अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति रियायत है, अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड के एक कर्मचारी की बेटी ने उनकी मृत्यु के 14 साल बाद अनुकंपा आधार पर नियुक्ति का आवेदन दिया था, जिस पर हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे पलटते हुए कहा कि कर्मचारी की मृत्यु के इतने साल बाद वे अनुकंपा नियुक्ति की हक़दार नहीं हैं.

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सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड के एक कर्मचारी की बेटी ने उनकी मृत्यु के 14 साल बाद अनुकंपा आधार पर नियुक्ति का आवेदन दिया था, जिस पर हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे पलटते हुए कहा कि कर्मचारी की मृत्यु के इतने साल बाद वे अनुकंपा नियुक्ति की हक़दार नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति कोई अधिकार नहीं, बल्कि रियायत है और ऐसी नियुक्ति का उद्देश्य प्रभावित परिवार को अचानक आए संकट से उबारने में मदद करना है.

सर्वोच्च अदालत ने इस संबंध में पिछले हफ्ते केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया. खंडपीठ के फैसले में एकल न्यायाधीश के उस फैसले की पुष्टि की गई थी जिसमें फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड और अन्य को अनुकंपा के आधार पर एक महिला की नियुक्ति के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया गया था.

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने आदेश में कहा कि महिला के पिता फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड में कार्यरत थे और ड्यूटी के दौरान ही उनकी अप्रैल 1995 में मृत्यु हो गई थी. पीठ ने कहा कि उनकी मृत्यु के समय उनकी पत्नी नौकरी कर रही थीं, इसलिए याचिकाकर्ता अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की पात्र नहीं हैं.

पीठ ने कहा, ‘कर्मचारी की मृत्यु के 24 साल बाद प्रतिवादी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की हकदार नहीं होंगी.’

अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा स्पष्ट किए गए कानून के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत सभी उम्मीदवारों को सभी सरकारी रिक्तियों के लिए समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए.

संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की बात करता है और अनुच्छेद 16 सरकारी रोजगार के मामलों में अवसर की समानता से संबंधित है.

पीठ ने 30 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा, ‘हालांकि, मृतक कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति उक्त मानदंडों का अपवाद है. अनुकंपा आधार एक रियायत है, अधिकार नहीं है.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कर्मचारी की 1995 में मुत्यु हुई थी, तब उनकी बेटी नाबालिग था. अदालत ने कहा, ‘वयस्क होने पर उन्होंने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया.’

इस बात पर भी ध्यान दिया गया कि उनकी मृत्यु के 14 साल बाद उनकी बेटी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था.

शीर्ष अदालत के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि निर्धारित कानून के अनुसार,अनुकंपा नियुक्ति सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति के सामान्य नियम के लिए एक अपवाद है और उन व्यक्तियों के आश्रितों के पक्ष में है जिनके परिवार गरीब और बिना किसी आजीविका के साधन के होते हैं.

ऐसे मामलों में, इंसानियत के नाते मृतक के आश्रितों में से किसी एक को उचित रोजगार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है, जो उसके लिए पात्र हो.

पीठ ने कहा, ‘अनुकंपा के आधार पर रोजगार देने का पूर्ण उद्देश्य परिवार को अचानक संकट से उबारने में सक्षम बनाना है. उद्देश्य यह है कि ऐसे परिवार को मृतक के पद से कम पद देना नहीं है.’

उच्च न्यायालय के इस साल मार्च के फैसले के खिलाफ फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड और अन्य द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि यदि ऐसी नियुक्ति अभी प्रदान की जाती है तो यह उस उद्देश्य के विरुद्ध होगा, जिसके लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की जाती है.

उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश और खंडपीठ दोनों ने अपीलकर्ताओं को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए अपने मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश देने में त्रुटि की है.

पीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए उनका (मृतक की बेटी) आवेदन फरवरी 2018 में इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उनका नाम मृतक कर्मचारी द्वारा प्रस्तुत आश्रितों की सूची में नहीं था और यह नीति कर्मचारी की विधवा या बेटे या अविवाहित बेटी को रोजगार देने के लिए थी.

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि दिसंबर 2019 में अपीलकर्ताओं ने इस आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए उनके आवेदन को फिर से खारिज कर दिया था कि कर्मचारी की मृत्यु के 24 साल बीत चुके थे.

पीठ ने आगे कहा कि यह योजना के इन प्राथमिक लक्ष्यों को भी पूरा नहीं करता है कि मृत कर्मचारी ‘अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला’ होना चाहिए, क्योंकि उनकी पत्नी उनकी मृत्यु के समय केरल राज्य सेवा विभाग में लाभकारी पद पर कार्यरत थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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