सरकारी विभागों ने 55 मामलों में भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करने की सलाह नहीं मानी: सीवीसी

केंद्रीय सतर्कता आयोग की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल मंत्रालय उन सरकारी विभागों की सूची में सबसे ऊपर है, जिन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने संबंधी सीवीसी के सुझावों का पालन नहीं किया और अपने मनमुताबिक़ मामलों का निपटारा कर दिया.

(फोटो साभार: फेसबुक)

केंद्रीय सतर्कता आयोग की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल मंत्रालय उन सरकारी विभागों की सूची में सबसे ऊपर है, जिन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने संबंधी सीवीसी के सुझावों का पालन नहीं किया और अपने मनमुताबिक़ मामलों का निपटारा कर दिया.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सरकारी विभागों ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की ओर से 55 मामलों में भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को दंडित करने की सिफारिशों को नहीं माना है. रेलवे मंत्रालय के 11 ऐसे मामले हैं जहां सिफारिशें नहीं मानी गई हैं.

एक आधिकारिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल मंत्रालय उन सरकारी विभागों की सूची में सबसे ऊपर है, जिन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सीवीसी के सुझाव का पालन नहीं किया और अपनी अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं के अनुसार मामलों का निपटारा कर दिया.

सीवीसी की वार्षिक रिपोर्ट-2021 में कहा गया है कि भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), बैंक ऑफ इंडिया और दिल्ली जल बोर्ड में ऐसे चार-चार मामले हैं जबकि महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ने तीन मामलों में अपने कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्टाचारियों को दंडित करने के लिए आयोग की सिफारिश नहीं मानने के ऐसे दो-दो मामले इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, मद्रास फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय और उत्तरी दिल्ली नगर निगम (जो अब एकीकृत दिल्ली नगर निगम का हिस्सा है) के हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आयोग ने पाया कि 2021 में उसकी कुछ अहम सिफारिशों को नहीं माना गया.

इसमें कहा गया, ‘आयोग की सिफारिशों को नहीं मानना अथवा आयोग से विचार विमर्श नहीं करना सतर्कता की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है तथा सतर्कता प्रशासन की निष्पक्षता को कमजोर करता है.’

ऐसे ही एक मामले का ब्योरा देते हुए सीवीसी ने कहा कि विभिन्न क्षमताओं में काम करते हुए रेलवे के एक मुख्य कार्मिक अधिकारी (सीपीओ) ने अपनी आय के ज्ञात स्रोत से 138.65 प्रतिशत अधिक संपत्ति अर्जित की.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘उन्हें संपत्ति की खरीद और उनके या उनकी पत्नी द्वारा किए गए निवेश तथा परिवार के सदस्यों द्वारा लिए गए उपहारों के बारे में मौजूदा नियमों के अनुसार विभाग की अनुमति नहीं लेने या उसे सूचित नहीं करने का जिम्मेदार पाया गया.’

रिपोर्ट के अनुसार, ‘आयोग ने पहले चरण में 7 मार्च 2021 को तत्कालीन मुख्य कार्मिक अधिकारी के खिलाफ बड़ा जुर्माना लगाने की कार्रवाई शुरू करने का सुझाव दिया. वहीं, दूसरे चरण में उनके खिलाफ रेलवे सेवा (पेंशन) नियम के तहत जुर्माना लगाने की सलाह दी थी.’

इसमें कहा गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकार अर्थात रेलवे बोर्ड (मेंबर स्टाफ) ने मामले को बंद करने का फैसला किया और अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी गई.

बीते वर्ष की रिपोर्ट में रेलवे में ऐसे 9 मामले पाए गए थे. रिपोर्ट में अन्य मामलों के भी ब्योरे पेश किए गए हैं.

सीवीसी ने कहा कि उसने विभागों द्वारा मामलों से निपटने के तरीकों में गंभीर और महत्वपूर्ण अनियमितताएं और खामियां दर्ज की हैं. इन खामियों में असहमति या सलाह लेने में देरी और जागरूकता की कमी या नियमों की अनदेखी के मामलों में सीवीसी या कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के साथ परामर्श हेतु प्रक्रियाओं का पालन करने में अनुशासनात्मक प्राधिकारी की विफलता शामिल है.

एक और मामला जिस पर रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है, वह सिडबी का है, जिसका नतीजा बड़े वित्तीय नुकसान के रूप में सामने आया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में बैंक के कोषागार और उसके प्रबंधन विभाग में काम करने वाले अधिकारियों ने आठ शाखाओं में दो परस्पर संबंधित निजी वित्तीय संस्थानों के साथ सावधि जमा (फिक्सड डिपॉजिट) के रूप में 1,000 करोड़ रुपये रखे. इस दौरान न कोई कोटेशन लिया, न संस्थानों के साथ ब्याज दरों की तुलना या बातचीत की और सिडबी के कोषागार ऑपरेशंस की एसओपी का उल्लंघन किया.

सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे मामले के संबंध में आयोग ने मामले से जुड़े दो अधिकारियों पर बड़ा जुर्माना लगाने की सलाह दी थी, लेकिन अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने आयोग की सलाह से इतर जाकर दोनों अधिकारियों को आरोप मुक्त कर दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)