मई 2018 में तमिलनाडु के तूतुकुडी में वेदांता समूह के स्टरलाइट कॉपर प्लांट के विरोध के दौरान पुलिस की फायरिंग में 13 लोगों की मौत हुई थी और सौ लोग घायल हुए थे. मामले की जांच करने वाले आयोग ने कहा है कि परिस्थितियों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस ने अपनी रक्षा के अधिकार के चलते यह कार्रवाई की थी.
चेन्नई: 2018 में तमिलनाडु के तूतुकुडी में स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने वाले नागरिकों पर पुलिस फायरिंग की घटना में 13 लोगों की मौत और 100 लोगों के घायल होने के मामले में जांच करने वाले आयोग ने तत्कालीन जिलाधिकारी, पुलिस अधिकारियों और उप तहसीलदार के खिलाफ कार्रवाई की और मृतकों के परिजनों एवं घायलों को मुआवजा दिये जाने की सिफारिश की है.
आयोग ने तत्कालीन जिलाधिकारी वेंकटेश की जिम्मेदारी नहीं निभाने वाली कार्यशैली के खिलाफ आवश्यक विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है.
विधानसभा में मंगलवार को पेश की गई जस्टिस अरुणा जगदीशन जांच आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, ‘यह निष्कर्ष निकलता है कि पुलिस की ओर से ज्यादती की गई. तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस अपनी रक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए कार्रवाई कर रही थी.’
रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त रूप से जवाबदेह ठहराए गए अधिकारियों में पुलिस महानिरीक्षक शैलेश कुमार यादव, उप महानिरीक्षक कपिल कुमार सी करातकर, पुलिस अधीक्षक पी महेंद्रन तथा 17 अधिकारियों के नाम हैं.
इसमें इन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और कानून सम्मत कार्रवाई का सुझाव दिया गया है.
मृतकों के योग्य परिजनों को अनुकंपा आधार पर रोजगार प्रदान किये जाने के फैसले की सराहना करते हुए रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गई है कि मृतकों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए और पहले ही दी जा चुकी 20 लाख रुपये की राशि काट ली जाए.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘घायलों के लिए आयोग 10-10 लाख रुपये की मुआवजा राशि देने की सिफारिश करता है जिसमें पहले ही दी जा चुकी 5 लाख रुपये की रकम शामिल है.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि स्टरलाइट विरोधी आंदोलन के दौरान, जिला प्रशासन और पुलिस को प्रभावी ढंग से समन्वय करना चाहिए था और दंगा योजना 2013 के निर्देशों के तहत यह चर्चा करनी चाहिए थी कि क्या करें और क्या न करें. इसका कार्यान्वयन करने से दंगा नियंत्रण प्रबंधन निश्चित रूप से प्रभावी ढंग से हो सकता था.
जस्टिस अरुणा जगदीशन ने रिपोर्ट में कहा, ‘दंगा योजना की आवश्यकताओं के अनुपालन में संबंधित अधिकारियों की ओर से स्पष्ट विफलता है, जो स्थिति को खराब से बदतर होने की अनुमति देने के लिए एक कारण बनी होगी.’
उन्होंने रिपोर्ट में कहा, ‘यहां पर मामला यह है कि प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा उसके ठिकाने से गोली चलाई थी जो उनसे बहुत दूर थी. बैलिस्टिक के आकार की कुछ सामग्री मिलने की रिपोर्ट है जिससे पता चलता है कि गोलीबारी लंबी दूरी की की गई थी न कि कम दूरी से, जो इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि पुलिस कलेक्ट्रेट के अंदर हेरिटेज पार्क में छिपी हुई थी, जहां से उसने गोलियां चलाईं, जिसके परिणामस्वरूप प्रदर्शनकारियों की मौतें हुईं और कई लोगों को चोटें आई. क्या यह इस टिप्पणी के लायक नहीं है वह एक जघन्य कांड था, जिसने आयोग को आश्चर्य में डाल दिया.’
