बिहार: ट्रायल के 33 साल बाद आरोपी किसान को नाबालिग माना गया, बरी होने में 10 साल और लग गए

43 साल लंबे इस संघर्ष की पृष्ठभूमि में 7 सितंबर 1979 की एक घटना है, जिसमें बक्सर निवासी किसान मुन्ना सिंह के ख़िलाफ़ दंगे और हत्या के प्रयास में मामला दर्ज किया गया था. 2012 में उन्हें किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग माना. उसके 10 साल बाद 11 अक्टूबर 2022 को बक्सर की एक अदालत ने उन्हें आरोपों से बरी कर दिया.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

43 साल लंबे इस संघर्ष की पृष्ठभूमि में 7 सितंबर 1979 की एक घटना है, जिसमें बक्सर निवासी किसान मुन्ना सिंह के ख़िलाफ़ दंगे और हत्या के प्रयास में मामला दर्ज किया गया था. 2012 में उन्हें किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग माना. उसके 10 साल बाद 11 अक्टूबर 2022 को बक्सर की एक अदालत ने उन्हें आरोपों से बरी कर दिया.

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पटना: बिहार के बक्सर जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां अपराध के एक मामले में एक आरोपी किसान को 33 साल बाद किशोर न्याय बोर्ड ने घटना के समय नाबालिग माना और उसके 10 साल बाद वह मामले से बरी हो सका.

43 साल लंबे इस संघर्ष को लेकर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि 7 सितंबर 1979 को बक्सर के किसान मुन्ना सिंह के खिलाफ 9 अन्य लोगों के साथ-साथ मामला दर्ज किया गया था, जिनमें उनके पिता श्याम बिहारी सिंह भी शामिल थे. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 148 (घातक हथियारों के साथ दंगा करना) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया गया था. 11 अक्टूबर 2022 को सिंह को गवाही के अभाव में बरी कर दिया गया.

इस सबके बीच उनका मामला इसलिए असामान्य है, क्योंकि उन्होंने 33 सालों तक व्यस्क के रूप में अदालती ट्रायल का सामना किया था और 2012 में यह फैसला सामने आया कि घटना के समय वे नाबालिग थे.

बक्सर में किशोर न्याय बोर्ड के सहायक अभियोजन अधिकारी एके पांडेय ने कहा, ‘किशोर बोर्ड ने मामले की अच्छी तरह से जांच की. चूंकि मुन्ना सिंह के खिलाफ कोई गवाह नहीं था, उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया है.’

सिंह के वकील राकेश कुमार मिश्रा के मुताबिक, उनके मुवक्किल तब महज 13 साल के और कक्षा 8वीं के छात्र थे, जब उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. 2012 तक उन्हें जांच में सुस्ती के चलते नाबालिग नहीं माना गया.

मिश्रा ने कहा, ‘बक्सर की एसजीएम-II अदालत द्वारा मुकदमे के दौरान मैंने यूं ही मुन्ना सिंह से उनकी उम्र पूछी. जब उन्होंने कहा कि वे 46 साल के थे, तो मैंने गणना की कि जब मामला दर्ज किया गया था, उस समय वे नाबालिग थे. मैंने 1 नवंबर 2012 को मामले को बक्सर किशोर न्याय बोर्ड में स्थानांतरित करने के लिए अदालत के समक्ष आवेदन दिया और सफलता हाथ लगी.’

मुरार पुलिस थाने के चौगाई गांव के निवासी और किसान मुन्ना सिंह का कहना है कि उन्होंने लगभग एक महीना जेल में बिताया, लेकिन मामले के दौरान काफी मानसिक प्रताड़ना झेली, क्योंकि उनके ऊपर आरोपी होने का धब्बा लग गया था और उन्हें अदालत के चक्कर काटने पड़े.

उन्होंने कहा, ‘मुझे ध्यान लगाने में दिक्कत होती थी और मैं पढ़ाई नहीं कर सका. 43 वर्षों तक एक आरोपी का टैग लगे रहने ने मेरे जेहन पर गहरी छाप छोड़ी. मुझे मेरे बरी होने से बड़ी राहत मिली है. भगवान का शुक्र है कि यह फैसला मेरे जीते जी आ गया.’

सिंह के पिता समेत मामले के पांच आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो गई. बक्सर की अदालत द्वारा कुछ सालों पहले मामले में दो आरोपियों को दोषी माना गया और दो को बरी कर दिया गया था.

सिंह के वकील मिश्रा ने कहा कि किशोर बोर्ड के फैसले में देरी का मुख्य कारण यह था कि पिछले 10 सालों में बोर्ड बक्सर से पटना, आरा और फिर बक्सर में स्थानांतरित किया गया था.

मिश्रा ने कहा, ‘किशोर न्याय बोर्ड के न्यायाधीश ने मुन्ना सिंह को उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं होने के बाद 11 अक्टूबर, 2022 को बरी कर दिया. उनके खिलाफ एक भी गवाह नहीं आया, जबकि अन्य आरोपियों के मामले में बक्सर दीवानी अदालत में गवाह पेश हुए थे.’

वकील के मुताबिक, ‘किशोर बोर्ड ने पाया कि एक स्कूली लड़के को याचिका में गलत तरीके से इसलिए फंसाया गया, क्योंकि उसे मौके पर देखा गया था. वह सिर्फ एक दर्शक था.’