केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा जारी की गई नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) में सिफ़ारिश की गई है कि सरकारी और निजी स्कूलों में आठ साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा का प्राथमिक माध्यम मातृभाषा या घरेलू भाषा होना चाहिए. एक नई भाषा ‘सीखने की पूरी प्रक्रिया को’ उलट देती है. इसमें कहा गया है कि अंग्रेज़ी दूसरी भाषा के विकल्पों में से एक हो सकती है.
नई दिल्ली: मूलभूत स्तर की शिक्षा के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा बीते बृहस्पतिवार (20 अक्टूबर) को जारी नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) में सिफारिश की गई है कि सरकारी और निजी दोनों स्कूल में आठ साल तक के बच्चों के लिए मातृभाषा शिक्षा का प्राथमिक माध्यम होना चाहिए.
इसमें कहा गया है कि एक नई भाषा ‘सीखने की पूरी प्रक्रिया को’ प्रारंभिक वर्षों में ही उलट देती है. इसमें जोड़ा गया है कि अंग्रेजी दूसरी भाषा के विकल्पों में से एक हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 2005 में जारी पिछले एनसीएफ में यह भी कहा गया था कि प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) में बातचीत और संवाद की भाषा सामान्यत: बच्चे की पहली भाषा या घरेलू भाषा होगी.
हालांकि, इसमें यह भी कहा है कि सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं के आलोक में अंग्रेजी को दूसरी भाषा के रूप में जल्दी शुरू किया जाना चाहिए, या तो कक्षा 1 में, जैसा कि कई राज्य कर चुके हैं या फिर प्री स्कूल स्तर पर.
नई एनसीएफ, जो प्री-स्कूल और कक्षा 1-2 से संबंधित है, अंग्रेजी की शिक्षा शुरू करने की समय सीमा पर विस्तृत निर्देशों का उल्लेख करती है. इसमें कहा गया है कि अंग्रेजी मूलभूत स्तर पर सिखाई जाने वाली दूसरी भाषाओं में से एक हो सकती है, लेकिन यह निर्देशित नहीं करती है कि किस कक्षा से.
इसके बजाय, यह शिक्षा के प्राथमिक माध्यम के रूप में मातृभाषा के गुणों पर जोर देती है और कहती है कि जब तक बच्चे प्री-स्कूल में शामिल होते हैं, वे घरेलू भाषा में काफी दक्षता हासिल कर लेते हैं.
इसमें कहा गया है, ‘यदि बच्चे को शिक्षा के माध्यम के रूप में एक नई या अपरिचित भाषा के साथ पढ़ाया जाता है तो बच्चा जिस तीन-चार साल के अनुभव के साथ आता है उसकी पूरी तरह से उपेक्षा कर दी जाती है, क्योंकि उसे एक नई भाषा शुरू से पढ़ाई जाती है. जो मूलभूत अनुभव, कौशल और सीख बच्चा पहले ही ग्रहण कर चुका है, उन्हें नकारने की कीमत सीखने की पूरी प्रक्रिया को उलट देती है.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘चूंकि बच्चे अपनी घरेलू भाषा में अवधारणाओं को सबसे तेजी से और गहराई से सीखते हैं, इसलिए शिक्षा का प्राथमिक माध्यम बच्चे की घरेलू भाषा/मातृभाषा/बुनियादी अवस्था में परिचित भाषा होगी. यह सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूलों का दृष्टिकोण होना चाहिए.’
इसमें कहा गया है, ‘छोटे बच्चों के लिए अपनी भाषा 2 या भाषा 3 (जो अंग्रेजी भी हो सकती है) में धाराप्रवाह बोलने का कौशल हासिल करने के लिए उनकी भाषा 1 को भी सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करने की आवश्यकता है.’
एनसीएफ स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव का मंच तैयार करेगा, जो राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) से शुरू होगा. बुनियादी चरण के लिए एनसीएफ के बाद अगले कुछ महीनों में उच्च कक्षाओं के साथ-साथ शिक्षकों और व्यस्क शिक्षा के लिए भी इसके संस्करण आएंगे.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एनसीईआरटी अगले साल ‘बसंत पंचमी’ तक बुनियादी स्तर की शिक्षा के लिए नया पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को तैयार कर लेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार फरवरी 2023 तक रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने की इच्छुक है.
उन्होंने आगे कहा, ‘रिपोर्ट कहती है कि कई मामलों में इस स्तर पर पाठ्यपुस्तकों की जरूरत नहीं होती है. यह समझने योग्य है, क्योंकि ज्यादातर चीजें खेल-आधारित, कहानी-आधारित होंगी. शिक्षण का तरीका बहुत महत्वपूर्ण होगा. रिपोर्ट में न सिर्फ छात्रों के लिए सलाह है, बल्कि शिक्षकों के लिए भी है. हम युद्धस्तर पर काम करेंगे.’
रिपोर्ट यह रेखांकित करती है कि इस आयु वर्ग के बच्चों पर किताबों का बोझ नहीं डालना चाहिए. बुनियादी चरण के आखिरी दो वर्षों या 6 से 8 साल की उम्र में आसान और आकर्षक पाठ्यपुस्तकों को तवज्जो दी जा सकती है.