यूपी: हाईकोर्ट ने कलेक्टर की मानहानि के मामले में पत्रकारों की दोषसिद्धि को बरक़रार रखा

मामला 1994 का है. मुज़फ़्फ़रनगर के तत्कालीन कलेक्टर अनंत कुमार सिंह का एक साक्षात्कार ‘द पायनियर’ और ‘स्वतंत्र भारत’ अख़बार में प्रकाशित हुआ था, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के संबंध में उनके हवाले से एक आपत्तिजनक टिप्पणी छापी गई थी. अदालत ने फैसला सुनाने के बाद आरोपियों को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट के तहत रिहा कर दिया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मामला 1994 का है. मुज़फ़्फ़रनगर के तत्कालीन कलेक्टर अनंत कुमार सिंह का एक साक्षात्कार ‘द पायनियर’ और ‘स्वतंत्र भारत’ अख़बार में प्रकाशित हुआ था, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के संबंध में उनके हवाले से एक आपत्तिजनक टिप्पणी छापी गई थी. अदालत ने फैसला सुनाने के बाद आरोपियों को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट के तहत रिहा कर दिया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 1994 में प्रकाशित एक साक्षात्कार को लेकर नौकरशाह अनंत कुमार सिंह द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में दो पत्रकारों और एक अखबार के प्रकाशक की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है.

जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ‘द पायनियर’ तथा ‘स्वतंत्र भारत’ अखबार में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह का मानहानिकारक साक्षात्कार प्रकाशित करने के लिए पत्रकार रमन कृपाल, कार्यकारी निदेशक एके भट्टाचार्य और प्रकाशक संजीव कंवर दोषी है.

हालांकि, अदालत ने उन्हें अपराधी परिवीक्षा अधिनियम (Probation of Offenders Act) का लाभ प्रदान किया और परिवीक्षा पर रिहा कर दिया.

इस अधिनियम का उद्देश्य नौसिखिए कैदियों का समाज में पुनर्वास करना और ऐसे अपराधियों को जेल में दुर्दांत अपराधियों के साथ बंद कर उन्हें और पक्का अपराधी बनने से बचाना होता है.

अदालत ने कृपाल को निर्देश दिया कि वह एक महीने में शिकायतकर्ता को एक लाख रुपये का भुगतान करें. इसके अलावा कंवर एवं भट्टाचार्य को सिंह को 50-50 हजार रुपये देने का निर्देश दिया गया.

जस्टिस सिंह ने कृपाल, भट्टाचार्य और कंवर द्वारा संयुक्त रूप से दायर पुनरीक्षण (रिव्यू) याचिकाओं को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया.

विशेष मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, लखनऊ ने अनंत कुमार सिंह का 1994 में एक मानहानिकारक साक्षात्कार लिखने और प्रकाशित करने के लिए उन्हें 2007 में दोषी ठहराया था और सजा सुनाई थी. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की एक अदालत ने 2012 में दोषसिद्धि की पुष्टि की, जिसके खिलाफ तीनों ने 2012 में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, साक्षात्कार में अनंत कुमार सिंह के हवाले से कहा गया था कि यह एक मानवीय प्रवृत्ति है कि जब एक महिला को जंगल में एकांत स्थान पर देखा जाता है तो कोई भी पुरुष उसके साथ बलात्कार करने का इच्छुक होगा.

हालांकि, सिंह ने उसी दिन यह कहते हुए अस्वीकरण भेजा था कि ऐसा कोई साक्षात्कार उन्होंने नहीं दिया, वे (पत्रकार) हफ्ते भर तक इसे ठंडे बस्ते में डाले रहे और बाद में इसे ‘लेटर टू एडिटर’ कॉलम में रिपोर्टर के प्रत्युत्तर के साथ संक्षिप्त रूप में प्रकाशित किया गया, जिससे ऐसा लगा कि साक्षात्कार लिया गया था और जिला मजिस्ट्रेट ने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

बाद में सिंह ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)