एल्गार परिषद मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मुंबई की तलोजा जेल में पर्याप्त चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की कमी का हवाला देते हुए नज़रबंदी के अनुरोध वाली उनकी याचिका ख़ारिज किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
नई दिल्ली/मुंबई: उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद मामले में कैद गौतम नवलखा की अर्जी पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) और महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब किया.
नवलखा ने अर्जी देकर न्यायिक हिरासत की बजाय घर में ही नजरबंद करने का अनुरोध किया है. नवलखा (70) ने उच्चतम न्यायालय में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा 26 अप्रैल को दिए गए आदेश को चुनौती दी है.
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मुंबई के नजदीक तलोजा जेल में पर्याप्त चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की कमी का हवाला देते हुए नजरबंदी के अनुरोध करने वाली नवलखा की याचिका खारिज कर दी थी.
नवलखा की अर्जी पर जस्टिस के एम जोसफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने एनआईए को नोटिस देकर जवाब तलब किया. पीठ ने इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई 29 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया.
शीर्ष न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान नवलखा ने कहा कि उनके मुवक्किल ने पिछले साल मई में उनकी अर्जी पर उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश के आधार पर उच्च न्यायालय का रुख किया था.
पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने जेलों में भीड़-भाड़ पर चिंता जताई थी और कहा था कि अदालतें भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत कैदियों को नजरबंद करने के विकल्प पर विचार करने को स्वतंत्र हैं.
अधिवक्ता ने कहा, ‘इस आदेश के आधार पर हमने बॉम्बे उच्च न्यायालय का रुख किया और तर्क दिया कि मैं (नवलखा) इस अदालत द्वारा इस मामले में तय अर्हताओं को पूरा करता हूं और कृपया मुझे घर में ही नजरबंद करने की अनुमति दीजिए, क्योंकि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है और मेरी उम्र 70 साल है. गिरफ्तारी से पहले भी मैं घर में नजरबंद था और मेरा पूर्व का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.’
उन्होंने कहा कि अगर शीर्ष अदालत अनुमति देती है तो नवलखा को दिल्ली या मुंबई जहां उनकी दो बहनें रहती हैं, नजरबंद किया जा सकता है.
उच्च न्यायालय ने तलोजा जेल में चिकित्सा और अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी संबंधी आशंका पर कहा था कि उनमें तथ्य नहीं है. इससे पहले उच्च न्यायालय ने इसी मामले में आरोपी 82 वर्षीय वरवरा राव को जमानत दे दी थी.
70 वर्षीय नवलखा को मामले में शामिल होने के आरोप में 28 अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया गया था. उन्हें शुरुआत में घर में नजरबंद रखा गया, लेकिन बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एस. रविंद्र भट ने 29 अगस्त को नवलखा की अर्जी पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
बीते 6 सितंबर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. अदालत ने कहा था कि उनके खिलाफ मामले में पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.
उससे पहले मई महीने में गौतम नवलखा को तलोजा जेल के अधिकारियों ने ‘सुरक्षा को खतरा’ का हवाला देते हुए प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक पीजी वुडहाउस द्वारा लिखित एक किताब देने से इनकार कर दिया था.
उल्लेखनीय है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की संगोष्ठी में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में पुलिस ने नवलखा को आरोपी बनाया है. पुलिस का दावा है कि संगोष्ठी में भड़काऊ भाषण देने की वजह से अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र के इस शहर के बाहरी इलाके स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के नजदीक हिंसा हुई.
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि माओवादियों ने इस सम्मेलन का समर्थन किया था. एनआईए ने बाद में इस मामले की जांच संभाली और इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया.
मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगु कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
मामले के तीन और आरोपियों ने आरोपमुक्त करने को लेकर याचिकाएं दायर कीं
एल्गार परिषद मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू ने यहां मंगलवार को विशेष राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अदालत के समक्ष आरोपमुक्त करने की अर्जियां दायर कीं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, तीनों ने अपने अधिवक्ता युग चौधरी के माध्यम से विशेष न्यायाधीश राजेश जे. कटारिया के समक्ष अलग-अलग आवेदन दायर किए.
चौधरी ने दावा किया कि उनके मुवक्किलों के खिलाफ मामला ‘पूरी तरह फर्जी, अस्वीकार्य साक्ष्यों से गढ़ा और अफवाहों से बना’ है.
वकील ने कहा कि यह वास्तव में दुखद है कि ऐसे प्रतिष्ठित लोगों को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की कठोर कानून के तहत इतने लंबे समय तक जेल में रहना पड़ रहा है.
नवलखा और हेनी बाबू अभी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं जबकि भारद्वाज जमानत पर बाहर हैं.
इस बीच, अदालत ने एक अन्य आरोपी सुधीर धावले को आरोपमुक्त किये जाने संबंधी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की. इस मामले में दलीलें बुधवार को भी पेश की जाएंगी.
न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसार, विशेष अदालत को 18 अगस्त के आदेश से तीन महीने के भीतर आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने और लंबित निर्वहन आवेदनों पर फैसला करने की आवश्यकता है.
कुछ अन्य आरोपियों – ज्योति जगताप, आनंद तेलतुम्बडे और महेश राउत की आरोपमुक्त करने की याचिकाएं भी अदालत के समक्ष लंबित हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)