ज्योतिषपीठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद उनकी वसीयत के आधार पर अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया गया है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने इसे नियम विरुद्ध बताया है.
हरिद्वार: ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के निधन के बाद उनके शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित किए जाने को लेकर विवाद पैदा हो गया है.
सभी सात दशनामी संन्यासी अखाड़ों ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया है.
निरंजनी अखाड़े के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित किए जाने को नियम विरुद्ध बताया और कहा कि जल्द ही सभी संन्यासी अखाड़ों की इस मुद्दे पर बैठक कर नए शंकराचार्य के बारे मे रणनीति तय की जाएगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, गुजरात में द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 11 सितंबर को मध्य प्रदेश में उनके आश्रम में निधन हो गया था.
ज्योतिषपीठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद ज्योतिषपीठ पर उनकी वसीयत के आधार पर उनके शिष्य सुबुद्धानंद ने अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया था.
अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित किए जाने से सभी दशनामी संन्यासी अखाड़े नाराज हैं. महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि शंकराचार्य की नियुक्ति की एक प्रक्रिया है और संन्यासी अखाड़ों की सहमति के बाद काशी विद्वत परिषद शंकराचार्य की नियुक्ति करती है.
उन्होंने कहा कि स्वरूपानंद के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी जगह अविमुक्तेश्वरानंद को जल्दबाजी में संन्यासी अखाड़ों से विचार-विमर्श किए बिना ही ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया.
पुरी ने कहा कि वह अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य नहीं मानते है.
उन्होंने जोड़ा, ‘वैसे भी ज्योतिषपीठ दशनामी संन्यासियों में गिरि नामक संन्यासी परंपरा के संन्यासी को ही पीठ पर नियुक्त किया जाता है. जल्द ही सभी संन्यासी अखाड़ों की बैठक मे ज्योतिषपीठ के नए शंकराचार्य का नाम तय करने के लिए रणनीति बनाई जाएगी.’
अविमुक्तेश्वरानंद को कथित तौर पर स्वामी स्वरूपानंद द्वारा उनके एक अन्य शिष्य सुबुद्धानंद द्वारा तैयार की गई वसीयत के आधार पर नए शंकराचार्य के रूप में घोषित किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)