इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति के ‘नौकरी के लिए हिंदी भाषा की जानकारी होने’ संबंधी प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा था कि यह प्रस्ताव संविधान के संघीय सिद्धांतों के ख़िलाफ़ जाता है.
चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मंगलवार को राज्य विधानसभा में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रदेश पर हिंदी भाषा थोपे जाने’ (Hindi Imposition) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है.
This House urges Govt not to implement recommendations made in Parliamentary Committee Report on Official Language submitted by its Chairman to President, which are against State languages including Tamil & also against people's interest who speak those languages: TN CM MK Stalin
— ANI (@ANI) October 18, 2022
स्क्रोल डॉट इन की रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रस्ताव में केंद्र सरकार से 9 सितंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई राजभाषा संसदीय समिति की सिफारिशों को लागू न करने का आग्रह किया गया.
गौरतलब है कि पिछले महीने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश की गई अपनी 11वीं रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और देश के अन्य हिस्सों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होनी चाहिए. साथ ही, सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए.
समिति ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में जानबूझकर हिंदी में काम न करने व़ाले केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए और अगर वे चेतावनी के बावजूद ऐसा नहीं करते हैं, तो इसे उनकी वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) में दर्शाया जाना चाहिए.
मंगलवार को पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि यह सिफारिशें ‘तमिल सहित राज्य की भाषाओं और इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों के हित के खिलाफ भी हैं.’
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘यह सदन इस बारे में भी चिंतित है कि संसदीय समिति द्वारा पेश की गई सिफारिशें इस अगस्त में पेरारिग्नर अन्ना [द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के संस्थापक सीएन अन्नादुरई] द्वारा पेश और पारित किए गए द्विभाषा नीति प्रस्ताव के खिलाफ हैं.
द्विभाषा नीति 1968 में अन्नादुरई के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के संदर्भ में है, जिसमें कहा गया था कि राज्य के स्कूलों में केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाएंगी.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, जब यह प्रस्ताव पारित किया गया, तब भाजपा के सदस्यों ने सदन से वॉकआउट किया.
इससे पहले रविवार को संसदीय समिति स्टालिन ने एक संसदीय समिति की उस सिफारिश का कड़ा विरोध किया था, जिसमें यह प्रस्ताव किया गया है कि कुछ खास नौकरियों के लिए उम्मीदवारों को हिंदी भाषा की जानकारी होनी चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में स्टालिन ने आधिकारिक भाषाओं पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के बारे में मीडिया में आई खबर का हवाला दिया है.
स्टालिन ने कहा, ‘खबर के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी है, जिसमें सिफारिश की गई है कि हिंदी को आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में निर्देश का अनिवार्य माध्यम बनाया जाना चाहिए तथा अंग्रेजी की जगह हिंदी को दी जाए.’
इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि हिंदी को सभी तकनीकी, गैर-तकनीकी संस्थानों और केंद्रीय विद्यालयों सहित केंद्र सरकार के संस्थानों में पढ़ाई का माध्यम बनाया जाए.
Such impractical, divisive attempts will put non-hindi states people in a disadvantageous position & jeopardise the spirit of the union – state relations.#StopHindiImposition!
Make all languages in the 8th Schedule as Official Languages!
Uphold the unity of India! 2/2 pic.twitter.com/y9yAOicZJj
— M.K.Stalin (@mkstalin) October 16, 2022
उन्होंने कहा कि संसदीय समिति ने सिफारिश की है, ‘युवा कुछ खास तरह की नौकरियों के लिए तभी पात्र होंगे, जब उन्होंने हिंदी का अध्ययन किया होगा और भर्ती परीक्षाओं में एक अनिवार्य पत्र के रूप में अंग्रेजी को हटाने का प्रस्ताव किया गया है.’
उन्होंने कहा कि इस तरह का प्रस्ताव संविधान के संघीय सिद्धांतों के खिलाफ जाता है और राष्ट्र के बहुभाषी ताना-बाना को केवल नुकसान ही पहुंचाएगा.
ज्ञात हो कि भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर हिंदी जोर देते रहे हैं जिसकी राजनीतिक दलों द्वारा आलोचना होती रही है. गृह मंत्री पहले कह भी चुके हैं कि हिंदी, अंग्रेजी का विकल्प हो सकती है. इसे लेकर विपक्ष, खासकर दक्षिण भारत के नेता खासा विरोध जता चुके हैं.
