एल्गार परिषद मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के वकील ने अदालत को बताया कि वे कैंसर से जूझ रहे हैं और उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत है. इसके अलावा वे दांत और त्वचा संबंधी एलर्जी से पीड़ित हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि चिकित्सकीय इलाज एक क़ैदी का मौलिक अधिकार है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को तलोजा जेल के अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क केस से जुड़े मामले में बंद कार्यकर्ता गौतम नवलखा को इलाज के लिए तुरंत मुंबई स्थित जसलोक अस्पताल में स्थानांतरित करें.
अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपने मुवक्किल नवलखा के आंत के कैंसर से जूझने की जानकारी दी और उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत की जानकारी दी, जिसके बाद अदालत ने यह आदेश दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि चिकित्सकीय इलाज एक कैदी का मौलिक अधिकार है.
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने नवलखा (70) की पार्टनर सबा हुसैन और उनकी बहन मृदुला कोठारी को भी उनसे अस्पताल में मिलने की अनुमति दी.
अदालत ने कहा, ‘पक्षकारों के वकील को सुनने के बाद हमारा विचार है कि चिकित्सकीय इलाज हासिल करना मौलिक अधिकार है. हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को तुरंत गहन चिकित्सकीय जांच के लिए ले जाया जाए.’
पीठ ने कहा, ‘हम तलोजा जेल के अधीक्षक को निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को जसलोक अस्पताल ले जाया जाए ताकि वह आवश्यक चिकित्सा जांच करा सकें और उपचार प्राप्त कर सकें. हम यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता पुलिस हिरासत में रहेंगे.’
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘तलोजा जेल के पुलिस अधीक्षक से उन्हें दांत और त्वचा एलर्जी की जांच के लिए ले जाने का अनुरोध किया गया था, लेकिन मैं नहीं जानता कि उनकी त्वचा एलर्जी और दांत की समस्या काफी गंभीर है.’
अदालत ने मामले की सुनवाई एक अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी.
शीर्ष अदालत ने इसके पहले इस मामले में 82 वर्षीय कार्यकर्ता वरवरा राव को जमानत दे दी थी.
मालूम हो कि बीते 26 अप्रैल को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मुंबई के नजदीक तलोजा जेल में पर्याप्त चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की कमी का हवाला देते हुए नजरबंदी के अनुरोध करने वाली नवलखा की याचिका खारिज कर दी थी.
नवलखा ने उच्चतम न्यायालय में बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है. शीर्ष अदालत 21 अक्टूबर को अगली सुनवाई में उनकी नजरबंदी की याचिका पर विचार करेगी.
अगस्त 2018 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से मानवाधिकार कार्यकर्ता जेल में है. उन्होंने कई बार दावा किया है कि जेल अधिकारियों ने उसे वह चिकित्सा देखभाल प्रदान नहीं की है जिसकी उन्हें आवश्यकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने आवेदन में नवलखा ने कहा कि वह गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, जिसमें त्वचा की एलर्जी और दांतों की समस्या शामिल है. संदिग्ध कैंसर के लिए उन्हें कोलोनोस्कोपी (colonoscopy) से भी गुजरना पड़ता है. इसलिए, उन्हें अपनी बहन के घर भेजा जाना चाहिए और वहां उन्हें नजरबंद रखा जा सकता है.
नवलखा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कोलोनोस्कोपी के लिए नवलखा को तीन दिन कुछ नहीं खाना होता है. इस बिंदु पर पीठ ने कहा कि वह उन्हें जांच के लिए अस्पताल ले जाने का निर्देश देगी.
जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘हम निर्देश देंगे कि आपको अस्पताल ले जाया जाए. आप वहां उपवास कर सकते हैं. इस दौरान अस्पताल में आप सुरक्षित रहेंगे.’
सिब्बल ने कहा कि कार्यकर्ता को पूरी तरह से जांच की जरूरत है क्योंकि उनके गले में गांठ भी है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सिब्बल ने कहा कि नवलखा की उम्र और उनकी सेहत को देखते हुए याचिकाकर्ता को हिरासत के रूप में नजरबंद रखने की अनुमति दी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता को मुंबई में अपनी बहन के घर में रहने की अनुमति दी जाए ताकि वे चिकित्सा सुविधाओं का लाभ भी उठा सकें.
इस पर जस्टिस जोसेफ ने पूछा कि नवलखा को आवश्यक सुरक्षा उपायों के साथ हाउस अरेस्ट की राहत क्यों नहीं दी जा सकती और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘आपकी इंसानियत की परीक्षा है.’ जिस पर मेहता ने जवाब दिया कि यह राष्ट्रीय एकता के लिए उनकी चिंता का इम्तिहान है और जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा.
मेहता ने इलाज के लिए अस्पताल ले जाने की उनकी याचिका का विरोध न करते हुए उन्होंने कहा कि मामले में पूरे सबूत इलेक्ट्रॉनिक हैं और संभावना है कि अगर नजरबंदी की अनुमति दी गई, तो वह इससे छेड़छाड़ कर सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में पुलिस ने नवलखा को आरोपी बनाया है. पुलिस का दावा है कि सम्मेलन में भड़काऊ भाषण देने की वजह से अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र के इस शहर के बाहरी इलाके स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के नजदीक हिंसा हुई.
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि माओवादियों ने इस सम्मेलन का समर्थन किया था. एनआईए ने बाद में इस मामले की जांच संभाली और इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया.
मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगु कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)