गुजरात दंगों से जुड़े मामलों के सिलसिले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व पुलिस अधिकारियों आरबी श्रीकुमार तथा संजीव भट्ट पर झूठे सबूत गढ़कर क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया है, ताकि कई लोगों को ऐसे अपराध में फंसाया जा सके, जो मौत की सज़ा के साथ दंडनीय हो.
अहमदाबाद: विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों के सिलसिले में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने को लेकर अहमदाबाद की एक अदालत में तीस्ता सीतलवाड़, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ बुधवार को आरोप-पत्र (Charge Sheet) दाखिल कर दिया.
शीर्ष अदालत ने 2002 के गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों को लेकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को विशेष जांच दल द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी.
इस फैसले के एक दिन बाद (25 जून) अहमदाबाद अपराध शाखा (Crime Branch) ने सीतलवाड़, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
जांच अधिकारी एवं सहायक पुलिस आयुक्त बीवी सोलंकी ने कहा कि अहमदाबाद में मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एमवी चौहान की अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया गया.
उन्होंने बताया कि 6,300 पन्नों के आरोप-पत्र में 90 गवाहों का उल्लेख है और पूर्व आईपीएस अधिकारी से वकील बने राहुल शर्मा और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य शक्ति सिंह गोहिल को भी इस मामले में गवाह बनाया गया है.
सोलंकी ने कहा कि अन्य गवाहों के बयान गुजरात दंगों के पिछले मामलों और तीनों आरोपियों द्वारा विभिन्न अदालतों और आयोगों के समक्ष पेश हलफनामों से लिए गए हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इन गवाहों में शामिल 53 लोगों में कई वकील और दंगा पीड़ितों सहित सीतलवाड़ के साथ मिलकर काम करने वाले कई लोग शामिल हैं.
जिन गवाहों का हवाला दिया गया, उनमें उनके पूर्व सहयोगी रायसखान पठान, जो बाद में उनके खिलाफ हो गए और दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी, नरोदा गाम, ओडे गांव, सरदारपुर और बेस्ट बेकरी नरसंहार के बचे हुए लोग शामिल हैं.
गवाहों की सूची में 22 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. आरोप-पत्र में दावा किया गया है कि आरोपियों ने गवाहों से झूठे हलफनामे पर हस्ताक्षर करवाए और अदालतों के सामने झूठी गवाही दी.
सोलंकी ने कहा कि आरोप-पत्र में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक निर्णयों और विभिन्न अदालतों में जकिया जाफरी द्वारा दायर याचिकाओं का भी हवाला दिया गया है.
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 194 (मौत की सजा दिलाने के लिए दोषसिद्धि के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) और 218 (लोक सेवक द्वारा लोगों को सजा से बचाने के इरादे से गलत जानकारी दर्ज करना) और 120बी (आपराधिक साजिश) समेत अन्य प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं.
सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस ने साल 2002 के गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साजिश के लिए जून के अंतिम सप्ताह में गिरफ्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट के दो सितंबर के आदेश के बाद उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था.
वहीं, श्रीकुमार इस मामले में जेल में बंद हैं, जबकि तीसरे आरोपी भट्ट पालनपुर की जेल में हैं, जहां वह हिरासत में मौत के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.
मालूम हो कि इससे पहले मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे.
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की इस कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. जाफरी के पति एहसान जाफरी, जो कांग्रेस के सांसद भी थे, दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मार दिए गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सीतलवाड़ और उनका एनजीओ जकिया जाफरी के साथ सह-याचिकाकर्ता थे.
गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का एक कोच जलाए जाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवक मारे गए थे, जिसके बाद गुजरात में दंगे फैल गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)