राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने यूक्रेन के अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम को मान्यता देने पर सहमति जताते हुए कहा है कि वहां से वापस लौटे भारतीय मेडिकल छात्र अब दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेंगे. हालांकि उन्हें डिग्री यूक्रेन के मूल विश्वविद्यालय द्वारा ही दी जाएगी.
नई दिल्ली: युद्धग्रस्त यूक्रेन से वापस लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों को अब दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मिल जाएगी.
मौजूदा विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ऐसे छात्रों को अपनी शिक्षा पूरी करने की अनुमति देने के लिए यूक्रेन के अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम (Academic Mobility Programme) को मान्यता देने पर सहमत हो गया है, लेकिन डिग्री यूक्रेन के मूल विश्वविद्यालय द्वारा ही प्रदान की जाएगी.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग कानून के अनुसार, विदेशी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को केवल एक ही विश्वविद्यालय से डिग्री लेने की आवश्यकता होती है.
एनएमसी द्वारा मंगलवार (छह सितंबर) को जारी सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि गतिशीलता कार्यक्रम संबंधी यूक्रेन की पेशकश पर विदेश मंत्रालय के परामर्श से आयोग में विचार किया गया.
यह जानकारी दी गई है अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में अन्य विश्वविद्यालयों में दाखिला के लिए एक अस्थायी व्यवस्था है.
नोटिस में कहा गया है कि डिग्री यूक्रेन के मूल विश्वविद्यालय द्वारा ही प्रदान की जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस संबंध में संपर्क करने पर एनएमसी के एक अधिकारी ने कहा कि आदेश का मतलब यह नहीं है कि छात्रों को भारत के कॉलेजों में अपना पाठ्यक्रम जारी रखने की अनुमति दी जाएगी.
अधिकारी ने कहा कि नवीनतम ‘अनापत्ति’ अनिवार्य रूप से उन छात्रों पर लागू होती है, जिन्होंने नवंबर 2021 में नए नियमों के लागू होने के बाद यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लिया था. अन्य छात्र, जो इस तरह पढ़ाई के नियमों को लेकर भ्रम में थे, पहले के नियमों के तहत अन्य देशों में अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए स्वतंत्र हैं.
हालांकि, इस बीच रूस के आक्रमण के बाद यूक्रेन से आए मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों में अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं देने पर भारत की स्थिति यथावत है.
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने जुलाई 2022 में एक लिखित उत्तर में लोकसभा को सूचित किया था, ‘भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के नियमों में किसी भी विदेशी चिकित्सा संस्थानों से मेडिकल छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में स्थानांतरित या समायोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है.’
अब जारी एनएमसी नोटिस में कहा गया है, ‘यह सूचित किया जाता है कि यूक्रेन द्वारा पेश किए गए गतिशीलता कार्यक्रम पर विदेश मंत्रालय के परामर्श से आयोग में विचार किया गया है, जिसमें यह सूचित किया गया है कि अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम विश्व के किसी अन्य विश्वविद्यालयों में एक अस्थायी स्थानांतरण है. हालांकि, डिग्री मूल यूक्रेनी विश्वविद्यालय द्वारा ही दी जाएगी.
इसमें आगे कहा गया, ‘आयोग इसके माध्यम से यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय मेडिकल छात्रों के संबंध में अकादमिक गतिशीलता कार्यक्रम के लिए अपनी अनापत्ति देता है बशर्ते कि स्क्रीनिंग टेस्ट विनियम, 2002 के अन्य मानदंड पूरे हों.’
ज्ञात हो कि पिछले साल स्क्रीनिंग टेस्ट रेगुलेशन 2002 की जगह फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंस रेगुलेशन 2021 लाया गया था, जिसमें कोर्स की अवधि, विषयों और कोर्स को पूरा करने के लिए अधिकतम वर्षों से जुडी शर्तें थीं.
2002 के नियमों में अन्य देशों के विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित करने से रोकने को लेकर कोई विशिष्ट खंड नहीं था. लेकिन पिछले नवंबर में लागू हुए 2021 के नए नियम कि पूरे पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और इंटर्नशिप भारत के बाहर एक ही विश्वविद्यालय में की जानी होगी.
एनएमसी अधिकारी ने बताया कि यही कारण है कि नवंबर 2021 के बाद शामिल हुए छात्र, जिन्होंने यूक्रेन में सितंबर 2021 और जनवरी 2022 वाले पाठ्यक्रम चुने थे, वे अन्य देशों में पढ़ाई पूरी करने नहीं जा सके. अधिकारी ने कहा, ‘यह (एनएमसी नोटिस) इन छात्रों को समान पाठ्यक्रमों में अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए भारत के अलावा किसी अन्य देश में जाने की अनुमति देगा.’
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए एनएमसी ने यूक्रेन और चीन के मेडिकल छात्रों, जिन्होंने 30 जून, 2022 से पहले अपना कोर्स पूरा कर लिया था, लेकिन अपनी इंटर्नशिप पूरी नहीं कर सके थे, को विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा (एफएमजीई) में शामिल होने की अनुमति दी थी.
एफएमजीई वह स्क्रीनिंग टेस्ट होता है, जिसे विदेशी मेडिकल छात्रों को भारत में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए पास करना होता है. उनकी छूट गई क्लीनिकल ट्रेनिंग के एवज में उन्हें देश में दो साल की इंटर्नशिप भी पूरी करनी होती है.
गौरतलब है कि फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद तकरीबन 18,000 मेडिकल छात्र यूक्रेन से लौटे थे. एफएमजीई परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या के आंकड़ों के आधार पर देखें, तो पिछले पांच वर्षों में हर साल लगभग 3,000 से 4,000 भारतीय छात्र यूक्रेन में चिकित्सा पाठ्यक्रमों में शामिल हुए.
यूक्रेन से आए भारतीय मेडिकल छात्रों को भारत में अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति देने का मुद्दा इसलिए भी विवादों में रहा है क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार ने एनएमसी की अनुमति के बिना राज्य के सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में ऐसे 412 छात्रों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग का प्रस्ताव दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)