बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के ख़िलाफ़ एक याचिका टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य याचिका माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ की पूर्व प्रोफेसर व कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने दाख़िल की है.
नई दिल्ली: 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी पाए गए 11 लोगों की समयपूर्व रिहाई के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
उम्रकैद की सजा पाए इन सभी 11 दोषियों को हाल ही में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा सजा माफ़ी दी गई थी.
बार एंड बेंच के अनुसार, इसी मामले को लेकर एक अन्य याचिका माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्मकार रेवती लाल और लखनऊ की पूर्व प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने भी दाखिल की है.
लाइव लॉ के अनुसार, महुआ मोइत्रा की याचिका में कहा गया है, ‘यह रिहाई किसी भी तरह सामाजिक या मानवीय न्याय को मजबूत नहीं करती है और न ही यहां सीआरपीसी की धारा 432-435 के तहत राज्य को मिली विवेकाधीन शक्ति का इस्तेमाल ही किया गया है.’
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इन लोगों की रिहाई के बाद सर्वाइवर ने अपनी सुरक्षा को लेकर बिल्कुल वाजिब आशंकाएं जाहिर की हैं.
उनकी जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि मामले की जांच सीबीआई द्वारा की गई थी, तो ऐसे में गुजरात सरकार ऐसी स्थिति में नहीं थी कि केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर सजा में छूट दे सके.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि 11 दोषियों की रिहाई को मंजूरी देते हुए सरकार ने बारीकियों पर कोई ध्यान नहीं दिया है. इसमें आगे कहा गया है, ‘ऐसा करना इस छूट देने की पूरी कवायद को गलत ठहराता है और मारू राम बनाम भारत सरकार, 1980 एआईआर एससी 2147 और संगीत बनाम हरियाणा राज्य, (2013) 2 एससीसी 452 में माननीय न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों का पूरी तरह से उल्लंघन है.’
बार एंड बेंच के मुताबिक, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता अपर्णा भट द्वारा सुभाषिनी अली, रेवती लाल और रूपरेखा वर्मा की याचिका का उल्लेख देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष किया गया था. याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया था कि मामले की सुनवाई बुधवार को हो, लेकिन अदालत ने इसे अभी तक सूचीबद्ध नहीं किया है.
गौरतलब है कि अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा दोषियों को माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था.
सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया जा रहा है.
इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की है.
इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की है.
बिलकीस बानो ने कहा कि इस समयपूर्व रिहाई से न्याय पर उनका भरोसा डिग गया है. क्या उन्हें मिले न्याय का यही अंत है?
बिलकीस ने आगे कहा, ‘मैंने इस देश की सबसे बड़ी अदालत पर भरोसा किया. मैंने व्यवस्था पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे अपने सदमे के साथ जीना सीख रही थी. दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति छीन ली है और न्याय-व्यवस्था पर से मेरा भरोसा डिग गया है.’
उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘मेरा दुख और डगमगाता भरोसा सिर्फ अपने लिए नहीं है, बल्कि उन सब औरतों के लिए है जो इंसाफ की तलब में आज अदालतों में लड़ रही हैं.’
उल्लेखनीय है कि द वायर ने एक लेख में बताया है कि इस साल जून में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोषी ठहराए गए कैदियों की रिहाई के संबंध में राज्यों को दिशानिर्देश जारी किए थे. ये दिशानिर्देश भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को लेकर तैयार की गई एक विशेष नीति के तहत जारी किए गए थे.
दिशानिर्देशों के अनुसार, कैदियों को 15 अगस्त, 2022, 26 जनवरी, 2023 (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त, 2023 को विशेष छूट दी जानी थी. हालांकि, दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट किया गया था कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले और बलात्कार के दोषी समय से पहले रिहाई के हकदार नहीं होंगे.
ऐसे में इस निर्णय के बाद कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों को रिहा करने में केंद्रीय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है.
इस बीच रिहाई की सिफारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों को ‘अच्छे संस्कारों’ वाला ‘ब्राह्मण’ बताया था.
उधर, अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भी बिलकीस बानो के बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी ठहराए गए 11 लोगों की ‘अनुचित’ रिहाई की कड़ी निंदा की है.
बीते शुक्रवार को आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा था कि रिहाई ‘न्याय का उपहास’ है, और ‘सजा से मुक्ति के उस पैटर्न’ का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी लाभ उठाते हैं.
श्नेक ने कहा, ‘2002 के गुजरात दंगों में शारीरिक और यौन हिंसा के अपराधियों को उनके कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराने में विफलता न्याय का मजाक है. यह भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में शामिल होने वाले लोगों के लिए ‘दंड मुक्ति के पैटर्न’ का हिस्सा है.’
गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.
तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.
बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.
केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.
21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.
सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.
इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.