2022 में भी वही नाउम्मीदी और डर महसूस कर रही हूं, जो 2002 में किया था: बिलक़ीस बानो

गुजरात सरकार द्वारा इसकी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार के दोषियों की सज़ा माफ़ होने और रिहाई के बाद बेहद मायूस बिलक़ीस का कहना है कि अब उनके पास न सब्र बचा है और न ही हिम्मत. वे यह लड़ाई हार गई हैं. 

//
बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: बीते सोमवार को देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत 2002 में हुए बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनकी बच्ची समेत परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों की रिहाई की मंजूरी दी, जिसके बाद इसी दिन इन सभी को गोधरा उप-कारागार से रिहा कर दिया गया.

बिलकीस के परिवार ने इस पर हैरत जताई है.

वाइब्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए बिलकीस ने कहा, ‘यह साल 2022 है लेकिन मुझे वही डर, असुरक्षा और नाउम्मीदी महसूस हो रही है जैसी 2002 में हुई थी. अचानक ऐसा लग रहा है कि कुछ बदला ही नहीं है. यह 2002 जैसा ही लग रहा है.’

2002 में हुई इस घटना के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली बिलकीस ने कहा कि अब उनके पास न सब्र बचा है और न ही हिम्मत. उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत मायूस हूं. हम हार गए.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘आजादी का दिन हमारे लिए बुरी खबर लाया. मेरी आजादी, हक़, सुरक्षा सब छिन गई. मेरा हर चीज से भरोसा उठ गया है. अब आपको लगता है कि इस देश में कोई भी मेरी मदद कर सकता है? हां, मैं अपनी लड़ाई हार चुकी हूं.’

उनके पति याकूब रसूल ने मंगलवार को बताया था कि इस फैसले को लेकर पूरा परिवार हैरत में था.

उन्होंने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘हम घर के छह-सात लोग साथ बैठे हुए थे, खाना खाकर, टीवी खोला कि तभी एक लोकल चैनल पर बिलकीस बानो का नाम आ रहा था. लिखा था कि बलात्कारियों को रिहा कर दिया गया. पहले तो बिलकीस ने कहा कि कोई फेक न्यूज़ होगी. लेकिन फिर बेटे ने चैनल बदलना शुरू किया तो अलग-अलग गुजराती चैनल यही दिखा रहे थे. बिलकीस बस उठी और वहां से चली गई.’

याकूब ने आगे बताया, ‘हमें लगा कुछ तो चल रहा है तो अपने वकीलों को कॉल किया लेकिन उन्हें भी कुछ मालूम नहीं था. हमें कुछ समझ ही नहीं आया.’

याकूब कहते हैं, ‘अदालत ने उन्हें दोषी माना था, बलात्कारी माना था, अब वे खुले क्यों घूम रहे हैं?’

अपने भविष्य और परिवार की सुरक्षा को लेकर बेहद परेशान और निराश बिलकीस सवाल करती हैं, ‘क्या उन्हें मुझसे कम से कम एक बार पूछना नहीं चाहिए था, या बस यही बता देते कि इस बारे में क्या चल रहा है?’

अपनी सुरक्षा को चिंतित परिवार पिछले दो दशकों में कभी एक जगह नहीं रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दिए आदेश में बिलकीस को 50 लाख रुपये मुआवज़े और सरकारी नौकरी के साथ आवास देने को भी कहा था, जो स्पष्ट तौर पर नहीं हुआ.

इतने लंबे समय से बानो का परिवार अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग शहरों में रहा है. बिना किसी स्थायी पते के जगह-जगह पर रहते हुए वे सब उचित सुरक्षा को लेकर चिंतित रहे हैं. अब जब दोषी ठहराए गए 11 लोग रिहा हो गए हैं, उनकी चिंता और बढ़ गई है.

गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.

तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

मामले की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.