हिमाचल: बढ़ती लागत, कम खरीद दर को लेकर सेब उत्पादकों ने अडानी समूह के केंद्रों का घेराव किया

अडानी समूह ने 2020 में हिमाचल प्रदेश में प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेब के लिए 88 रुपये प्रति किलोग्राम की खरीद दर पेशकश की थी, जिसे दो साल बाद घटाकर 76 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया है. यही वजह है कि सेब उत्पादक खरीद क़ीमत में कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि की मांग कर रहे हैं.

//
सैंज में सेब उत्पादकों का प्रदर्शन. (सभी फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

अडानी समूह ने 2020 में हिमाचल प्रदेश में प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेब के लिए 88 रुपये प्रति किलोग्राम की खरीद दर पेशकश की थी, जिसे दो साल बाद घटाकर 76 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया है. यही वजह है कि सेब उत्पादक खरीद क़ीमत में कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि की मांग कर रहे हैं.

सैंज में सेब उत्पादकों का प्रदर्शन. (सभी फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

चंडीगढ़: जगदीश खिमता शिमला जिले के जुब्बल के एक सेब उत्पादक हैं. उन्हें इस बार अडानी समूह को उनकी फसल के लिए 60-62 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं मिला. उन्होंने द वायर  को बताया कि इस सीजन में उनकी कमाई उम्मीद से काफी कम है.

खिमता ने बताया, ‘उत्पादकों को साल भर अपने बच्चे की तरह सेब की फसल की देखभाल करनी पड़ती है. यह दुखद है कि कैसे बाजार में खरीदार बहुत कम खरीद दर देकर हमारी मेहनत को कमतर आंक रहे हैं. अफसोस की बात है कि राज्य सरकार की ओर से भी कोई हस्तक्षेप नहीं है.’

बढ़ती लागत और घटती आय ने पिछले कुछ वर्षों में सेब उत्पादकों में असंतोष पैदा किया है. इसके अलावा, बढ़ती महंगाई के साथ पैकेजिंग सामग्री पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में बढ़ोतरी ने स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा दिया है.

विभिन्न कारणों से खुले बाजार में सेब की फसल की कीमत में भी गिरावट आई है. सबसे पहले, हिमाचल प्रदेश में इस साल सेब का उत्पादन पिछले साल की तुलना में अधिक था. इसलिए, बाजार के बड़े नामों और मंडी व्यापारियों ने उत्पादकों को कम दरों की पेशकश की.

दूसरा, इस साल की भीषण गर्मी के कारण फसल की गुणवत्ता खराब हुई, जैसे कि सेब का रंग खराब होना और सेब की बढ़वार रुकना. सेब का लाल रंग और आकार उत्पादकों के लिए बेहतर रिटर्न के साथ जुड़ा होता है.

पिछले सप्ताह जुलाई में जैसे ही खरीद का मौसम शुरू हुआ, उत्पादकों ने पैकेजिंग सामग्री पर बढ़े हुए जीएसटी और सेब उद्योग के सामने आने वाली अन्य चुनौतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

किसानों ने अडानी स्टोर का घेराव किया

राज्य सरकार के खिलाफ विरोध जाहिर करने के बाद सेब उत्पादकों ने अब अडानी एग्रोफ्रेश- हिमाचल में सेब की खरीद में शामिल अडानी समूह की शाखाओं में से एक- को फलों की खरीद के लिए अपनी दरों को संशोधित करने के लिए अल्टीमेटम दिया है.

संयुक्त किसान मंच (एसकेएम) के बैनर तले उन्होंने 25 अगस्त गुरुवार को शिमला जिले के रोहड़ू, रेवाली और सैंज में अडानी समूह के तीनों खरीद केंद्रों का घेराव किया. उत्पादकों ने कहा कि वे इस सीजन में अडानी समूह द्वारा कम खरीद दरों की पेशकश के लिए आंदोलन कर रहे थे.

उन्होंने कंपनी से मांग की है कि प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेबों के लिए खरीद मूल्य 76 रुपये प्रति किलोग्राम से कम से कम 30% बढ़ा दिया जाए.

वर्तमान में, अडानी एग्रोफ्रेश की दरें सी ग्रेड गुणवत्ता वाले सेब के लिए 15 रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर उच्च गुणवत्ता वाले सेब के लिए 76 रुपये प्रति किलोग्राम तक हैं, उत्पादकों के अनुसार, जिसके लिए कंपनी को ऑफ सीजन में 250-300 रुपये प्रति किलोग्राम से कम नहीं मिलता है.

इसके अलावा, उन्होंने यह भी मांग की है कि कलर सेंसर कैलिब्रेट किए जाने पर फसल को उत्पादकों और उनके प्रतिनिधियों के सामने ही तौला जाना चाहिए.

उत्पादकों के विरोध को लेकर द वायर  के सवालों के जवाब में अडानी एग्रोफ्रेश के प्रवक्ता ने एक ईमेल में कहा कि वे ‘स्थानीय मंडियों द्वारा खरीद मूल्य निर्धारित करने’ के बाद अपनी पेशकश दरों को अंतिम रूप देते हैं, जिस पर कंपनी अपनी संयुक्त बैठकों में ‘किसानों के साथ आगे चर्चा’ करती है.

