दिल्ली: सीवर सफाई के दौरान मृत दो लोगों के परिजनों को दस-दस लाख रुपये देने का निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने डीडीए को बीते नौ सितंबर को बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान मारे गए दो लोगों के परिजनों को मुआवज़ा देने का निर्देश देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी गरीब हाथ से मैला ढोने का काम करने को मजबूर हैं.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने डीडीए को बीते नौ सितंबर को बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान मारे गए दो लोगों के परिजनों को मुआवज़ा देने का निर्देश देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी गरीब हाथ से मैला ढोने का काम करने को मजबूर हैं.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को उन दो लोगों के परिजनों को दस-दस लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिनकी बीते महीने राष्ट्रीय राजधानी में सीवर की जहरीली गैस के संपर्क में आने से मौत हो गई थी.

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 75 साल बाद भी गरीब हाथ से मैला ढोने का काम करने को मजबूर हैं.

पीठ ने डीडीए, जिसके अधिकार क्षेत्र में यह घटना हुई थी, को कानून के तहत तत्काल एवं अनिवार्य रूप से मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया. इस पीठ में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद भी शामिल थे.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि डीडीए को इस हादसे में जान गंवाने वाले लोगों के परिजन को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने पर विचार करना चाहिए.

मामले में सुनवाई की अगली तिथि तक आदेश का अनुपालन न होने की सूरत में हाईकोर्ट ने डीडीए के उपाध्यक्ष को उसके समक्ष पेश होने का निर्देश दिया.

यह आदेश घटना से संबंधित एक खबर के आधार पर अदालत द्वारा खुद दायर की गई एक जनहित याचिका पर पारित किया गया.

बीते नौ सितंबर को बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में सीवर की सफाई के लिए उतरे एक सफाईकर्मी और उसे बचाने गए सुरक्षाकर्मी की जहरीली गैस की चपेट में आने से मौत हो गई थी.

मृतकों की पहचान जेजे कॉलोनी बक्करवाला निवासी 32 वर्षीय रोहित चांडिल्य और हरियाणा के झज्जर निवासी 30 वर्षीय अशोक के रूप में हुई थी.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 75 साल बाद भी गरीब लोग हाथ से मैला ढोने का काम करने को मजबूर हैं और इस संबंध में लागू कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है.’

अदालत ने कहा, ‘चूंकि, डीडीए ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए प्रथमदृष्टया मुआवजे का भुगतान करने का संकल्प लिया है, इसलिए शीर्ष अदालत के फैसले और वैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में उसे दोनों मृतकों के परिजनों को मुआवजे के रूप में दस-दस लाख रुपये का भुगतान करने और अनुकंपा नियुक्ति देने के उनके दावे पर भी विचार करने का निर्देश जाता है.’

हाईकोर्ट ने कहा, ‘अदालत को 30 दिन के भीतर फैसले की जानकारी दी जाए. यह स्पष्ट किया जाता है कि अगर आदेश पर अमल नहीं किया जाता है तो डीडीए के उपाध्यक्ष को अगली सुनवाई पर अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा.’

मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 सितंबर की तारीख मुकर्रर की गई है.

रिपोर्ट के अनुसार, डीडीए की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत को सूचित किया कि प्राधिकरण के किसी निर्देश के बिना रोहित चांडिल्य (मृतक) खुद ही नाले की सफाई कर रहे थे. वकील ने कहा कि घटना के संबंध में एक समिति का गठन किया गया है.

साथ ही जोड़ा कि किसी भी डीडीए अधिकारी ने मृतक को सीवर साफ करने की सिफारिश नहीं की थी. यह काम आउटसोर्स किया गया था.

डीडीए को कानून के अनुसार पहली बार में मुआवजे का भुगतान करने और समिति नहीं बनाने के लिए कहते हुए, अदालत ने कहा कि जिम्मेदारी बाद में तय की जा सकती है और अधिकारी अन्य कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं.

अदालत ने कहा, ‘पहले उदाहरण में आपको भुगतान करना होगा. जिम्मेदारी हम बाद में तय करेंगे. नौकरी दो क्योंकि यह आपके अधिकार क्षेत्र में हुआ. कार्रवाई करें, एफआईआर दर्ज करें. आप कानून जानते हैं.’

न्याय मित्र राजशेखर राव ने कहा कि अधिकारियों की ओर से उदासीनता है, जो जिम्मेदारी से दूर भागने का प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘तथ्य यह है कि कर्मचारी डीडीए का था और डीडीए, जिसे स्पष्ट रूप से पता था.’

सुनवाई की आखिरी तारीख पर दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा था कि घटना के संबंध में पहले ही एक प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है और क्रियान्वयन एजेंसी को उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए.

इससे पहले दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के वकील ने अदालत को सूचित किया था कि जिस क्षेत्र में यह घटना हुई वह डीडीए के अधीन था और यहां तक ​​कि सफाई कर्मचारी भी डीडीए का कर्मचारी था.

12 सितंबर को हाईकोर्ट ने एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर दो व्यक्तियों की मौत का स्वत: संज्ञान लिया था और निर्देश दिया था कि इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका दर्ज की जाए.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)