पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा है वन संरक्षण नियम 2022 ने वन भूमि के डायवर्ज़न से पहले वनवासियों की सहमति लेने की आवश्यकता को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने बीते जून महीने में नए नियमों को अधिसूचित किया था.
नई दिल्ली: नए वन संरक्षण नियम 2022, वन अधिकार अधिनियम, 2006 में निहित वनवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. यह बात कहते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने पर्यावरण और वन मंत्रालय से आग्रह किया है कि जून में अधिसूचित नए नियमों को रोक दिया जाए.
इसने सरकार से डायवर्जन के लिए प्रस्तावित वन भूमि पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) को वन अधिकार अधिनियम अधिकार देने के लिए नियम 2017 के कार्यान्वयन को पुनर्स्थापित, मजबूत और कड़ाई से उसकी निगरानी करने के लिए भी कहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने निष्कर्ष निकाला है कि वन संरक्षण नियम 2022 ने वन संरक्षण नियम 2014/2017 में प्रदान किए गए ‘सहमति खंड’ को हटा दिया है. उक्त खंड वन अधिकार अधिनियम के तहत इस आवश्यकता को लागू करता है कि अधिकारियों को वनवासियों के वन अधिकारों को मान्यता देनी चाहिए और ‘पहले चरण की मंजूरी’ के लिए वन भूमि के डायवर्जन का प्रस्ताव भेजने से पहले ग्राम सभाओं का अनुमोदन भी प्राप्त करना चाहिए.
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने कहा है, ‘मौजूदा नियमों ने सहमति लेने की आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. साथ ही पहले चरण की मंजूरी या यहां तक कि दूसरे चरण की मंजूरी के बाद किए जाने वाले अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया को छोड़ दिया है.’
उन्होंने लिखा है कि वन संरक्षण नियम 2022 ‘भूमि बैंकों की स्थापना और मान्यता प्राप्त प्रतिपूरक वनीकरण (पेड़ लगाने का काम) की प्रक्रियाओं’ में वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करते हैं.
मालूम हो कि वन संरक्षण नियम 2022 की अधिसूचना जारी होने के बाद बड़ा विवाद छिड़ गया था. आरोप लगाया गया था कि नए नियम वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए वनवासियों के अधिकारों से समझौता करते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, तब राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद आयोग ने प्रथमदृष्टया आरोपों से सहमत होते हुए इस मुद्दे को समग्र रूप से देखने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया था.
पर्यावरण मंत्री यादव भेजे गए पत्र में आयोग के प्रमुख ने वन और आदिवासी मामलों के मंत्रालयों की इस दलील को खारिज कर दिया है कि नए नियम वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन नहीं करते हैं, क्योंकि ये ‘समानांतर वैधानिक प्रक्रियाएं’ हैं.
अध्ययन का हवाला देते हुए वन भूमि के डायवर्जन की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हुए आयोग के प्रमुख चौहान ने तर्क दिया, ‘यही कारण है कि वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन और वन संरक्षण अधिनियम के तहत प्रक्रियाओं को अलग-अलग समानांतर प्रक्रियाओं के रूप में नहीं देखा जा सकता है. इसके बजाय दोनों कानूनों को एक-दूसरे के संयोजन के साथ लागू करने की आवश्यकता है.’
मालूम हो कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 28 जून 2022 को 2003 में लाए गए वन संरक्षण अधिनियम की जगह वन संरक्षण अधिनियम 2022 को अधिसूचित किया था.
कुछ रिपोर्टों में उल्लेख किया गया था कि नए नियम बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए वन भूमि को डाइवर्ट करने की प्रक्रिया को सरल और संक्षिप्त बनाएंगे तथा क्षतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation) के लिए भूमि की उपलब्धता को आसान बनाएंगे.
नए नियमों के तहत जंगल काटने से पहले अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासी समुदायों से सहमति प्राप्त करने की जिम्मेदारी अब राज्य सरकार की होगी, जो कि पहले केंद्र सरकार के लिए अनिवार्य थी.