झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में जेल में हैं. उनके ख़िलाफ़ दो और नए मामले दर्ज होने पर उनके वकील का कहना है कि यह ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद ज़ुबैर के साथ हुआ वही पैटर्न है जहां एक के बाद एक मामले दर्ज करके बिना ट्रायल ही आरोपी को जेल में रखा जा सके.
नई दिल्ली: झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार के खिलाफ दो नए मामले दर्ज किए गए हैं.
बता दें कि रूपेश 17 जुलाई से जेल में हैं. उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था.
दो ताजा मामलों में से एक झारखंड के बोकारो जिले के जागेश्वर पुलिस थाने में 30 जून को ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर आधारित है. दूसरा मामला बिहार के रोहतास में 26 अप्रैल को दर्ज एफआईआर से संबंधित है, जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) देख रही है.
रूपेश के वकील के अनुसार, उन्हें दोनों मामलों का तब पता चला जब रूपेश को जागेश्वर पुलिस थाने में दर्ज मामले के संबंध में 11 अगस्त को बोकारो में उपस्थित होने के लिए कहा गया.
बोकारो मामले से संबंधित एफआईआर में रूपेश का नाम उन सात आरोपियों में नहीं है जिन पर राज्य के खिलाफ माओवादी गतिविधियां चलाने का आरोप है. हालांकि, उन्हें पुलिस के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए कहा गया क्योंकि एफआईआर में ‘अज्ञात लोगों’ की भी बात है.
एफआईआर में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307 और 353 के तहत लगाए आरोप शामिल हैं जो दंगे, घातक हथियार रखने, गैरकानूनी सभा का हिस्सा बनने, हत्या का प्रयास और लोकसेक को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने हेतु हमला करने से संबंधित हैं.
अन्य आरोपों में विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 (विस्फोट करने का प्रयास अथवा जीवन या संपत्ति को खतरे में डालने के इरादे से विस्फोटक बनाया या रखना) धारा 5 (संदिग्ध परिस्थितियों में विस्फोटक बनाना या रखना); आर्म्स एक्ट की धारा 27 (हथियारों का इस्तेमाल); यूएपीए की धारा 10 (गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना) और 13 (अवैध गतिविधियों में शामिल होना);और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 17 (गैरकानूनी गतिविधियां) शामिल हैं.
अन्य नया मामला, जहां एनआईए जांच कर रही है, बिहार की रोहतास पुलिस द्वारा 26 अप्रैल को दर्ज किया गया था.
एफआईआर में कहा गया है कि पुलिस को 12 अप्रैल को विश्वसनीय सूचना मिली थी कि प्रतिबंधित माओवादी दल का शीर्ष नेतृत्व और उसके कैडर स्थानीय स्तर पर उगाही कर रहे हैं और नए कैडरों की भर्ती कर रहे हैं. इसमें आगे कहा गया है कि स्थानीय पुलिस ने नक्सली साहित्य जब्त किया था जो कि बिहार और झारखंड राज्य में भाकपा (माओवादी) पार्टी की गतिविधियों का प्रचार करने और कैडरों की भर्ती करने के लिए था.
एफआईआर में आईपीसी की धारा 121ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 122ए (युद्ध छेड़ने के लिए हथियार जुटाना), 124 (राजद्रोह), 120बी (आपराधिक साजिश) और 24 (बेईमानी) शामिल हैं. एफआईआर में यूएपीए की विभिन्न धाराएं भी लगाई गई हैं.
मामले में भाकपा (माओवादी) के समिति सदस्य विजय कुमार आर्य समेत अन्य सदस्यों के साथ-साथ रूपेश का भी नाम है. मामला बिहार के रोहतास जिले की एजेसिंयों से एनआईए द्वारा ले लिया गया है. एफआईआर बिहार और झारखंड से मिली स्थानीय खुफिया जानकारी के आधार पर दर्ज हुई है.
