सीजेआई यूयू ललित की पीठ उस कंपनी से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने कथित तौर पर 27 बैंकों से ऋण लिया और धन की हेराफेरी की. अदालत को बताया गया कि एक पत्रकार ने संबंधित कॉरपोरेट धोखाधड़ी की पड़ताल की है और अब उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ रहा है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कॉरपोरेट धोखाधड़ी की पड़ताल करने वाले एक खोजी पत्रकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में दाखिल किए गए हलफनामे की प्रति को बुधवार को अटॉर्नी जनरल के कार्यालय भेजने का आदेश दिया, ताकि उसकी सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा सकें.
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एसआर भट की पीठ के समक्ष यह मुद्दा उस समय उठा, जब वह उस कंपनी से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने कथित तौर पर 27 बैंकों से ऋण लिया और धन की हेराफेरी की.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता जय अनंत देहद्राई ने एक सीलबंद लिफाफे में पीठ के समक्ष एक हलफनामा पेश किया और कहा कि पत्रकार ने कॉरपोरेट धोखाधड़ी की पड़ताल की है और अब उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि पत्रकार पर नोएडा में घर जाते समय हमला भी किया गया.
पीठ ने अदालत में मौजूद अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि एक विशेष कॉरपोरेट धोखाधड़ी के बारे में खोजी पत्रकारों सहित कुछ लोगों द्वारा पड़ताल की जा रही है, और एक पत्रकार ने अब एक हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है उसका पीछा किया जा रहा है तथा उस पर नजर रखी जा रही है.
इसने कहा, ‘हम आदेश के रूप में उस सज्जन के नाम का खुलासा नहीं कर सकते क्योंकि हम नहीं चाहते कि यह पता चले.’ पीठ ने कहा कि वह हलफनामे की एक प्रति अटॉर्नी जनरल कार्यालय को भेजेगी.
पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘आप अपने कार्यालय का इस्तेमाल करें और देखें कि संबंधित व्यक्ति को सुरक्षा मिले.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने उसे आश्वासन दिया है कि मामले की जांच की जाएगी और संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार की व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त तथा प्रभावी कदम उठाए जाएंगे.
शुरुआत में याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को सूचित किया कि उक्त कंपनी ने 27 बैंकों से ऋण लिया है और एक फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि पैसा ठग लिया गया था.
वकील ने कहा, ‘मैं एक सीलबंद लिफाफे में कुछ देना चाहता हूं, जो महत्वपूर्ण है.’ यह देखते हुए कि पत्रकार को अपनी जान का डर है, उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता के लिए एक वरिष्ठ वकील को नियुक्त किया जाए.
वकील ने दावा किया, ‘चूंकि यह केवल एक इकाई से संबंधित 12,700 करोड़ रुपये नहीं है, दो और संस्थाएं भी हैं जो सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध थीं और उन संस्थाओं में भी इसी तरह के तरीकों का पालन किया गया है और उन दो संस्थाओं के माध्यम से अन्य 12,500 करोड़ रुपये का गबन किया गया है. इसलिए, कुल लगभग 25,000 करोड़ रुपये का गबन किया गया है.’
लाइव लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ता ने कहा कि जब कंपनियां लिक्विडेशन में गईं, तो उन सभी संपत्तियों को बेच दिया गया. इसी समय वकील ने उस अतिरिक्त जानकारी को रिकॉर्ड पर रखा जो खोजी पत्रकार को मिली थी. यह जानकारी सीलबंद लिफाफे में बेंच को सौंपी गईं.
वकील ने खोजी पत्रकार की स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा:
“वह अपने बलबूते पर मामले की साथ-साथ जांच कर रहे थे और ये उनको मिली जानकारियां हैं जो उन्होंने हमें दी हैं, जिन्हें एक सीलबंद लिफाफे में बेंच के सामने रखा गया है. उन्हें अपनी जान का डर है. उन्हें धमकी दी गई है. वह नोएडा में रहते हैं और घर जाते समय एक बार उन पर हमला हो चुका है. दिलचस्प बात यह है कि ऐसा हुआ… वकील होने के बतौर मुझसे भी किसी ने संपर्क किया है. मैंने सोचा कि मुझे इन तथ्यों को आपके सामने रखना चाहिए.”
इसके बाद पीठ ने एक वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र नियुक्त करते हुए मामले में अगली सुनवाई के लिए तीन नवंबर की तारीख तय की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)