब इंस्पेक्टर, जिन्होंने अत्याचार किया, जिससे आदिवासी व्यक्ति की मृत्यु हो गई, उन्हें एंथनीसामी से गुरु (गुरुमूर्ति) में बदल दिया गया. बदले गए कैलेंडर में देवी लक्ष्मी की छवि थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)