रूपेश की पत्नी इप्सा शताक्षी ने बताया कि रुपेश ने 17 जुलाई को अपनी गिरफ्तारी से पहले 5 मई को साथी पत्रकारों के साथ एक ईमेल थ्रेड (कई ईमेल में हुई बातचीत) साझा किया था, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि अप्रैल में जब उक्त घटना हुई तो वे बिहार में मौजूद नहीं थे. उन्होंने कहा था कि वह एक आमंत्रण पर वीर साथीदार स्मृति समन्वय समिति के आयोजन को कवर करने के लिए 12-13 अप्रैल के दौरान नागपुर में थे. आयोजन का सीधा प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) रूपेश द्वारा अपने फेसबुक पेज पर भी साझा किया गया था और अगले दिन जागरण में आयोजन को लेकर उनका एक लेख भी छपा था.
उनकी पत्नी याद करते हुए बताती हैं कि हालांकि अपने ईमेल थ्रेड में रूपेश को डर था कि उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार के इशारे पर एनआईए द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
‘बिना ट्रायल के दोषसिद्धि’: रुपेश के वकील
द वायर से बात करते हुए रूपेश के वकील श्याम ने कहा, ‘वर्तमान में रूपेश के खिलाफ चार मामले हैं. उन्हें गया पुलिस से 2019 के मामले में जमानत मिल गई है, क्योंकि पुलिस आरोप-पत्र दाखिल नहीं कर सकी. तीन मामले उनके खिलाफ विचाराधीन हैं. रूपेश के खिलाफ एक के बाद एक केस दर्ज होने के इस पैटर्न से हमें जो समझ आता है वो स्पष्ट यह है कि यह बिना ट्रायल के दोष सिद्ध करने वाला पैटर्न है, कुछ वैसे ही जैसे दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में जो लोग गिरफ्तार किए गए हैं और हाल ही में पत्रकार मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘एक और पैटर्न देखा जा रहा है जहां मामलों में ‘अज्ञात व्यक्ति’ जोड़ दिया जाता है, ताकि जब भी कुछ होता है तो लोगों को उन ‘अज्ञात व्यक्तियों’ के रूप में फंसा दिया जाता है.’
बता दें कि 17 जुलाई को झारखंड पुलिस द्वारा रूपेश की गिरफ्तारी उस एफआईआर के संबंध में हुई थी जिसमें भाकपा (माओवादी) के एक शीर्ष नेता प्रशांत बोस (उर्फ किशन दा) का नाम भी शामिल था.
17 जुलाई को उनकी गिरफ्तारी से पहले उन्हें जून 2019 में माओवादियों से उनके कथित संबंधों के लिए गया पुलिस ने गिरफ्तार किया था. हालांकि, गया पुलिस मामले में आरोप-पत्र पेश करने में विफल रही और रूपेश को मामले में दिसंबर 2019 में जमानत मिल गई.
द वायर से बात करते हुए शताक्षी ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है कि रूपेश लंबे समय तक जेल में रहें. यह मामले रुपेश के खिलाफ 14 दिनों के भीतर दर्ज किए गए हैं. यहां सोच स्पष्ट है… अपने करीबी पूंजीवादियों के लिए रास्ते खोलना ताकि वे बिना किसी सवाल या आलोचना के अपनी गतिविधियां चला सकें.’
इससे पहले रूपेश को जेल में अलग-थलग रखा गया था और जेल नियमावली के अनुसार खाना नहीं दिया जाता था. उन्होंने मांग की थी कि उन्हें उनकी कोठरी से जेल में शिफ्ट किया जाए और उन्हें लेखन सामग्री व ठीक से खाना दिया जाए.
उन्होंने जेल अधिकारियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने इसके लिए उन्हें मना कर दिया है, जिसके बाद उन्होंने 15 अगस्त तक उनकी मांगें न माने जाने पर भूख हड़ताल पर जाने की बात कही थी.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.