विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 का अंग: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रेम विवाह से संबंधित एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि क़ानून के अनुसार विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का अंतर्निहित अंग है. आस्था के सवालों का भी जीवनसाथी चयन की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल तत्व है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रेम विवाह से संबंधित एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि क़ानून के अनुसार विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का अंतर्निहित अंग है. आस्था के सवालों का भी जीवनसाथी चयन की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल तत्व है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि विवाह में पसंद की स्वतंत्रता संविधान का एक आंतरिक हिस्सा है और आस्था के सवालों का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

इसके साथ ही अदालत ने कहा कि पुलिस से उम्मीद की जाती है कि वह ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए त्वरित एवं संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करे जिन्हें अपने परिवार के सदस्यों सहित अन्य लोगों से खतरे की आशंका है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका पर जोर देते हुए अदालत ने कहा कि जहां भी किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता का सवाल है, विशेष रूप से उन जोड़ों के मामलों में जो कानूनी रूप से अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं, पुलिस से कानून के मुताबिक शीघ्रता और संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है. साथ ही संबंधित आवेदकों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आवश्यक उपाय करने की भी.

अदालत ने यह टिप्पणी एक शिकायतकर्ता व्यक्ति पर हत्या के कथित प्रयास और शारीरिक हमले से जुड़े मामले से संबंधित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की. शिकायतकर्ता ने जिस महिला से शादी की थी, उनके परिवार के लोगों ने उस पर कथित तौर पर हमला किया था. महिला ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की थी.

शिकायत के अनुसार, शिकायतकर्ता की पत्नी के परिवार के सदस्यों ने उनका अपहरण किया, बेरहमी से पिटाई की और धारदार हथियारों से भी हमला किया.

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संबंधित थाने द्वारा उनकी शिकायत पर दंपति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, जबकि उनसे तत्परता के साथ कार्रवाई की उम्मीद थी.

अदालत ने कहा कि इस तरह की किसी भी चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.

अदालत ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से कहा कि वह ऐसी शिकायतों से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की खातिर आवश्यक कदम उठाएं.

जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने अपने एक हालिया आदेश में कहा, ‘कानून के अनुसार विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 का अंतर्निहित हिस्सा है. यहां तक ​​कि आस्था के सवालों का भी जीवनसाथी चुनने की किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूलतत्व है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, घटनाक्रम राजौरी गार्डन थानाक्षेत्र का था. शिकायतकर्ता महिला के पति ने आरोप लगाया था कि 22 दिसंबर 2021 को जब दंपति शादी करके दिल्ली लौटे तो उनकी पत्नी का परिवार उग्र हो गया और जान से मारने की धमकी दी. वे थाने पहुंचे और सुरक्षा मांगी. थाने से लौटते समय महिला के परिवार ने कथित तौर पर उनका अपहरण कर लिया और अपने घर ले जाकर पति को बेरहमी से पीटा गया और उसके गुप्तांगों को कुल्हाड़ी से काट दिया गया.

अभियोजन पक्ष ने कहा कि शिकायतकर्ता पर हमले के बाद उन्हें एक नाले में फेंक दिया, जहां से उन्हें उनके भाई ने बचाया और एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवाया.

अभियोजन पक्ष ने बताया था कि महिला की दादी ने यह कहते हुए कि शिकायतकर्ता किसी तरह की दया का पात्र नहीं है अपने परिवार के अन्य सदस्यों को निर्देश दिया था कि समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए पुरुष का निजी अंग काट दिया जाए.

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि महिला की मां और चाची ने भी शिकायतकर्ता का निजी अंग काटने के लिए परिजनों को प्रोत्साहित किया था.

यह जमानत याचिका महिला की मां, दादी और बहन द्वारा दायर की गई थी. जमानत के लिए मां ने तर्क दिया था कि शिकायतकर्ता ने अपराध में उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं बताई थी, बस ‘प्रोत्साहित’ करने की बात कही थी. वहीं, दादी का तर्क था कि वह 86 वर्षीय वृद्धा हैं और कई बीमारियों से जूझ रही हैं. जबकि, बहन का कहना था कि उनका नाम एफआईआर में नहीं था.

मामले में महिला की बहन को जमानत देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उनकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी, जबकि महिला की दादी और मां की थी और वे दोनों ही पहले भी अपराधों में शामिल रही थीं.

मामले में संबंधित पुलिस अधिकारियों की भूमिका की निंदा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में राजौरी गार्डन थाने के एसएचओ ने पीड़ितों/शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए. पीड़ितों की शिकायत को नियमित शिकायत के तौर पर लिया गया, जबकि उनसे तत्परता के साथ कार्रवाई करने की उम्मीद थी. पुलिस की ओर से ऐसी किसी भी चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)