नवंबर 2019 में पुणे और नासिक से खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने जॉनसन एंड जॉनसन के बेबी पाउडर के नमूने लिए थे, जिनमें त्वचा के लिए हानिकारक पीएच का स्तर स्वीकृत मानकों से अधिक पाया गया. अब मुलुंड में कंपनी की निर्माण इकाई का लाइसेंस रद्द कर उसे बाज़ार से उत्पाद वापस लेने को कहा गया है.
मुंबई: महाराष्ट्र के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने जन स्वास्थ्य के हित में जॉनसन एंड जॉनसन प्राइवेट लिमिटेड का बेबी पाउडर निर्माण करने संबंधी लाइसेंस रद्द कर दिया है. कंपनी की राज्य में एकमात्र निर्माण इकाई मुलुंड में स्थित है.
राज्य सरकार की एजेंसी ने शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि कंपनी का उत्पाद जॉनसन बेबी पाउडर नवजात शिशुओं की त्वचा को प्रभावित कर सकता है.
नियामक ने कहा कि शिशुओं के लिए इस्तेमाल होने वाले इस पाउडर के नमूने प्रयोगशाला जांच के दौरान मानक पीएच मान के अनुरूप नहीं थे.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, यह फैसला कंपनी और एफडीए के बीच डेढ़ साल लंबे चले विवाद के बाद आया है. नवंबर 2019 में पुणे और नासिक से जुटाए गए नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे थे, जिनमें विश्लेषकों ने पीएच का स्तर 9.285 पाया, जो कि स्वीकृत स्तर (5.5 से 8) से अधिक था.
अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हालांकि एफडीए की कार्रवाई महत्वपूर्ण है, लेकिन शिशुओं के इस्तेमाल में आने वाले इस हानिकारक उत्पाद पर कार्रवाई में दो सालों का समय लगना सवाल उठाता है.
एफडीए की विज्ञप्ति में कहा गया है कि कार्रवाई कोलकाता स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला की निर्णायक रिपोर्ट के बाद की गई थी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि ‘पाउडर का नमूना पीएच जांच के संबंध में आईएस 5339:2004 के अनुरूप नहीं है.’
विज्ञप्ति के अनुसार, एफडीए ने गुणवत्ता जांच के उद्देश्य से पुणे और नासिक से जॉनसन के बेबी पाउडर के नमूने लिए थे. सरकारी विश्लेषक ने नमूनों को ‘मानक गुणवत्ता के अनुरूप न होना’ घोषित किया क्योंकि वे पीएच जांच में शिशुओं के स्किन पाउडर के लिए आवश्यक आईएस 5339:2004 की विशिष्टता का पालन नहीं करते.
विज्ञप्ति में कहा गया है कि इसके बाद, एफडीए ने जॉनसन एंड जॉनसन को ‘औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 और नियम’ के तहत एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था,
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कारण बताओ नोटिस में पूछा गया था कि क्यों न कंपनी के मेन्युफैक्चरिंग लाइसेंस को निलंबित या रद्द कर दिया जाए. कंपनी ने सरकारी विश्लेषक की ‘रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया’ और इसे केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला में भेजने के लिए अदालत में चुनौती दी. हाल ही में, केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला ने सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट को सही ठहराया है.
सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट से अब तक की प्रक्रिया में करीब डेढ़ साल का समय लगा और 15 सितंबर को एफडीए ने उत्पाद का निर्माण रोकने और इसे बाजार से वापस लेने का आदेश जारी किया है.
एफडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जॉनसन बेबी पाउडर लोकप्रिय है, विशेष तौर पर अभिभावक नवजात शिशुओं पर इसे इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने कहा, ‘उच्च पीएच स्तर वाले उत्पाद का इस्तेमाल शिशुओं की त्वचा और उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है.’
एक वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ का कहना है कि औषधि नियामक को भारत में जॉनसन बेबी पाउडर का इस्तेमाल तभी रोक देना चाहिए था, जब विदेश में इसका संबंध कैंसर से पाया गया था.
बता दें कि साल 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जॉनसन एंड जॉनसन पर अमेरिकी महिलाओं ने मुकदमा किया था कि इसमें एस्बेस्टस पाया जाता है, जिसके चलते उन्हें गर्भाशय का कैंसर हुआ. 22 कैंसर पीड़िताओं द्वारा गए मुकदमे में 2018 में ही कंपनी पर 32,000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
उस समय बताया गया था कि जॉनसन एंड जॉनसन वर्तमान में पूरे अमेरिका में मुकदमों का सामना कर रहा था. इसके उत्पादों के द्वारा गर्भाशय का कैंसर होने का दावा करने वाली महिलाओं द्वारा 9,000 से ज्यादा मुकदमे दर्ज कराए गए थे.
ऐसे ही एक मामले में साल 2017 में वर्जिनिया में कंपनी को लगभग 10 मिलियन डॉलर का जुर्माना सहना पड़ा था. उससे पहले 2016 में भी कंपनी ने एक कैंसर के मरीज को समान समस्या होने के चलते 55 मिलियन डॉलर का हर्जाना भरा था.
वहीं, भारत की बात करें तो वर्ष 2019 में जॉनसन एंड जॉनसन के बेबी शैम्पू में भी घातक रसायन पाए गए थे. तब भी राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी को अपना उत्पाद बाजार से वापस लेने के लिए कहा था.
इस बीच, ऑल फूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर्स फाउंडेशन के अभय पांडे ने कहा कि उन्होंने जनवरी 2020 में एफडीए को लिखा था कि वह रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई शुरू करे, लेकिन एफडीए ने इसमें समय लिया.
उन्होंने कहा, ‘पिछले दो सालों में लाखों बच्चों ने इसका इस्तेमाल किया होगा.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)