बीते महीने ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा था कि भाजपा को ‘इंडिया’ को ‘हिंदिया’ में बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
अब अपने हालिया पत्र में स्टालिन ने कहा कि हिंदी को विभिन्न तरीकों से थोपने की कोशिशें आगे नहीं बढ़ाई जानी चाहिए और भारत की एकता की गौरवमय ख्याति हमेशा बरकरार रखी जाए. उन्होंने सभी भाषाओं को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग की.
उन्होंने कहा कि तमिल सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ समान बर्ताव किया जाना चाहिए और ‘विविधता में एकता’ के सिद्धांत को सुनिश्चित करने का यही रास्ता है.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में तमिल सहित 22 भाषाएं हैं. सभी भाषाओं के समान अधिकार हैं और इस अनुसूची में कुछ और भाषाओं को शामिल करने की निरंतर मांग की जा रही है.
द्रमुक अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं यह बताना चाहूंगा कि देश में हिंदी के अलावा अन्य भाषाएं बोलने वाले लोगों की संख्या हिंदी भाषी लोगों से कहीं अधिक हैं. मुझे विश्वास है कि आप हर भाषा के उसके अनूठेपन और भाषाई संस्कृति के साथ उसकी विशेषता का सम्मान करेंगे.’
उन्होंने हिंदी थोपे जाने के खिलाफ तमिलनाडु द्वारा निरंतर किए गए विरोध को याद करते हुए कहा कि राज्य में 1965 में व्यापक आंदोलन हुए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आश्वस्त किया था कि गैर-हिंदी भाषी लोग जब तक चाहेंगे, तब तक अंग्रेजी एक आधिकारिक भाषा बनी रहेगी.
इसके बाद, 1968 और 1976 में प्रस्ताव पारित किए गए और उसके तहत निर्धारित किए गए नियमों के मुताबिक, केंद्र सरकार की सेवाओं में अंग्रेजी और हिंदी, दोनों भाषाओं के उपयोग को सुनिश्चित किया गया.
स्टालिन ने लिखा, ‘भारत को ‘बहु-भाषाई और बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र का बेहतरीन उदाहरण’ बताते हुए स्टालिन ने सिफारिश की थी कि सभी भारतीय भाषाओं को देश की ‘आधिकारिक’ भाषा बना दिया जाए.
स्टालिन ने लिखा, ‘मुझे डर है कि ‘एक राष्ट्र’ के नाम पर हिंदी को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयास विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों के भाईचारे की भावना को नष्ट कर देंगे और यह भारत की अखंडता के लिए नुकसानदायक होगा.’
स्टालिन के अल्वा, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी समिति की सिफारिशों पर ऐतराज जताया है. विजयन ने 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर शाह के नेतृत्व वाले पैनल की सिफारिशों पर उनकी आपत्ति जताई थी और स्टालिन के समान ही कई बिंदुओं को उठाया था, जिसमें किसी एक भाषा को दूसरों को विशेषाधिकार देकर देश की विविधता में एकता की संस्कृति को बर्बाद करने की बात कही गई थी.
Union Govt’s #HindiImposition move is an onslaught on India's cherished ideal, unity in diversity. It will disadvantage a vast majority of Indians in matters of education and employment. This callous move, an affront on cooperative federalism, has to be opposed unitedly.
— Pinarayi Vijayan (@pinarayivijayan) October 11, 2022
बीते शनिवार को द्रमुक की युवा शाखा के सचिव एवं स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने केंद्र को चेतावनी दी थी कि तमिलनाडु पर यदि हिंदी थोपी गई तो उनकी पार्टी दिल्ली में इसके खिलाफ प्रदर्शन करेगी.
मालूम हो कि इससे पहले अप्रैल महीने में अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा.
गृह मंत्री ने कहा था कि अन्य भाषा वाले राज्यों के नागरिक जब आपस में संवाद करें तो वह ‘भारत की भाषा’ में हो.
उन्होंने सदस्यों को बताया था कि मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है. उन्होंने कहा था कि वक्त आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए. हिंदी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में होनी चाहिए.
अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की थी और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)