इंदौर की एक अदालत ने साल 2009 में एक चालीस वर्षीय व्यक्ति को चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. दोषी ने इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का रुख़ किया था, जिसने उनके कृत्य को ‘दानवीय’ बताया और सज़ा की अवधि घटाकर बीस वर्ष कर दी.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने चार साल की बच्ची से बलात्कार के दोषी एक व्यक्ति की सजा यह कहते हुए कम की कि ‘वह इतना दयालु था कि उसने नाबालिग [बच्ची] को जिंदा छोड़ दिया था.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दोषी के वकील ने अदालत से कहा था कि उनके मुवक्किल को फंसाया गया था और वह पहले ही 15 साल की जेल की सजा काट चुका है, इसलिए उनकी सजा की अवधि इतनी ही कर दी जानी चाहिए.
18 अक्टूबर को एक आदेश में पीठ ने कहा, ‘अपीलकर्ता, जिनके मन में महिलाओं की गरिमा के प्रति कोई सम्मान नजर नहीं आता और जिसकी प्रवृत्ति चार साल की बच्ची के साथ भी यौन अपराध करने की प्रवृत्ति है, के दानवीय कृत्य को देखते हुए अदालत को यह ऐसा मामला नहीं लगता है, जहां सजा को उसके द्वारा पहले से ही काटी गई सजा की अवधि में घटाया जा सकता है.’
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस सत्येंद्र कुमार की बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘हालांकि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि वह इतने दयालु थे कि [लड़की] को जिंदा छोड़ दिया, इस अदालत का मानना है कि आजीवन कारावास को 20 साल के कठोर कारावास में घटाया जा सकता है.’
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 40 साल के राम सिंह को इंदौर में चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराया गया था.
यह घटना 31 मई 2007 को इंदौर आईटीआई मैदान के पास हुई थी, तब राम सिंह की उम्र 25 साल थी. वो यहां दवा और जड़ी-बूटी बेचने का काम करता था और पीड़िता का परिवार श्रमिकों के तौर पर काम किया करता था.
रिपोर्ट्स के अनुसार, अदालत के आदेश में बताया गया था कि उन्होंने एक रुपया देने का लालच देकर बच्ची को अपने पास बुलाया था और उसके साथ बलात्कार किया था.
एनडीटीवी के अनुसार, बच्ची की दादी ने राम सिंह को ऐसा करते देख लिया था और उनकी गवाही और मेडिकल साक्ष्यों के आधार बच्ची के साथ बलात्कार की पुष्टि हुई थी.
राम सिंह को उसी साल गिरफ्तार किया गया था और इंदौर के एडिशनल सेशन जज ने अप्रैल 2009 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. मई 2009 में इस आदेश को राम सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.