ठुमरी की मलिका कही जाने वाली प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी का कोलकाता में 88 वर्ष की उम्र में निधन.
कोलकाता: किशोरी अमोनकर के बाद भारतीय शास्त्रीय गायन परंपरा का साथ छोड़कर एक और सितारा चला गया. पद्म विभूषण से सम्मानित प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी का मंगलवार रात दिल का दौरा पड़ने से कोलकाता के एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 88 वर्ष की थीं.
उन्हें ठुमरी की मलिका कहा जाता था. इसके अलावा चैती, कजरी, दादरा आदि गायन परंपराओं के लिए भी वह जानी जाती थीं.
उनके परिवार में एक बेटी हैं. प्यार से लोग उन्हें ‘अप्पा’ बुलाते थे. गिरिजा देवी को मंगलवार दोपहर दिल से संबंधित तकलीफ के बाद शहर के बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर में भर्ती करवाया गया था. उनके परिवार के सूत्रों ने बताया कि उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था.
अस्पताल के प्रवक्ता ने बताया, गिरिजा देवी को जब अस्पताल लाया गया तब उनकी स्थिति काफी गंभीर थी और रात 08:45 बजे के लगभग उनका निधन हो गया.
बनारस घराने की गिरिजा देवी को वर्ष 1972 में पद्श्री सम्मान मिला था. वर्ष 1989 में उन्हें पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
साल 1949 में आॅल इंडिया रेडियो के इलाहाबाद स्टूडियो से उन्होंने अपने संगीतमय करिअर की शुरुआत की थी. साल 1977 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान से नवाज़ा गया. साल 2003 में उन्हें आईटीसी सम्मान और साल 2010 में संगीत नाटक अकादमी रत्न सदस्य फेलोशिप मिले.
उनका जन्म आठ मई 1929 को बनारस के निकट एक गांव में जमींदार रामदेव राय के यहां हुआ था. जब सभ्रांत परिवारों की महिलाओं के लिए गायन और मंच पर प्रदर्शन बुरा माना जाता था, उस दौर में गिरिजा देवी ने शास्त्रीय गायन शुरू किया था.
पिछले कुछ वर्षों से वह कोलकाता के आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी में शास्त्रीय गीत संगीत की शिक्षा दे रही थीं. इस वजह से वह कोलकाता में ही रह रही थीं.
बनारस और सेनिया परंपरा से आने वाली गिरिजा देवी भारतीय की महान शास्त्रीय गायिकाओं में से एक थीं. इसके अलावा बनारस घराने के पूरब अंग गायिकी की आख़िरी उस्तादों में से भी वह एक थीं.
पिछले छह दशक से लगातार वह शास्त्रीय गायन के अलावा इसकी शिक्षा देने में सक्रिय रहीं. बनारस में जन्मीं गिरिजा देवी ने पांच साल की उम्र में गायक और सारंगी वादक पंडित सरजू प्रसाद मिश्रा से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी.
इसके बाद आगे की शिक्षा उन्होंने पंडित श्रीचंद मिश्रा से ली. उत्तर भारत की अधिकांश गायन परंपरा जैसे- ख़याल, ठुमरी, दादरा टप्पा, कजरी, होरी, चैती, भजन आदि में उन्हें महारथ हासिल था.
वह आॅल इंडिया रेडियो के केद्रीय आॅडिशन बोर्ड और संगीत नाटक अकादमी की सदस्य भी रही थीं. संगीत रिसर्च अकादमी में वह शिक्षक थीं इसके बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उन्हें बतौर विज़िटिंग प्रोफेसर नियुक्त किया गया था.
इसके बाद साल 2003 में उन्होंने आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी से वापस जुड़ गई थीं.
किशोरी अमोनकर के बाद गिरिजा देवी का जाना भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए बड़ी क्षति है. गीत-संगीत से जुड़े लोगों ने शोक जताते हुए कहा है कि उनका निधन हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ख़ालीपन भर गया. इससे पहले इस साल तीन अप्रैल को प्रख्यात शास्त्रीय गायिका किशोरी अमोनकर का निधन हो गया था.
सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गिरिजा देवी के निधन पर शोक जताते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है.
लता ने ट्वीट किया है, ‘महान शास्त्रीय और ठुमरी गायिका गिरिजा देवी जी हमारे बीच नहीं रहीं, यह सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ.
उन्होंने लिखा है, ‘गिरिजा देवी बहुत अच्छी महिला थीं. मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पण करती हूं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.’
प्रख्यात सरोद वादक अमज़द अली ख़ान ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी बड़ी दीदी को खो दिया है.
ख़ान ने बताया, ‘संगीत की दुनिया विशेषकर गायकी की ठुमरी शैली के लिए यह बहुत बड़ा नुकसान है. वह अपने जीवनकाल में एक संस्थान बन गई थीं.’
उन्होंने कहा कि गिरिजा देवी उन्हें राखी बांधती थीं. उन्होंने कई मौकों पर एक साथ प्रस्तुति दी है. ख़ान ने बताया, ‘हमने लंदन स्थित नवरस रिकॉर्ड्स के लिए सरोद-गायकी की जुगलबंदी रिकॉर्ड की है.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिरिजा देवी के निधन पर शोक प्रकट किया. प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, गिरिजा देवी के निधन से दुख पहुंचा. भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत ने अपनी खूबसूरत आवाज़ों में से एक को खो दिया. मेरी संवेदनाएं उनके प्रशंसकों के साथ हैं.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी है. शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी के निधन पर शोक जताते हुए इसे देश की सांस्कृतिक विरासत के लिए बड़ी क्षति बताया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)