अहमदाबाद पुलिस ने 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामले में पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार को जून में गिरफ़्तार करते हुए उनके साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट पर झूठे सबूत गढ़कर क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया था.
अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आरबी श्रीकुमार को 15 नवंबर तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी.
उन्हें वर्ष 2002 गुजरात सांप्रदायिक दंगों से जुड़े सबूतों से कथित तौर पर छेड़छाड़ करने के आरोप में तीस्ता सीतलवाड़ के साथ गिरफ्तार किया गया था.
जस्टिस इलेश जे. वोरा ने 10 हजार रुपये के निजी मुचलके पर श्रीकुमार को अंतरिम जमानत दी. वह अहमदाबाद अपराध शाखा द्वारा 25 जून को गिरफ्तार किए जाने के बाद से न्यायिक हिरासत में थे.
श्रीकुमार के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को उम्र और आरोप पत्र दाखिल होने के मद्देनजर राहत दी जा सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एसआईटी ने 21 सितंबर को मामले में आरोप पत्र दाखिल किया है. श्रीकुमार ने आरोप पत्र दायर करने से पहले उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत के लिए याचिका दायर की थी.
आरोप पत्र दाखिल होने के बाद बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर अदालत ने श्रीकुमार के वकील योगेश रवानी से पूछा कि क्या श्रीकुमार सत्र अदालत के समक्ष जमानत आवेदन को प्राथमिकता देंगे.
इस पर अदालत को सूचित किया गया कि वे अंतरिम सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे और एक नए जमानत आवेदन के साथ सत्र अदालत का रुख करेंगे. उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया कि आवेदक की मंशा संबंधित सुनवाई अदालत में नए सिरे से आवेदन देने की है.
उल्लेखनीय है कि सबूतों से छेड़छाड़ करने के मामले में एक अन्य आरोपी तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत अर्जी पर भी उच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है.
सीतलवाड़ की अर्जी पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत को निर्देश दिया कि विशेष जांच टीम (एसआईटी) द्वारा 21 सितंबर को दाखिल आरोप पत्र से संबधित दस्तावेज सीतलवाड़ के वकील को मुहैया कराए और इसके साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तारीख तय कर दी.
मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने सीतलवाड़ को दो सितंबर को अंतरिम जमानत दी थी. सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस ने साल 2002 के गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साजिश का आरोप लगाते हुए जून के अंतिम सप्ताह में गिरफ्तार किया था.
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने श्रीकुमार को जेल से रिहा होने के एक हफ्ते के भीतर पासपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्हें संबंधित अदालत में जमानत की अर्जी देने की आजादी दी.
गौरतलब है कि एसआईटी ने 21 सितंबर को सीतलवाड़, श्रीकुमार और भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ 6,300 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया. भट्ट इस समय बनासकांठा जिले के पालनपुर स्थित जेल में हिरासत में हुई मौत के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं.
आरोप-पत्र में 90 गवाहों का उल्लेख है और पूर्व आईपीएस अधिकारी से वकील बने राहुल शर्मा और कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य शक्ति सिंह गोहिल को भी इस मामले में गवाह बनाया गया है.
तीनों पर कई लोगों को फंसाने के लिए फर्जी सबूत के आधार पर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का आरोप है.
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 194 (मौत की सजा दिलाने के लिए दोषसिद्धि के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) और 218 (लोक सेवक द्वारा लोगों को सजा से बचाने के इरादे से गलत जानकारी दर्ज करना) और 120बी (आपराधिक साजिश) समेत अन्य प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं.
मालूम हो कि इससे पहले मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे.
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की इस कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. जाफरी के पति एहसान जाफरी, जो कांग्रेस के सांसद भी थे, दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मार दिए गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सीतलवाड़ और उनका एनजीओ जकिया जाफरी के साथ सह-याचिकाकर्ता थे.
शीर्ष अदालत ने 2002 के गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों को लेकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को विशेष जांच दल द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी.
इस फैसले के एक दिन बाद (25 जून) अहमदाबाद अपराध शाखा ने सीतलवाड़, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का एक कोच जलाए जाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवक मारे गए थे, जिसके बाद गुजरात में दंगे फैल गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)