पूर्व नौकरशाहों ने सीजेआई से बिलक़ीस बानो मामले में ‘ग़लत फैसले को सुधारे’ जाने का आग्रह किया

पूर्व नौकरशाहों द्वारा प्रधान न्यायाधीश को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि शीर्ष अदालत ने इस मामले को इतना ज़रूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफ़ी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार.

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New Delhi: People hold placards during a protest against remission of the sentence given to the convicts of Bilkis Banos case by Gujarat government, at Jantar Mantar in New Delhi, Saturday, Aug. 27, 2022. (PTI Photo/Shahbaz Khan)(PTI08 27 2022 000135B)

पूर्व नौकरशाहों द्वारा प्रधान न्यायाधीश को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि शीर्ष अदालत ने इस मामले को इतना ज़रूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफ़ी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार.

बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की रिहाई के विरोध में प्रदर्शन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ 130 से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने शनिवार (27 अगस्त) को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को एक खुला पत्र लिखा और उनसे इस ‘बेहद गलत फैसले’ को सुधारने का अनुरोध किया.

उन्होंने प्रधान न्यायाधीश से गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा पारित इस आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजे जाने का आग्रह किया.

पत्र में कहा गया है, ‘भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर कुछ दिन पहले गुजरात में जो हुआ, उससे हमारे देश के ज्यादातर लोगों की तरह, हम भी स्तब्ध हैं.’

‘कॉस्टिटयूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वावधान में लिखे गए पत्र में जिन 134 लोगों के हस्ताक्षर हैं. इनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, पूर्व विदेश सचिवों शिवशंकर मेनन और सुजाता सिंह और पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई शामिल हैं.

जस्टिस यूयू ललित ने शनिवार को भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली.

इस बीच बीते 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र तथा गुजरात सरकार को नोटिस जारी किए थे.

पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि दोषियों की रिहाई से देश में नाराजगी है. प्रधान न्यायाधीश को संबोधित पत्र में कहा गया है, ‘हमने आपको पत्र इसलिए लिखा है, क्योंकि हम गुजरात सरकार के इस फैसले से बहुत व्यथित हैं और हम मानते हैं कि केवल सुप्रीम कोर्ट के पास वह अधिकार क्षेत्र है, जिसके जरिये वह इस बेहद गलत निर्णय को सुधार सकता है.’

गौरतलब है कि गोधरा में 2002 में ट्रेन में आगजनी के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार किया गया था. उस समय वह पांच महीने की गर्भवती थीं. इस दौरान जिन लोगों की हत्या की गई थी, उनमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थीं.

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने जनवरी 2008 में सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था.

रिपोर्ट के अनुसार, इस पत्र की शुरुआत 28 फरवरी, 2002 को हुई घटनाओं को याद करते हुए होती है, जब राज्य में चल रहे सांप्रदायिक दंगों के दौरान मुस्लिम घरों को नष्ट करने वाली भीड़ से बचने के लिए 19 वर्षीय पांच महीने की गर्भवती बिलकीस बानो, अपने परिवार के सदस्यों और अन्य स्थानीय मुस्लिम लोगों के साथ भागने का प्रयास कर रही थीं.

पत्र में लिखा, ‘बिलकीस, उनकी मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और उनकी तीन साल की बेटी का सिर फोड़ दिया गया. बाद में आठ लोग मृत पाए गए और छह लापता थे. नग्न और बेहोश बिलकीस, एक बूढ़ा आदमी तथा एक तीन साल का बच्चा ही बच सके थे. उनकी अपनी बेटी भी नहीं बच पाई थीं. यह साहस की एक उल्लेखनीय कहानी है कि यह पस्त और चोटिल युवती अपनी पीड़ाओं से छिपकर अदालतों से न्याय पाने में कामयाब रही.’

पत्र में उनके न्याय पाने की लड़ाई का भी ब्योरा दिया गया है. पत्र में बताया गया है कि बिलकीस बानो को मिल रही मौत की धमकी को देखते हुए और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए मामले की जांच पहले गुजरात पुलिस से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और फिर गुजरात से मुंबई में एक विशेष सीबीआई अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था.

पूर्व नौकरशाहों और महिलाओं ने पत्र में लिखा है, ‘मामला दुर्लभ था क्योंकि न केवल बलात्कारियों और हत्यारों को दंडित किया गया था, बल्कि पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों ने भी आरोपियों को बचाने और अपराध को छिपाने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ और उन्हें मिटाने की कोशिश की थी.’

पत्र में कहा गया है कि 15 साल जेल की सजा काटने के बाद एक आरोपी राधेश्याम शाह ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

हालांकि बीते 13 मई को, जैसा कि पत्र में बताया गया है, शीर्ष अदालत ने माना कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए गुजरात सरकार दोषियों की सजा में छूट संबंधी याचिकाओं को सुनने के लिए ‘उपयुक्त सरकार’ है.

कॉस्टिटयूशनल कंडक्ट ग्रुप ने पत्र में इस फैसले पर सवाल उठाया है. इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस मामले में पहले सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत थी. इसके अलावा पत्र भारत संघ बनाम वी. श्रीहरन उर्फ मुरुगन मामले में स्थापित मिसाल को चिह्नित करता है कि ‘उपयुक्त सरकार’ उस राज्य में से एक होगी, जिसमें सजा हुई थी. वर्तमान मामले में इस मिसाल का पालन नहीं किए जाने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ कहा गया है.

पत्र में शीर्ष अदालत के इस आदेश पर आपत्ति जताई गई है, जिसमें कहा गया है कि इस मामले की सुनवाई दो महीने के भीतर गुजरात राज्य द्वारा की जानी चाहिए.

पत्र में कहा गया है, ‘हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इतना जरूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार.’

इसमें कहा गया है, ‘हम आपसे गुजरात सरकार द्वारा पारित आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को उम्रकैद की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने का आग्रह करते हैं.’

बता दें कि बीते 15 अगस्त को गुजरात की भाजपा सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत इस मामले के 11 दोषियों की उम्र कैद की सजा को माफ कर दिया था, जिसके बाद उन्हें 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया जा रहा है. वहीं, रिहाई की सिफारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों को ‘अच्छे संस्कारों’ वाला ‘ब्राह्मण’ बताया था.

इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की है.

मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी थी.

उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.

वर्ष 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में आगजनी की घटना के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, घटना के समय वह पांच महीने की गर्भवती थीं. मारे गए लोगों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)