विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत का संभावित कारण हरियाणा के सोनीपत स्थित मेडन फार्मास्युटिकल्स कंपनी की दवाओं को बताया गया था. अब राज्य सरकार ने कंपनी के दवा निर्माण पर रोक का आदेश जारी किया है. स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि दवा कंपनी की इकाई में कई उल्लंघनों के कारण यह कार्रवाई की गई है.
चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने मेडन फार्मास्युटिकल्स की सोनीपत स्थित इकाई में दवा निर्माण पर रोक का आदेश जारी किया है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने बुधवार को कहा कि दवा कंपनी की इकाई में कई उल्लंघनों के कारण यह कार्रवाई की गई.
विज ने कहा, ‘हमने आदेश दिया है कि इकाई में सभी तरह के दवा निर्माण को तत्काल प्रभाव से रोका जाए.’
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत का संभावित कारण कंपनी द्वारा निर्मित खांसी के सीरप को बताए जाने के तुरंत बाद इसके द्वारा निर्मित खांसी के चार सीरप के नमूनों को जांच के लिए कोलकाता स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला भेजा गया था.
विज ने कहा कि घटना के बाद राज्य एवं केंद्र की एक संयुक्त टीम ने इकाई का निरीक्षण किया और 12 उल्लंघन या त्रुटियां पाईं.
गौरतलब है कि गांबिया भेजी गईं दवाओं के बैच की जांच कर रहे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और हरियाणा राज्य दवा नियामक की एक संयुक्त टीम ने गुणवत्ता नियंत्रण (क्वॉलिटी कंट्रोल) प्रक्रियाओं के लिए निर्माताओं द्वारा गांबिया भेजे गए दवाओं के बैच में से कुछ सैंपल उठाए थे.
समाचार एजेंसी एएनआई की खबर के मुताबिक यह पाया गया कि मेडन फार्मास्युटिकल्स ‘विवादित दवाओं के निर्माण और परीक्षण के संबंध में उपकरणों की लॉग बुक तक पेश नहीं कर सकी.’
बहरहाल, विज ने कहा, ‘इसके मद्देनजर राज्य सरकार ने कंपनी की इस इकाई में दवा निर्माण पर रोक का आदेश जारी किया है.’ उन्होंने कहा कि खांसी के जिन चार सीरप के नमूनों को जांच के लिए कोलकाता में केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला भेजा गया है, उनकी रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘रिपोर्ट आने पर उसके आधार पर हम आगे की कार्रवाई करेंगे.’
गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 5 अक्टूबर को घोषणा की थी कि मेडन फार्मास्युटिकल द्वारा बनाए गए कफ सीरप (खांसी की पीने वाली दवा) में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल थे, जो मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं.
डब्ल्यूएचओ ने फर्म के चार उत्पाद प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सीरप, मेकॉफ बेबी कफ सीरप और मैग्रिप एन कोल्ड सीरप पर सवाल उठाए थे. लेकिन, निर्माता मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने इन उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता पर डब्ल्यूएचओ को कोई गारंटी नहीं दी.
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडहेनॉम घेब्रेयेसस ने कहा था, ‘ये चार दवाएं भारत की कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाए गए सर्दी एवं खांसी के सीरप हैं. डब्ल्यूएचओ भारत में कंपनी एवं नियामक प्राधिकारियों को लेकर आगे जांच कर रहा है.’
उन्होंने कहा था कि इन दवाओं के कारण बच्चों की मौत होने से उनके परिवारों को हुई पीड़ा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
डब्ल्यूएचओ ने उक्त कफ सीरप को लेकर भारत को भी आगाह किया था, जिस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि वे उत्पाद गांबिया में बिक्री के लिए निर्यात के उद्देश्य से हरियाणा की मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने तैयार किए थे. कंपनी के पास भारत में निर्माण और बिक्री के लिए लाइसेंस नहीं है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ‘इन सभी 4 दवाओं का निर्माण केवल निर्यात के लिए किया जाता है. मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड को भारत में निर्माण और बिक्री के लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है. असल में, इन चार दवाओं में से कोई भी भारत में घरेलू स्तर पर नहीं बेची जाती है.’
गौरतलब है कि मेडन फार्मास्युटिकल्स पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं.
द वायर की एक रिपोर्ट बताती है कि मेडन फार्मा ने लगातार निम्न श्रेणी की दवाएं बनाई हैं और इसके बावजूद इसे भारत में काम करने की अनुमति मिलती रही.
भारत सरकार के एक्सटेंडेड लाइसेंसिंग, लैबोरेटरी एंड लीगल नोड (एक्सएलएन) डेटाबेस के अनुसार, कम से कम दो राज्यों- केरल और गुजरात ने लगातार कंपनी के अवैध तरीकों को लेकर आगाह किया था.
केरल के अधिकारियों ने साल 2021 और 2022 में मेडन के उत्पादों को कम से कम पांच बार घटिया गुणवत्ता का पाया. इन सभी का निर्माण हरियाणा में किया गया था.
इसी तरह, 2015 में गुजरात में अधिकारियों ने बताया कि लोकप्रिय एंटीबायोटिक सिप्रोफ्लोक्सासिन युक्त दवा मैसिप्रो के नमूने डिसॉलूशन टेस्ट में विफल रहे थे. दवाओं के इस बैच का निर्माण मेडन के सोलन (हिमाचल प्रदेश) प्लांट में किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)