आयकर विभाग द्वारा इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के कार्यालयों में ‘सर्वे’ के बाद दोनों संस्थानों ने नियमों के दायरे में काम करने की बात कही है. वहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए आलोचकों की आवाज़ दबाने का सरकारी प्रयास क़रार दिया है.
नई दिल्ली: सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) और इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) नामक दो संस्थाओं पर 7 सितंबर को आयकर (आईटी) विभाग ने सर्वे किया था. दोनों संस्थाओं ने अब कहा है कि उन्होंने कोई भी कानून नहीं तोड़ा है और अधिकारियों के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं.
सीपीआर एक नीतिगत थिंक टैंक है, जबकि आईपीएसएमएफ स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को फंड उपलब्ध कराता है. गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम इंडिया के साथ ही साथ इन दोनों के कार्यालयों का भी आईटी विभाग द्वारा 7 सितंबर को सर्वे किया गया था.
एक बयान में, सीपीआर की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी यामिनी अय्यर ने कहा कि सीपीआर के पास सभी आवश्यक स्वीकृति और मंजूरी हैं, और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तहत विदेशों से धन प्राप्त करने के लिए अधिकृत है.
उन्होंने कहा कि ‘सीपीआर एक गैर लाभकारी, गैर पक्षपाती स्वंतत्र संस्थान है जो उच्च गुणवत्ता की फैलोशिप, बेहतर नीतियों और एक अधिक मजबूत सार्वजनिक संवाद मे योगदान देता है.’
बयान में कहा गया है कि हम उच्चतम स्तर पर नियमों का पालन करते हैं और हमें विश्वास है कि हमने कुछ भी गलत नहीं किया है. हम अधिकारियों के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि उनके जो भी सवाल हैं उनका समाधान किया जा सके. हम भारत में नीति निर्माण के लिए कठिन शोध प्रदान करने के अपने अभियान को लेकर प्रतिबद्ध हैं.
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— Yamini Aiyar (@AiyarYamini) September 9, 2022
वहीं, आईपीएसएमएफ के अध्यक्ष टीएन निनान ने एक बयान में कहा कि फाउंडेशन के बेंगलुरु स्थित कार्यालय में आयकर अधिकारियों का ‘सर्वे’ शुक्रवार (9 सितंबर) तक चला.
आईपीएसएमएफ ने कहा कि कर अधिकारी शुक्रवार सुबह 4.30 बजे तक रुके रहे. उन्होंने फाउंडेशन के कागजात व रिकॉर्ड देखे और सवाल पूछे.
अपने कामकाज को पूरी तरह व्यवस्थित बताते हुए फाउंडेशन ने विदेश से पैसा लेने संबंधी खबरों का खंडन किया और कहा कि उसने किसी भी स्थिति में विदेश से पैसा प्राप्त नहीं किया है.
निनान ने कहा कि फाउंडेशन को पूरा विश्वास है कि उसका कामकाज पूरी तरह व्यवस्थित है.
उन्होंने कहा, ‘आयकर सर्वे पर रिपोर्टिंग करने वाले कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे विदेश से पैसा लेने और राजनीतिक दलों का वित्त पोषण करने से जोड़ दिया. हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि फाउंडेशन को किसी भी स्तर पर विदेश से कोई पैसा नहीं मिला और इसने केवल मीडिया संस्थाओं को वित्त पोषित किया है.’
उन्होंने कहा, ‘फाउंडेशन स्वतंत्र और जन-उत्साही मीडिया का समर्थन करने के अपने मिशन में विश्वास करता है, और अपना काम जारी रखने का इरादा रखता है.’
आईपीएसएमएफ के अध्यक्ष के अनुसार, अधिकारियों के साथ स्टाफ ने पूरा सहयोग करते हुए उनके सभी सवालों के जवाब दिए. अधिकारियों ने स्टाफ के तीन सदस्यों के बयान लिए और सभी लैपटॉप और मोबाइल फोन डेटा की क्लोनिंग के लिए ले गए और गुरुवार रात को वापस कर दिया.
सीईओ सुनील राजशेखर के अलावा सभी स्टाफ को सात सितंबर की शाम या रात को विभिन्न चरणों में घर जाने दिया गया , लेकिन अगली सुबह पूछताछ के लिए दोबारा आने को कहा गया.
न्यासी बोर्ड ने कहा कि कर अधिकारी अपने सर्वेक्षण कार्य के दौरान विनम्र थे. आईपीएसएमएफ पूर्व में द वायर को भी फंड दे चुका है.
आलोचना करने वालों की आवाज दबाने के लिए सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल चिंताजनक: एमनेस्टी
आयकर विभाग की छापेमारी के एक दिन बाद ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने कहा है कि यह इस बात का एक और ‘स्पष्ट’ उदाहरण है कि कैसे जांच एजेंसियों को स्वतंत्र लोगों तथा अलोचना करने वालों को परेशान करने तथा डराने-धमकाने के लिए ‘हथियार’ बनाया गया है.
‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने कहा कि भारतीय अधिकारियों को इस ‘दमन की रणनीति’ को तुरंत रोकना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिक संगठन देश में प्रतिशोध की कार्रवाई से डर के बिना काम कर पाएं.
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, आयकर विभाग ने कथित कर चोरी, एफसीआरए के उल्लंघन और पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के धन के अवैध लेन-देन के अलग-अलग मामलों में बुधवार को विभिन्न राज्यों में छापेमारी की थी.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की दक्षिण एशिया क्षेत्रीय निदेशक यामिनी मिश्रा ने कहा, ‘कई नागरिक संस्थाओं के खिलाफ आयकर विभाग के छापे जिन्हें एक सर्वे बताया गया है, इस बात का एक और स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे देश में आलोचना करने वालों की आवाज दबाने, उन्हें परेशान करने और डराने के लिए सरकार की वित्तीय व जांच एजेंसियों को हथियार बनाया गया है.’
मिश्रा ने एक बयान में कहा, ‘यह चिंताजनक है कि भारत में प्राधिकरण द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों पर हमले हर दिन कैसे बिना रोक-टोक बढ़ते जा रहे हैं.’
गौरतलब है कि इससे पहले विभिन्न स्वतंत्र डिजिटल मीडिया संस्थानों के संगठन डिजीपब ने भी आईटी सर्वे की निंदा करते हुए इसे स्वतंत्र पत्रकारिता पर लगाम कसने की दमनकारी प्रवृत्ति करार दिया था.
उसने कहा था,‘आरोपों या सबूतों को लेकर बिना किसी स्पष्टता के आयकर विभाग का इस्तेमाल जनसेवी पत्रकारिता में शामिल संगठनों को डराने और प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है. यह मानव संसाधनों की बर्बादी है, साथ ही ऐसे अधिकारियों के प्रयासों की भी, जो देश के प्रशासनिक तंत्र में योगदान देने के लिए जुड़े थे.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)