प्रवक्ता ने यह भी दावा किया कि उनकी खरीद की कीमतें अच्छी हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘हम अन्य सेवाओं के साथ-साथ किसानों को क्रेट देते हैं, जिससे उनकी फसल की गुणवत्ता बनी रहे, छांटने में आसानी हो. साथ ही जल्द भुगतान होता है, कम  कीमत पर उर्वरक और ओलों से बचाने वाले जाल मुहैया कराए जाते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि इस सीजन में अब तक कंपनी की खरीद काफी अच्छी रही है. केवल 10 दिनों में यह इसके 25,000 टन के लक्ष्य में से 7,500 टन सेब खरीद चुका है.

रोहड़ू में सेब उत्पादकों का प्रदर्शन.

उधर, द वायर  से बात करते हुए एसकेएम के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि अडानी समूह के स्टोर 6 लाख टन के कुल फसल उत्पादन में से 25,000 टन से अधिक खरीद नहीं कर सकते हैं. लेकिन समस्या यह है कि उनकी खरीद दरें मानक सेट करती हैं और हर साल खुले बाजार को प्रभावित करती हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस साल भी कुछ अलग नहीं हुआ. जैसे ही उसने खरीद दरों की घोषणा की, बाजार में [कीमतों में] मंदी आ गई.’

उन्होंने बताया कि 2020 में अडानी ने प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेब के लिए 88 रुपये प्रति किलोग्राम की पेशकश की थी. हालांकि, दो साल बाद वे प्रीमियम गुणवत्ता वाले सेब के लिए 76 रुपये प्रति किलो की पेशकश कर रहे हैं. अगर कोई बढ़ती लागत को ध्यान में रखता है, तो यह दर कहीं न कहीं 90-100 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होनी चाहिए.

हरीश सवाल करते हैं, ‘यह बात कैसे जायज है कि जब उत्पादकों की लागत इतनी बढ़ गई है तो अडानी की खरीद दर कम हो गई है.’

सेब उत्पादक और सरकार आमने-सामने

इस महीने की शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन के कुलपति वाईएस परमार की अगुवाई में एक समिति गठित करके उसे सेब खरीद का मूल्य तय करने को कहा है.

हालांकि, 24 अगस्त को शिमला में हुई समिति की पहली बैठक किसी सुखद निर्णय पर ख़त्म नहीं हुई.

बैठक के दौरान एसकेएम के सदस्यों ने सरकार से अडानी समूह जैसी बड़ी कंपनियों के साथ हुए समझौता ज्ञापन (एमओयू) की एक प्रति पेश करने को कहा था, जिन्हें हिमाचल प्रदेश में अपने खरीद केंद्र स्थापित करने के लिए करोड़ों की सब्सिडी दी गई थी.

एसकेएम ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि बैठक के दौरान मौजूद अधिकारियों ने कहा कि वे सरकार और इन कंपनियों के बीच ऐसे किसी भी एमओयू से अनजान थे.

एसकेएम के हरीश चौहान ने कहा कि वे यह जानना चाहते हैं कि इन बड़ी कंपनियों को किन नियम व शर्तों के तहत राज्य में खरीद केंद्र बनाने के लिए सब्सिडी वाली जमीन और अन्य सुविधाएं आवंटित की गई थीं.

उन्होंने कहा कि अगर सब्सिडी देने के पीछे का विचार सेब उत्पादकों की भलाई है, तो राज्य और कंपनियां दोनों ही ऐसा करने में विफल रही हैं.

हालांकि, उधर राज्य सरकार के अनुसार, हालिया बैठक उत्पादकों की चिंताओं को दूर करने में सफल रही.

बैठक के बाद समिति के अध्यक्ष राजेश्वर चंदेल ने मीडिया को बताया कि सभी निजी खरीद स्टोर को सेब के रंग से संबंधित वर्गीकरण को संशोधित करने के निर्देश जारी किए गए हैं.

वर्तमान में इन स्टोरों में रंग वर्गीकरण के लिए तीन श्रेणियां हैं: 80-100% (ग्रेड ए प्रीमियम गुणवत्ता), 60-80% (ग्रेड बी) और 60% से नीचे (ग्रेड सी).

चंदेल ने कहा, ‘हमने इन स्टोरों को रंग वर्गीकरण को 70-100%, 50-70% और 50% तक संशोधित करने के लिए कहा है. प्रस्तावित वर्गीकरण सेब को एक बेहतर रंग श्रेणी में लाएगा, जिससे बेहतर कीमत मिलेगी.

द वायर  ने कुछ उत्पादकों से बात की जिन्होंने बताया कि अडानी समूह ने बैठक में कुछ दरों में सुधार और रंग वर्गीकरण में बदलाव का आश्वासन दिया था.

राजनीतिक असर

हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकों का विरोध ऐसे समय में शुरू हुआ है जब आगामी नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं.

राजनीतिक टिप्पणीकार और शिमला विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रमेश चौहान ने द वायर  को बताया कि शिमला, सोलन, कुल्लू और किन्नौर जिलों में 19-20 विधानसभा क्षेत्रों में सेब उत्पादकों का काफी प्रभाव है. इसका मतलब यह है कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में, जहां विधानसभा सीटों की कुल संख्या 68 से अधिक नहीं है, उनका ठीक-ठाक दबदबा है.

उन्होंने कहा, ‘अगर उनका विरोध जारी रहा तो वे आगामी चुनाव के नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि 1989 और 1993 के चुनावों के बीच उत्पादकों के विरोध ने सत्तारूढ़ पार्टी को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq