बिलक़ीस मामले के दोषियों की रिहाई संबंधित रिकॉर्ड दो सप्ताह में पेश करे गुजरात सरकार: कोर्ट

गुजरात सरकार द्वारा इसकी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के मामले में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

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अप्रैल 2019 में दिल्ली में हुई एक प्रेस वार्ता में अपने पति के साथ बिलकीस. (फोटो: पीटीआई)

गुजरात सरकार द्वारा इसकी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के मामले में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

अप्रैल 2019 में दिल्ली में हुई एक प्रेस वार्ता में अपने पति के साथ बिलकीस. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट तथा रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तीन हफ्ते बाद सुनवाई करेगा.

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आया. पीठ ने गुजरात सरकार के वकील से दो सप्ताह के भीतर संबंधित रिकॉर्ड पेश करने को कहा.

शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को इस मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगा था.

अदालत ने माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा की याचिका पर नोटिस जारी किया था.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की है और उनकी याचिका को भी शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था.

सुनवाई के दौरान 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ​​ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को इन लोगों को प्रतिवादी के रूप में अभियोजित के लिए एक आवेदन दायर किया है.

उन्होंने कहा कि अभियोजित प्रतिवादियों को नोटिस जाना है और उन्हें जवाब दाखिल करना है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने शीर्ष अदालत के पहले के निर्देश का पालन किया है.

पीठ ने मल्होत्रा ​​से पूछा, ‘आपने स्थगन के लिए आवेदन क्यों दायर किया है?’ मल्होत्रा ने कहा कि इस मामले में कई याचिकाएं दायर की गई हैं.

याचिकाकर्ताओं के अधिकारक्षेत्र पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं आपराधिक मामले में इस अभियोग व्यवसाय के खिलाफ हूं.’

पीठ ने मल्होत्रा ​​से कहा कि 11 लोगों को मुख्य मामले में पक्षकार बनाया गया है और वह उनकी ओर से नोटिस स्वीकार कर सकते हैं.

मल्होत्रा ​​ने कहा कि वह उनमें से केवल एक के लिए पेश हुए हैं और उन्हें निर्देश लेना होगा. पीठ ने कहा कि याचिकाओं की प्रति उन्हें और साथ ही राज्य के वकील को भी दी जाए.

मल्होत्रा ​​ने कहा कि अन्य याचिकाओं में नोटिस जारी करना जरूरी नहीं होगा क्योंकि उनमें भी यही मांग की गई है.

पीठ ने पूछा कि जब कार्रवाई का कारण एक ही है, तो कई याचिकाएं क्यों दायर की गई हैं. मामले में दायर एक अलग याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकीलों में से एक ने कहा कि उनकी याचिका में आग्रह थोड़ा अलग है.

पीठ ने राज्य के वकील से दो सप्ताह के भीतर संबंधित रिकॉर्ड दाखिल करने को कहा. इसने यह भी कहा कि प्रत्युत्तर, यदि कोई हो, उसके बाद एक सप्ताह के भीतर प्रस्तुत किया जाए.

गौरतलब है कि अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा दोषियों को माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था.

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया जा रहा है. वहीं, रिहाई की सिफारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों को ‘अच्छे संस्कारों’ वाला ‘ब्राह्मण’ बताया था.

इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की है.

इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की है.

बिलकीस बानो ने कहा कि इस समयपूर्व रिहाई से न्याय पर उनका भरोसा डिग गया है. क्या उन्हें मिले न्याय का यही अंत है?

उल्लेखनीय है कि द वायर  ने एक लेख में बताया है कि इस साल जून में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोषी ठहराए गए कैदियों की रिहाई के संबंध में राज्यों को दिशानिर्देश जारी किए थे. ये दिशानिर्देश भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को लेकर तैयार की गई एक विशेष नीति के तहत जारी किए गए थे.

दिशानिर्देशों के अनुसार, कैदियों को 15 अगस्त, 2022, 26 जनवरी, 2023 (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त, 2023 को विशेष छूट दी जानी थी. हालांकि, दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट किया गया था कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले और बलात्कार के दोषी समय से पहले रिहाई के हकदार नहीं होंगे.

ऐसे में इस निर्णय के बाद कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों को रिहा करने में  केंद्रीय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है.

गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.

तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)