सीएए के नियम तैयार करने के लिए सरकार को फिर अतिरिक्त समय दिया गया

विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान तैयार करने के लिए राज्यसभा ने गृह मंत्रालय को 31 दिसंबर 2022, जबकि लोकसभा ने नौ जनवरी 2023 तक का समय दिया है. यह सीएए के प्रावधान तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय को दिया गया सातवां विस्तार है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

विवादित नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान तैयार करने के लिए राज्यसभा ने गृह मंत्रालय को 31 दिसंबर 2022, जबकि लोकसभा ने नौ जनवरी 2023 तक का समय दिया है. यह सीएए के प्रावधान तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय को दिया गया सातवां विस्तार है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय को विवादित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 के प्रावधान तैयार करने के लिए राज्यसभा और लोकसभा में अधीनस्थ विधान संबंधी संसदीय समितियों द्वारा एक बार फिर अतिरिक्त समय प्रदान किया गया है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सीएए के प्रावधान तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय ने राज्यसभा की समिति से 31 दिसंबर 2022, जबकि लोकसभा समिति से नौ जनवरी 2023 तक का समय मांगा था, जिसे समितियों द्वारा स्वीकृत किया गया. यह सीएए के प्रावधान तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय को समयसीमा में दिया गया सातवां विस्तार है.

बता दें कि यह विवादित क़ानून वर्ष 2019 के अंत में संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है. इसके अगले दिन राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी थी. इसके बाद गृह मंत्रालय ने सीएए को अधिसूचित कर दिया था.

हालांकि, सीएए को लागू किया जाना अभी बाकी है, क्योंकि इसके प्रावधान नहीं तैयार किए गए हैं. किसी भी कानून के क्रियान्वयन के लिए उसके प्रावधान तय करना जरूरी है.

संसदीय कार्य से जुड़ी नियमावली के मुताबिक, किसी भी कानून के प्रावधान राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों से समयसीमा में विस्तार की मांग की जानी चाहिए.

जनवरी 2020 में गृह मंत्रालय ने अधिसूचित किया था कि यह अधिनियम 10 जनवरी 2020 से लागू होगा, लेकिन उसने बाद में राज्यसभा और लोकसभा में अधीनस्त विधान संबंधी संसदीय समितियों से नियमों के क्रियान्वयन के लिए कुछ और समय देने का अनुरोध किया, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण देश एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा था.

सीएए के तहत मोदी सरकार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार रह चुके उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे.

बता दें कि इस क़ानून के बनने के बाद देश भर में महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का दौर चला था, जो कोविड-19 महामारी के कारण थम गया. क़ानून को आलोचकों द्वारा मुस्लिम विरोधी और असंवैधानिक बताया जाता रहा है.

पिछले साल मई में केंद्र सरकार ने उपरोक्त तीन देशों के हिंदू, मुस्लिम, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोगों को, जो भारत के 13 जिलों में रह रहे हैं, को देश की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी. हालांकि, आवेदन नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत मांगे गए थे क्योंकि संशोधित अधिनियम से संबंधित नियमों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)