केरल के एक कार्यकर्ता को यौन उत्पीड़न के मामले में अग्रिम ज़मानत देते हुए सत्र अदालत ने कहा था कि केस में आईपीसी की धारा 354 ए मान्य नहीं है क्योंकि महिला ने ‘यौन रूप से भड़काऊ कपड़े’ पहने थे. हाईकोर्ट ने अग्रिम ज़मानत के निर्णय को बरक़रार रखते हुए इस टिप्पणी को अदालत के आदेश से हटाने को कहा है.
नई दिल्ली: केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को यौन उत्पीड़न के एक मामले में कार्यकर्ता सिविक चंद्रन को अग्रिम जमानत देने को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए कोझीकोड सत्र अदालत की ‘उत्तेजक पोशाक’ वाली टिप्पणी को हटा दिया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि पीड़िता के पहनावे को एक आरोपी को महिला का गरिमा भंग करने के आरोप से मुक्त करने का कानूनी आधार नहीं माना जा सकता है.
उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया, ‘किसी भी पोशाक को पहनने का अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक स्वाभाविक विस्तार है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का एक पहलू है. यहां तक कि अगर कोई महिला भड़काऊ पोशाक पहनती है, तो वह किसी पुरुष को उसकी गरिमा को भंग करने का लाइसेंस नहीं दे सकती है. इसलिए, इस आदेश में से अदालत के उक्त निष्कर्ष को निरस्त किया जाता है.’
हालांकि, अदालत ने चंद्रन को 12 अगस्त को दी गई अग्रिम जमानत को बरकरार रखा. चंद्रन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (ए) (यौन उत्पीड़न), 341 (गलत तरीके से रोकना) और 354 (महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल) के तहत आरोप लगाए गए थे.
जज ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में, मेरा विचार है कि भले ही अग्रिम जमानत देने के लिए निचली अदालत द्वारा बताए गए कारण को तो उचित नहीं ठहराया जा सकता है, लेकिन अदालत द्वारा अग्रिम जमानत देने के आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता है.’
12 अगस्त को सत्र न्यायाधीश एस. कृष्णकुमार ने चंद्रन को यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी थी कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (ए) के तहत शिकायत प्रथमदृष्टया तब मान्य नहीं होगी जब महिला खुद ‘यौन उत्तेजक कपड़े’ [Sexually provocative clothes] पहने हुए थी.
लाइव लॉ ने बताया था कि आरोपी ने जमानत अर्जी के साथ महिला की कुछ तस्वीरें पेश की थीं, जो उनके सोशल मीडिया एकाउंट से ली गई थीं.
कुछ दिनों बाद केरल उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि कोर्ट ने ‘ अपने अधिकार का अनुचित प्रयोग’ किया था और कार्यकर्ता को जमानत देते समय ‘अप्रासंगिक सामग्री’ पर भरोसा किया था, सत्र अदालत के आदेश पर रोक लगा दी.