पंजाब सरकार ने यह फैसला तब लिया है जब उसे सूचित किया गया कि कई महिला सरपंचों के परिवार के पुरुष सदस्य उनकी जगह आधिकारिक बैठकों में शामिल हो रहे हैं और कम से कम तीन पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति, देवर और ससुर को आधिकारिक शपथ दिलाई गई है.
नई दिल्ली: पंजाब सरकार ने फैसला लिया है कि अब महिला सरपंचों की जगह बैठक में उनके पुरुष रिश्तेदार शामिल नहीं हो सकेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, पंजाब सरकार ने यह फैसला तब लिया, जब उसे सूचित किया गया कि कई महिला सरपंचों के परिवार के पुरुष सदस्य उनकी जगह आधिकारिक बैठकों में शामिल हो रहे हैं.
ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने अखबार को बताया, ‘मुझे ऐसी खबरें मिल रही हैं कि ज्यादातर महिला सरपंच जिला मुख्यालय में होने वाली बैठकों में शामिल नहीं होती हैं. वे ब्लॉक और ग्राम स्तर की बैठकों में भी शामिल नहीं होतीं. अगर ऐसा होता है तो महिलाओं के लिए आरक्षण का क्या मतलब है?’
राज्य की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अब उपायुक्तों और अन्य जिला अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि महिला सरपंच व्यक्तिगत रूप से सभी आधिकारिक बैठकों में शामिल हों.
धालीवाल ने कहा, ‘सिर्फ बैठकें ही नहीं, गांवों में भी उनके पुरुष रिश्तेदार ही काम संभालते हैं. मैंने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि इस प्रथा को रोका जाए.’
मंत्री के अनुसार, उन्होंने अधिकारियों से पहले भी बैठकों में महिला सरपंचों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कहा था.
उन्होंने कहा, ‘अब मैं लिखित निर्देश जारी कर रहा हूं. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि पुरुष प्रतिनिधियों को सभा स्थलों के अंदर भी जाने की अनुमति न दी जाए. निर्वाचित प्रतिनिधि सशक्त हों, यह सुनिश्चित करने का यही एकमात्र तरीका है.’
गौरतलब है कि पंजाब में पिछली कांग्रेस सरकार ने पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था
इस संबंध में कांग्रेस नेता और पूर्व ग्रामीण विकास व पंचायत मंत्री त्रिपत राजिंदर सिंह बाजवा ने कहा, ‘हम आरक्षण बढ़ा सकते हैं, लेकिन जमीनी हालात नहीं बदलते. 80 फीसदी से अधिक महिला सरपंच आज भी छद्म सरपंच हैं.’
आदेश तब जारी किया गया जब यह प्रकाश में आया कि कम से कम तीन पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति, देवर और ससुर को आधिकारिक शपथ दिलाई गई.
गौरतलब है कि यह समस्या केवल पंजाब तक सीमित नहीं है.
इसी महीने की शुरुआत में मध्य प्रदेश के पंचायत राज विभाग ने एक आदेश जारी कर जिला कलेक्टरों को उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था जिन्होंने अनिर्वाचित लोगों को पद की शपथ दिलाई थी.
पंजाब में कुल 13,276 पंचायत हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट में कहा कि उसने नवीनतम आदेश को लेकर जिन लोगों से बात की उनमें से कई महिलाओं द्वारा इसका समर्थन किया गया है, तो कुछ अन्य लोगों के परिवार के पुरुष सदस्यों ने इस पर असंतोष व्यक्त किया.
बहरहाल, बठिंडा के माणक खाना गांव की 26 वर्षीय सरपंच सेशनदीप कौर सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहती हैं, ‘यदि सरकार महिलाओं को वास्तव में सशक्त बनाने के लिए आरक्षण लागू चाहती है तो उसे ऐसे उपाय करने ही होंगे. अभ्यास सत्र के दौरान मैंने ऐसी की महिलाओं को देखा जो आगे आना नहीं चाहती थीं. कुछ ऐसी भी थीं जिन्हें उनके पुरुष रिश्तेदारों द्वारा अपने इशारे पर चलाया जा रहा था. अगर उन्हें ऐसे ही काम करना है, तो उन्हें अन्य योग्य महिलाओं के लिए सीट छोड़ देनी चाहिए.’
पठानकोट के हारा गांव की सरपंच पल्लवी ठाकुर, जो 2018 में 21 साल की उम्र में राज्य की सबसे युवा सरपंच बनी थीं, ने कहा, ‘मेरे ब्लॉक में 80 में से 42 सरपंच महिलाएं हैं. वास्तव में उनमें से केवल 5-6 ही सरपंच हैं. बाकी सब डमी हैं. मैंने उनके पतियों से अनुरोध किया कि वे उन्हें काम करने दें तो उन्होंने कहा कि उनकी पत्नियां यात्रा नहीं कर सकतीं.’
हरजिंदर सिंह की पत्नी रचपाल कौर मलेरकोटला के छन्ना गांव की सरपंच हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर वे (पति) मुझे अनुमति नहीं देते हैं, तो हम किसी भी बैठक में शामिल नहीं होंगे. आप एक महिला से हर दिन यात्रा करने और बैठकों में भाग लेने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं.’