इसमें कहा कि गोलीबारी अकारण थी, क्योंकि जिस नुकसान से बचने की कोशिश की गई थी, वह उस नुकसान से ज्यादा नहीं था जो फायरिंग का सहारा न लेने से होता. बंदूक के उपयोग को उचित ठहराने वाली कुछ परिस्थितियां भी रही होंगी लेकिन इस तरह के प्रयोग से बचने से निर्णायक नुकसान कम हो सकता था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दो बुराइयों में से चुनना हो तो कम बुराई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और मौजूदा मामले में कम बुराई हथियारों के इस्तेमाल से बचना था.
आयोग ने सभी परिस्थितियों को देखते हुए निष्कर्ष निकाला कि निश्चित रूप से पुलिस अधिकारियों की ओर से ज्यादती हुई है.
उल्लेखनीय हो कि विधानसभा में पेश होने से पहले बीते अगस्त महीने में इस रिपोर्ट को फ्रंटलाइन पत्रिका ने प्रकाशित किया था.
पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जस्टिस जगदीशन ने तत्कालीन अखिल भारतीय अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) सरकार के दावों कि पुलिस को भीड़ की हिंसा को काबू करने के लिए गोलियां चलानी पड़ीं, को खारिज करते हुए कहा, ‘यह दिखाने के लिए कोई ऐसी सामग्री नहीं है कि जो यह दिखाए कि केवल प्रदर्शनकारियों की एक उन्मादी भीड़ से निपटने के लिए फायरिंग की गई थी.’
रिपोर्ट के अनुसार, वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने पुलिस के स्थायी आदेशों, या ऐसी स्थितियों के लिए अनिवार्य ‘डूज़ एंड डोंट्स’ (Dos and Don’ts) का पालन नहीं किया. आयोग ने कहा, ‘पीएसओ द्वारा अनिवार्य रूप से कोई चेतावनी नहीं दी गई , आंसू गैस या वॉटर कैनन (पानी की बौछार) का उपयोग, लाठीचार्ज, या हवा में गोली चलाकर चेतावनी देने जैसी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी.’ रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिसकर्मियों को जान-माल का नुकसान पहुंचने का कोई खतरा नहीं था.
समिति ने यह भी कहा कि सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए कमर और घुटनों के नीचे निशाना नहीं लगाया, बल्कि शहर के विभिन्न स्थानों पर एकत्रित लोगों पर ‘रैंडम शॉट’ यानी अचानक गोलियां दागीं. आयोग ने ‘पुलिस के न्यायेतर कारनामों’ के उदाहरण के लिए ‘पक्के शूटर’ के तौर पर विशेष रूप से एक पुलिस कॉन्स्टेबल सुदलाईकन्नू का नाम लिया है.
मालूम हो कि तमिलनाडु के तूतुकुडी स्थित वेदांता समूह के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को प्रदूषण की चिंताओं को लेकर संयंत्र को 2018 में बंद कर दिया गया था.
राज्य सरकार ने इस प्लांट को बंद करने का फैसला 22 मई 2018 को हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद दिया था. स्थानीय लोग प्रदूषण फैलाने के चलते कारखाने को बंद करने की मांग को लेकर 99 दिन से प्रदर्शन कर रहे थे.
आंदोलन के 100वें दिन प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और पुलिस की गोलीबारी में 13 लोग मारे गए.
इसके बाद दिसंबर 2018 में एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने स्टरलाइट कॉपर प्लांट को स्थायी तौर पर बंद करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था. एनजीटी ने कहा था कि राज्य सरकार का फैसला बेदम और अनुचित है.
तमिलनाडु सरकार ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्लांट को सील करने और हमेशा के लिए बंद करने का आदेश दिया था.
हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के फैसले को खारिज कर दिया था.
पर्यावरणविदों और स्थानीय कार्यकर्ताओं का दावा है कि तांबा गलाने के प्लांट से क्षेत्र में भूजल प्रदूषित हो रहा है, जिससे कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)